राजनीति बता, तू और कितना गिरेगी…!

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‘राजनीति के संत’ ने संविधान के मंदिर ‘विधानसभा’ में संकल्प लिया कि अपराधियों को मिट्टी में मिला देंगे। उन्होंने जो कहा, कर दिखाया। सिर्फ़ यूपी ही नहीं, देश और यहां तक कि विदेशों में रहने वाले भारतीयों ने भी अपराधियों का बुरा हश्र देखकर राहत की सांस ली है। लेकिन, असदुद्दीन ओवैसी सहित तमाम विपक्षी दलों ने असद और गुलाम के एनकाउंटर पर सवाल उठा दिये हैं। तर्क ये कि एनकाउंटर फर्जी है। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता तो एनकाउंटरों में मारे गये अपराधियों की जाति और धर्म तक गिना रहे हैं। इस तर्क के पीछे कानून का सहारा लिया जा रहा है।

हकीकत यह है कि कानूनी दांव-पेचों का सहारा लेकर ही तो अपराधी अपने साम्राज्य को स्थापित करते रहे हैं। एनकाउंटर का विरोध करने वाले क्या यह बताएंगे कि नब्बे के दशक से अपराध की दुनिया में कदम रखने वाले अतीक अहमद को 32 वर्ष में क्या वो सजा दिला पाये ? जबकि, इन सारे दलों ने इस दौरान यूपी में राज किया।

माफिया/अपराधियों के पास ताकत होती है, पैसा होता है, हथियार होते हैं। वो इन सबका इस्तेमाल अपराध के बाद खुद को बचाने में करते हैं। दूसरी तरफ, पीड़ित पक्ष मानसिक रूप से टूटा हुआ होता है। उसके पास पैसा, ताकत, हथियार कुछ भी नहीं होता। कानूनी लड़ाई की लम्बी प्रक्रिया पीड़ितों को तोड़कर रख देती है। ऐसे में ज्यादातर पीड़ित लोग खुद को अपनी किस्मत के सहारे छोड़कर ठंडे पड़ जाते हैं और न्याय गहरी नींद सो जाता है। इस देश में लाखो-करोड़ों ऐसे उदाहरण होंगे जो यह बताते हैं कि 25-30 सालों की लड़ाई के बाद भी लोगों को न्याय नहीं मिल रहा है। एनकाउंटरों का विरोध करने वाले दलों ने कभी अपराधियों से पीड़ित जनता की इस बदहाली/लाचारी पर सवाल उठाये हैं ? कोई आंदोलन खड़ा किया है ? जवाब है नहीं।

तो क्या यह माना जाए कि सरकार का विरोध करना है, सिर्फ़ इसलिए विरोध किया जाएगा ? अपने-अपने वोट बैंक को संदेश देने के लिए सरकार के अच्छे कार्यों का भी विरोध किया जाएगा ? विरोधी दलों के सामने चुनौती है कि यदि उनके आरोपों में दम है तो वो ये साबित करें कि योगी सरकार ने कैसे जाति अथवा धर्म देखकर अपराधियों का एनकाउंटर किया है ? यदि ये दल ऐसा नहीं करते तो आने वाले समय में जनता इनको करारा जवाब जरूर देगी।

सरकार और पुलिस की कार्रवाई का विरोध करने वालों को अतीक अहमद और उसके परिवार की चिंता है मगर उमेश पाल और उन दो वीर पुलिस के जवानों के परिवारों की चिंता नहीं है जिन्हें अकारण ही अपनी जान गंवानी पड़ी। सरकार के विरोधी दल बताएंगे कि क्या यही न्याय है ? जनता आज सवाल पूछ रही है कि अपराधियों के प्रति राजनीतिक दलों में सहानुभूति क्यों ? क्या माफिया/अपराधी कानून को मानते हैं ? अपराधियों का कैसा मानवाधिकार ? न्याय उमेश पाल के परिजनों को मिलना चाहिए या अतीक और उसके परिजनों को ?

यूपी के मुखिया आज जिस तरह सूबे को अपराधमुक्त करने में लगे हैं, ऐसा इतिहास में कभी नहीं देखा गया। सीएम योगी के इस माडल की चर्चा और मांग सिर्फ़ भारत के दूसरे राज्यों में ही नहीं बल्कि विदेशों तक में हो रही है। ऐसे में यूपी की 25 करोड़ जनता का फ़र्ज़ बनता है कि यदि वह अपनी आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित रखना चाहती है तो पुलिस और सरकार के साथ खड़ी हो और उनका हौसला बढ़ाये। कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर तो ऐसा बहुत ही जरूरी है। नीचे गिरती राजनीति को अब जनता ही जागरुक होकर बचा सकती है।

मनोज तोमर