आप मुझे फिनिश नहीं कर सकते… ममता बनर्जी का ये चेतावनी भरा एलान और किसी के लिए नही बल्कि मुल्क के सबसे बड़े ओहदे पर बैठे शख्स के लिए है, जिसे संवैधानिक भाषा में प्रधानमंत्री कहा जाता है। इस एलान से यह साबित हो गया कि ममता बेजोड़ हैं और मौजूदा राजनीतिक दौर में वो एक मजबूत विकल्प हैं।
पिछले 7 सालों से मुल्क में निहायत सुनियोजित तरीके से यह भ्रम फैलाया जा रहा कि नरेंद्र मोदी का कोई विकल्प नहीं, पर ममता की सियासी शख्सियत ने इस भ्रमजाल के तिलस्म को तोड़ दिया है। अब यह चर्चा जोर पकड़ने लगी है कि ममता ही सही और मजबूत विकल्प हैं। पश्चिम बंगाल की चुनावी जंग में मोदी को गहरी पटखनी देने के बाद तो इस चर्चा को पंख लग गए हैं। तकरीबन सभी विपक्षी दलों में भी अंदरखाने यह बात चल रही है कि क्या 24 का आम चुनाव ममता बनर्जी के नेतृत्व में लड़ा जाना चाहिए ?
सच तो यह है कि मोदी का नहीं ममता का ही कोई विकल्प नही है। मोदी और ममता का कोई मुकाबला ही नहीं। ममता की सियासी या उससे दीगर योग्यता और अनुभव को देखा जाए तो मोदी उसके पासंग भर भी नहीं टिकते। बात चाहे जुझारू चरित्र की हो या सड़क पर उतर कर जनांदोलनों की अगुआई की, राजनीतिक सूझ बूझ की हो या सरकार चलाने के अनुभव की, शैक्षणिक योग्यता की हो या साफ सुथरी वैचारिक प्रतिबद्धता की, ईमानदारी की हो या सादगी भरे जीवन शैली की, दूर दूर तक कोई मुकाबला नहीं।
प्रधान सेवक की शिक्षा और डिग्री आज भी संदेह के घेरे में है जबकि ममता के पास है बीए आनर्स, बीएड, एएलबी और इस्लामिक हिस्ट्री की मास्टर डिग्री, वो भी कालेज व विश्वविद्यालय के नाम और सन के साथ। मोदी लाखो का सूट और कीमती कपड़ों के शौकीन हैं तो ममता 500 की खादी की मामूली साड़ी और हवाई चप्पल पर अपना राजनीतिक सफर तय करती है।
प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी को पसंद है करोड़ों का आलीशान बंगला तो ममता मुख्यमंत्री रहते हुए भी कालीघाट के अपने मामूली से पैतृक आवास में गुजारा करती हैं। प्रधान सेवक को कीमती मशरूम का स्वाद अच्छा लगता है तो ममता चाय भी सरकारी नहीं अपने पैसे पर पीती हैं। ममता राजनेता के अलावा लेखक, कवि, चित्रकार और डिजाइनर भी हैं। बंगला, और अंग्रेजी में उंन्होने विभिन्न विषयों पर 68 किताबें लिखीं हैं। उनकी कविता और गीत की सात सीढियाँ जारी हो चुकी हैं। उनकी योग्यता की फेहरिश्त बड़ी लंबी है और उसके सामने मोदी का कद बौना।
बड़े जोर शोर से मोदी के 18 घण्टे काम करने का प्रचार किया गया पर ममता के काम करने की ऊर्जा और उसके प्रति समर्पण का कोई मुकाबला नही। वो सड़क से लेकर सदन और सचिवालय तक हर जगह सक्रिय रहतीं हैं। उनके परिश्रम का इससे बड़ा प्रमाण और क्या है कि पृरी केंद्रीय सत्ता और भाजपा से उंन्होने हर मोर्चे पर अकेले मुकाबला किया और कर रहीं हैं। उन्हें केंद्र में भी दो बार मंत्री रहने का अनुभव है।
बतौर रेल मंत्री उनके कई फैसले आज भी याद किये जाते हैं। विकल्प सामने है, अंधभक्तों को भले ही नजर न आये क्योंकि वो हस्तिनापुर की स्वामिभक्ति से बंधे हैं लेकिन विपक्ष को बड़े दिल के साथ समझने की जरूरत है। अगर 24 का चुनाव ममता बनर्जी के नेतृत्व में लड़ा गया तो साम्प्रदायिक, तानाशाह और पूंजी परस्त ताकतों की शिकस्त तय है।
■ कुँवर सुरेश सिंह, (लेखक समाजवादी विचारक हैं)