बिहार से यूपी की राजनीति साध गए योगी

जैसे-जैसे बिहार में पहले चरण के मतदान की तारीख छह नवंबर नजदीक आती जा रही है, वहां का सियासी पारा तेज होता जा रहा है। यहां की चुनावी लड़ाई अब धीरे-धीरे जाति से निकल कर धर्म पर केंद्रित होती जा रही है। यहां सीमांचल में घुसते ही सभी नेताओं को तुष्टिकरण की याद आ जाती है

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लखनऊ/पटना। जैसे-जैसे बिहार में पहले चरण के मतदान की तारीख छह नवंबर नजदीक आती जा रही है, वहां का सियासी पारा तेज होता जा रहा है। यहां की चुनावी लड़ाई अब धीरे-धीरे जाति से निकल कर धर्म पर केंद्रित होती जा रही है। यहां सीमांचल में घुसते ही सभी नेताओं को तुष्टिकरण की याद आ जाती है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के दो धुरंधर नेता मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव भी यूपी की राजनीति को बिहार से ही धार देने में लगे हैं। योगी ने बुधवार को रघुनाथपुर विधानसभा क्षेत्र में राजद और समाजवादी पार्टी के माफिया और बाहुबली प्रेम पर जमकर निशाना साधा। योगी ने यहां राम मंदिर का जिक्र करके हिंदुओं को एकजुट होने का संदेश दिया वहीं माफियाओं-अपराधियों से सावधान रहने को भी कहा। अब आगामी तीन नवंबर को सपा प्रमुख अखिलेश यादव की बारी है। वैसे भी ओसामा शहाब के चुनाव प्रचार की मंशा जताकर उन्होंने अपना एजेंडा क्लीयर कर दिया है। कुल मिलाकर योगी आदित्यनाथ व अखिलेश यादव बिहार के बहाने अपना यूपी का एजेंडा सेट करने की कोशिश में हैं।

यूपी की राजनीति के चिर प्रतिद्वंद्वी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का वार-पलटवार रोचक रहने वाला है। योगी ने 29 अक्टूबर बुधवार को बाहुबली शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब के चुनाव क्षेत्र में एनडीए के लिए चुनावी सभा कर अखिलेश यादव और राजद को एक साथ निशाने पर रखा। अब उम्मीद है कि आगामी तीन नवंबर को अखिलेश यादव भी अपने भाषण में उनको जवाब देंगे। अपने संबोधन में योगी ने सपा और राजद को निशाने पर लेते हुए कहा कि एक ने बिहार में लालकृष्ण आडवाणी के रामरथ को रोकने का पाप किया तो दूसरे ने अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाने का महा पाप किया।

योगी ने कहा कि दोनों की सोच एक जैसी है। दोनों को ही सनातन से नफ़रत और माफियाओं से प्यार है। और उसी का परिणाम है कि एक पार्टी शहाबुद्दीन की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए उसके बेटे को टिकट देती है, और दूसरी उसके प्रचार के लिए आने वाली है। जबकि हम राम मंदिर का निर्माण पूर्ण कर चुके हैं और सीता मैया का भव्य मंदिर बनाने की तैयारी में लग गए हैं। हमने तो राम-सीता के जन्म स्थान को जोड़ने वाले पथ के निर्माण की दिशा में काम मी शुरू कर दिया है। इस प्रकार योगी ने बिहार की धरती से अपना काम गिना कर एक पंथ दो काज कर दिया। उन्होंने अपने संबोधन में हिंदुत्व के एजेंडे को भी धार दिया।

* बाहुबली शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा के क्षेत्र रघुनाथपुर में खूब गरजे मुख्यमंत्री योगी
* 3 नवंबर को अखिलेश यादव भी रघुनाथपुर जाकर ओसामा के लिए मांगेंगे वोट
* देखना यह भी है कि अखिलेश तेज प्रताप यादव का प्रचार करने जाएंगे या नहीं
* पीके-मुकेश सहनी की सलाह, सीमांचल की चिंता छोड़, हैदराबाद संभालें ओवैसी

अब इसके बाद बारी सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की है। हालांकि उनकी पार्टी ने बिहार में कोई प्रत्याशी खड़ा नहीं किया है लेकिन गठबंधन धर्म का निर्वाह करने के लिए इंडी के प्रत्याशियों का प्रचार करने आ रहे हैं। उन्होंने इसके लिए बाकायदा पार्टी के स्टार प्रचारकों की लिस्ट भी जारी की है, जिसमें उनके दोनों चाचाओं शिवपाल यादव और रामगोपाल यादव का नाम ही नहीं है। इसको लेकर भी तमाम तरह की चर्चाएं हैं। इसके अलावा सूची में आज़म खां का नाम होते हुए भी उन्होंने स्वास्थ्य का हवाला देकर प्रचार से अनिच्छा जाहिर कर दी है। यानी वे अपने इस निर्णय को लेकर परिवार में ही समर्थन नहीं जुटा पाए हैं। ऐसे में अखिलेश यादव का बिहार आना एक दिलेरी भरा निर्णय होगा।

सूत्रों का कहना है कि समाजवादी पार्टी का बाहुबली प्रेम जगजाहिर है। ऐसे में अगर अखिलेश ओसामा शहाब का प्रचार करने जाते हैं तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। शायद ओसामा के बहाने वे मुस्लिम वोट बैंक को कोई मैसेज देना चाहते हों। शायद इसीलिए योगी आदित्यनाथ ने सपा को माफिया प्रोडक्शन हाउस और अखिलेश को उसका सीईओ कहा है। योगी का कहना है कि इसीलिए वे माफिया शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब का प्रचार करने बिहार जा रहे हैं। वैसे भी सपा का माफियाओं से संबंध किसी से छिपा नहीं रहा है। मुख्तार अंसारी हों या फिर अतीक अहमद, दोनों ही सपा के प्यारे रहे हैं। इसके जरिए उनको यूपी के मुसलमानों को ये संदेश देना है कि अखिलेश चाहे जहां रहें, मुसलमानों की बात करते रहेंगे। वे बिहार में तीन जनसभाएं करेंगे।

जानकारी के अनुसार बिहार की चुनाव प्रक्रिया शुरू होने से काफी पहले अखिलेश यादव ने लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव से बात कर पूछा था कि वे किस सीट से चुनाव मैदान में उतरेंगे। तब तेज प्रताप यादव ने उनसे अपने क्षेत्र में प्रचार का वादा लिया था। अब देखना ये है कि क्या तेज प्रताप यादव से किया गया वादा अखिलेश यादव निभाते हैं या नहीं। उस समय तेज प्रताप यादव तुरंत-तुरंत अपने एक्स्ट्रा मैरिटल रिश्ते के चलते परिवार से बेदखल किए गए थे। हालांकि जानकारी के अनुसार अखिलेश की जन सभाएं पूर्वी चंपारण, सिवान और कैमूर में होंगी। यानी वे तेज प्रताप यादव के चुनाव क्षेत्र महुआ में अपने इस दौरे में नहीं जा रहे हैं।

इसके अलावा चर्चा है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी एक बार फिर बिहार में सक्रिय होने वाले हैं। बीते एक सितंबर को अपनी वोटर अधिकार यात्रा की पटना के गांधी मैदान में समाप्ति के बाद राहुल गांधी ने बिहार की तरफ पलट कर भी नहीं देखा। आलम ये था कि दिल्ली मिलने गए लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव को उन्होंने मिलने का भी समय नहीं दिया। नाराज होकर दोनों पिता-पुत्र खाली हाथ पटना लौट आए। बताते हैं कि नाराजगी इतनी बढ़ गई थी कि मामला संभालने के लिए कांग्रेस नेता अशोक गहलोत को पटना आकर तेजस्वी यादव को बेमन से सीएम फेस घोषित करना पड़ा। इसके बावजूद राहुल गांधी ने अभी भी तेजस्वी यादव को इसके लिए बधाई नहीं दी है। अब खबर आ रही है कि दोनों मुजफ्फरपुर में मंच साझा करते हुए पहली चुनावी रैली करेंगे।

और अगर ऐसा होता है तो ये महागठबंधन में रिश्तों में आई खटास के खत्म होने और उसमें गर्माहट आने का संकेत कहा जा सकता है। पर 28 अक्टूबर को जारी किए गए तेजस्वी के प्रण की टाइमिंग को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। लोग सवाल उठा रहे हैं कि अगर राहुल को बिहार में आना ही था तो उनके साथ ही तेजस्वी का प्रण, क्यों नहीं जारी किया गया। इसके अलावा उसके ब्राउज़र में राहुल गांधी की छोटी फोटो को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। इस पर एनडीए नेता भी हमलावर हैं। समीक्षक पूछ रहे हैं कि यह सिर्फ तेजस्वी का ही प्रण क्यों है। वैसे भी राहुल गांधी के वोट चोरी के मुद्दे को तेजस्वी ने कोई तवज्जो नहीं दी है। मंगलवार को जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि चुनाव आयोग 12 और राज्यों में एसआईआर करा रहा है, इस पर आपका क्या कहना है, तो तेजस्वी ने कहा कि इसमें कौन सी नई बात है। उन्होंने तो बिहार में कराया ही है। ऐसे में उनका पासिंग रिमार्क भी इस बात का संकेत है कि वे एसआईआर को चुनावी मुद्दा नहीं मानते।

दूसरी ओर सीमांचल में जन स्वराज पार्टी के नेता पीके ने एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी को बाहरी बताते हुए नसीहत दे डाली है कि वे अपना हैदराबाद ही संभालें। उन्होंने तो ओवैसी को बाहरी तक कह दिया है। जबकि ओवैसी ने सवाल उठाया है कि ढाई फीसदी आबादी वाले को डिप्टी सीएम और 14 फीसदी आबादी वाले को सीएम फेस बनाया जा सकता है तो 18 फीसदी आबादी वाले को सीएम या डिप्टी सीएम फेस क्यों नहीं। इस पर बोलते हुए वीआईपी नेता और इंडी गठबंधन के डिप्टी सीएम फेस मुकेश सहनी ने कहा है कि बिहार के मुसलमानों को ओवैसी की जरूरत नहीं है, वे अपना हैदराबाद संभालें।

अभयानंद शुक्ल