विश्व रंगमंच दिवस और मानव जीवन

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आज से पांचवी शताब्दी के आसपास जब एथेंस में पहली बार मंच पर नाटक के माध्यम से अभिव्यक्ति को प्रदर्शित करने का प्रयास किया गया तो संभवत किसी ने नहीं सोचा होगा कि देश के देखते अभिव्यक्ति का यह सबसे बड़ा ब्रह्मास्त्र बन जाएगा।

इस ब्रह्मास्त्र को स्थायित्व देने के लिए 1961 में 27 मार्च को यहां सुनिश्चित किया गया कि विश्व रंगमंच दिवस भी मनाया जाएगा। इसमें प्रत्येक वर्ष किसी एक कलाकार को विश्व स्तर पर चुना जाता है। वह थिएटर की महत्ता और उस के माध्यम से अपना यदि कोई अपना संदेश देना चाहता है तो वह उसको देता है।

फिर उसका 50 भाषाओं में अनुवाद करके विश्व के सभी महत्वपूर्ण समाचार पत्रों में उसे प्रकाशित किया जाता है लेकिन वर्तमान में मानव जीवन की अभिव्यक्ति के इस ब्रह्मास्त्र को उपेक्षित किया जा रहा है जबकि संस्कृति का निर्माण ही अपने आप में एक रंगमंच की अभिव्यक्ति ही है क्योंकि दुनिया या इस पृथ्वी पर पाए जाने वाले जितने जीव-जंतुओं… किसी को योनि क्रियाएं नहीं सिखाई जाती हैं और ना ही किसी को भोजन क्या करना है या सिखाया जाता है।

बकरी भी 36 तरीके के पत्तियों का चयन करने में सक्षम होती है.. शरीर भी जानता है.. उसे मांस खाना है और इन सब को बताने के लिए अनुवांशिकी ने दिमाग को इस रूप से तैयार किया है कि चाहे एक कोशिकीय प्राणी अमीबा हो या बहुकोशिकीय प्राणी घोड़ा, बकरी, शेर हो सभी इन क्रियाओं को सामान्य रूप से जानते हैं।

ऐसे में मानव द्वारा इन दोष सामान्य क्रियाओं के अलावा जिस तीसरी विधा का निर्माण करके अपने को अलग स्थापित किया गया वह संस्कृति थी क्योंकि संस्कृति व्यवहार और अभिव्यक्ति का वह माध्यम बनी। जिसके माध्यम से ही मनुष्य आनुवंशिकी आधार पर एक जैसा होने के बाद भी वर्गीकृत हुआ। इसी अभिव्यक्ति के मंचन के कारण आज हम कहीं पर अमीरी गरीबी की लड़ाई लड़ रहे हैं। कहीं ऊंची नीच की लड़ाई लड़ रहे हैं.. कहीं सत्ता की लड़ाई लड़ रहे हैं.. वास्तव में यह सब रंगमंच का ही उदाहरण है।

इन्हीं सीखे हुए व्यवहारों के आधार पर प्रजातंत्र में नेता उन व्यवहारों का आकलन करके यह सुनिश्चित करते हैं कि किस तरह का मंचन करके लोगों के दिमाग को केंद्रीकृत और नियंत्रित किया जा सकता है। प्रजातंत्र में विश्व में कहीं पर भी इसी रंगमंच की अभिव्यक्ति के सहारे नेता लोगों के आचार व्यवहार उनकी परंपराओं के आधार पर उनको अपनी तरफ मोड़ने का प्रयास करते हैं।

ऐसे में जो अभिव्यक्ति सिर्फ मंजू तक रंग मंच के माध्यम से सीमित थी। उसका दायरा बहुत विस्तृत हो गया है क्योंकि उसे संस्कृति कह देते हैं। इसलिए सामान्य दृष्टिकोण से कोई व्यक्ति या नहीं समझ पाता है कि यह भी एक विस्तृत थिएटर या रंगमंच का ही उदाहरण है।

इसीलिए एक संकुचित दायरे में रंगमंच को जिंदा रखने के लिए अक्सर लोग थिएटर का निर्माण करते हैं। वहां से उसी संस्कृति के आधार पर होने वाले प्रभावों को प्रदर्शित करके समाज को संदेश संदेश देते हैं। कुल मिलाकर यह एक उत्क्रमणीय क्रिया के रूप में समाज को दिशा देने वाला एक ऐसा हथियार है। जिसको सिर्फ समझने के लिए दृष्टिकोण चाहिए और जिस दिन रंगमंच को दृष्टिकोण के आधार पर मानव देखने लगेगा मानव किसी के द्वारा किए जाने वाले व्यवहार और प्रदर्शन में उन अर्थों को ढूंढने में सक्षम हो जाएगा। जिससे समाज का निर्माण हो रहा है या विघटन या स्पष्ट हो सकेगा और इसीलिए विश्व रंगमंच दिवस मानव जीवन को समझने के लिए कैसा हथियार है। जिसमें समाज को जानवरों से हटाते हुए एक पूर्णता देने का प्रयास छिपा हुआ है।

डॉ आलोक चांटिया