क्या पता आप किसके पुण्य का खा रहे है…?? जब तक विभीषण लंका में रहते थे, तब तक रावण ने कितना भी पाप किया, परंतु विभीषण के पुण्य के कारण रावण सुखी रहा परंतु जब विभीषण जैसे भगवत वत्सल भक्त को लात मारी और लंका से निकल जाने के लिए कहा, तब से रावण का विनाश होना शुरू हो गया।
अंत में रावण की सोने की लंका का दहन हो गया और रावण के पीछे कोई रोने वाला भी नहीं बचा। ठीक इसी तरह हस्तिनापुर में जब तक विदुर जैसे भक्त रहते थे, तब तक कौरवों को सुख ही सुख मिला। परंतु जैसे ही कौरवों ने विदुर का अपमान करके राज्यसभा से चले जाने के लिए कहा और विदुर का अपमान किया, तब भगवान श्री कृष्ण ने विदुर से कहा कि काका आप अभी तीर्थ यात्रा के लिए प्रस्थान करिए और भगवान के तीर्थ स्थानों पर यात्रा करिए और भगवान श्री कृष्ण ने विदुर को तीर्थ यात्रा के लिए भेज दिया, और जैसे ही विदुर ने हस्तिनापुर को छोड़ा, कौरवों का पतन होना चालू हो गया और अंत में राज भी गया और कौरवों के पीछे कोई कौरवों का वंश भी नहीं बचा।
इसी तरह हमारे परिवार में भी जब तक कोई भक्त और पुण्यवान आत्मा होती है, तब तक हमारे घर में आनंद ही आनंद रहता है। इस लिए परिवार मे किसी का भी अपमान भूलकर भी न करें। और हां, हम जो कमाई खाते हैं वह पता नहीं किसके पुण्य के द्वारा मिल रही है। इसलिए हमेशा आनंद में रहें, और कोई व्यक्ति परिवार में भक्ति करता हो तो उसका अपमान ना करें, उसका सम्मान करें, और उसके मार्गदर्शन मे चलने की कोशिश करें। पता नहीं संसार की गाड़ी किस के पुण्य से चलती है। ईश्वर, शास्त्र के प्रति समर्पित रहें। धर्म की जड़ जहाँ होगी वहाँ अशुभ कर्म आने से डरेंगे।