अंततः नहीं लग पाएगा बहराइच का जेठ मेला

अंततः नहीं लग पाएगा बहराइच का जेठ मेला गुरुवार को हुई सुनवाई में हाईकोर्ट से भी नहीं मिल पायी मेले को मंजूरी गाजी मियां की दरगाह पर जियारत तो होगी पर मेले में तिजारत नहीं मुस्लिम कट्टरता की भेंट चढ़ गई 500 साल पुरानी एक परंपरा संभल में की गई गलती का खमियाजा बहराइच को भुगतना पड़ा

0
18

लखनऊ। अंततः संभल में की गई गलती का खमियाजा बहराइच को भुगतना पड़ गया। और इलाहाबाद हाईकोर्ट से भी गाजी मियां के जेठ मेले के लिए अनुमति नहीं मिल पाई। इस प्रकार पिछले लगभग 500 सालों से चली जा रही दरगाह में जियारत और जेठ मेले में तिजारत का सिलसिला अब साथ-साथ नहीं चल पाएगा। ऐसे में इस साल गाजी मियां की दरगाह पर जियारत तो होगी लेकिन जेठ मेले में तिजारत का मौका नहीं मिलेगा। क्योंकि लोगों को मेले में आने से रोकने के लिए बहराइच के अलावा सीमावर्ती जिलों के प्रशासनिक अमले को भी सतर्क कर दिया गया है। ताकि बहुत अधिक भीड़ यहां पर ना आ सके। पूरे प्रदेश में चल रही राजनीतिक और धार्मिक गहमा-गहमी के बीच जहां गाजी मियां के जेठ मेले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में होने वाली बुधवार 14 मई को होने वाली सुनवाई 15 मई को हुई पर मेला कमेटी अपना दावा मजबूती से नहीं रख पाई। हां, दरगाह में होने वाली धार्मिक परंपराएं जारी रहेंगी। हाईकोर्ट इस मामले में अब 19 मई को फैसला सुनाएगी।

यूपी के बहराइच स्थित सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर लगने वाले मेले पर रोक के बाद दायर की गई याचिका पर बृहस्पतिवार को सुनवाई पूरी हो गई है। हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है। कोर्ट द्वारा बृहस्पतिवार को फैसला न सुनाने से दरगाह प्रबंध समिति पक्ष की ओर मायूसी का माहौल है। इसका कारण बताया जा रहा है कि मेले का समय प्रारंभ हो चुका है, और जायरीन आने लगे हैं। यदि इस दौरान दरगाह के पक्ष में फैसला नहीं आता है तो शनिवार को होने वाले ग्रीष्मकालीन अवकाश के कारण उसे आगे के न्यायालय में अपना पक्ष रखने में समस्या हो सकती है। इस बाबत दरगाह कमेटी अध्यक्ष बकाउल्लाह ने पहले ही कह दिया था कि दरगाह परिसर की परंपराएं जारी रहेंगी। और हाईकोर्ट ने भी उस पर अपनी मोहर लगा दी है। दरगाह कमेटी अध्यक्ष का यह भी कहना है कि प्रशासन द्वारा ज़िले की सीमाओं पर जायरीनों को रोके जाने से उनकी आस्था को ठेस पहुंच रही है।

दूसरी तरफ इस मामले पर राजनीतिक और धार्मिक प्रतिक्रियाएं भी जारी हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा है कि मेला किस नाम से लगता है, यह महत्वपूर्ण नहीं है। इससे अधिक महत्वपूर्ण यह देखना है कि उससे कितने लोगों को रोजगार मिलता है। वे इस मामले में भाजपा पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का आरोप लगाते हैं। इस विषय पर कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने सालार मसूद गाजी को सूफी संत बताते हुए कहा, यह मजार हिंदू-मुस्लिम दोनों धर्म के लोगों की आस्था का केंद्र है। जबकि अजमेर दरगाह कमेटी के पूर्व उपाध्यक्ष सैयद बाबर अशरफ ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह हिन्दू-मुस्लिम को बांटकर शासन करने की रणनीति पर चल रही है। इस बारे में किछौछा दरगाह के सैयद अहमद मियां ने कहा कि मसूद गाजी को आक्रांता कहना गलत है। उनका तर्क है कि वे अफगानिस्तान से थे जो उस समय भारत का ही हिस्सा था। वे बस भारत के एक प्रांत से दूसरे प्रांत गए थे। उधर खबर है कि पर्यटन विभाग ने अपनी वेबसाइट से दरगाह की जानकारी हटा दी है। इस बारे में बहराइच के जिला पर्यटन अधिकारी का कहना है कि दरगाह की जानकारी क्यों हटी और किसने हटाई, इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि यह निर्णय लखनऊ से लिया गया हो।

मेला लगाने की अनुमति देने से इनकार के बाद प्रशासन की सख्ती बढ़ गई और सुरक्षा इंतजाम कड़े कर दिए गए। दरगाह की मेला कमेटी ने भी मेले की अनुमति नहीं मिलने के बाद जायरीनों को रोकने की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया था। उसने पत्र लिखकर प्रशासन से जायरीनों को रोकने का इंतजाम करने का निवेदन किया था। जेठ मेला इस वर्ष 15 मई से प्रस्तावित था। प्रशासन का कहना था कि एलआईयू और अन्य एजेंसियों की रिपोर्ट के आधार पर यह निर्णय लिया गया है। इसके बाद बहराइच में सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए गए। प्रशासन ने जिले की सीमाओं पर नाकाबंदी करते हुए अन्य जिलों जैसे बलरामपुर, श्रावस्ती, लखनऊ, गोरखपुर आदि के डीएम और एसपी को पत्र भेजकर जायरीनों को वहीं रोकने को कहा। भारी संख्या में पुलिस बल और पीएसी की तैनाती भी की गई। हालांकि जिला प्रशासन ने दरगाह परिसर के भीतर किसी भी धार्मिक परंपरा पर रोक न होने की बात भी कोर्ट में भी कही है।

दरगाह प्रबंध समिति द्वारा प्रशासन को लिखे पत्र में सबसे महत्वपूर्ण बात यह कही गई है कि सैय्यद सालार मसूद गाजी की दरगाह वक्फ संस्था है, और इसका संचालन उत्तर प्रदेश सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा किया जाता है। खबर है कि प्रबंध कमेटी द्वारा मेले के सम्बन्ध में वक्फ बोर्ड से भी सम्पर्क किया गया है।

विवाद की शुरुआत की जड़ में संभल का बवाल : वैसे तो पूरे मामले की जड़ में बीते नवंबर में हुआ बवाल है। पर इस विवाद की शुरुआत इस साल 18 मार्च को संभल में गाजी मियां के नाम पर लगने वाले नेजा मेले से हुई थी। संभल प्रशासन ने इसे लुटेरे की याद कहकर इजाजत देने से मना कर दिया था। इसके बाद हिंदू संगठनों ने बहराइच और अन्य जिलों में भी ऐसे मेलों पर रोक लगाने की मांग की थी। सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो साफ-साफ कह दिया कि अब आक्रांताओं का महिमा मंडन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सुभासपा प्रमुख और प्रदेश के मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने भी इस मेले पर आपत्ति जताते हुए इसे बंद करने और मसूद गाजी को हराने वाले राजा सुहेलदेव के नाम पर मेला आयोजित करने की मांग कर दी। इतिहास के जानकारों के अनुसार सैयद सालार गाजी गजनवी वंश से संबंध रखता था। और कहा जाता है कि राजा सुहेलदेव ने उन्हें 1034 ई. में चितौरा के युद्ध में हराया था। यही वजह है कि राजा सुहेलदेव को सालार मसूद गाजी के सामने हिंदुत्व की राजनीति में एक प्रतीक के रूप में उभारा गया है। यहां पर पिछले 500 सालों से प्रतिवर्ष एक माह का जेठ मेला लगता है, जिसे गाजी मियां का उर्स भी कहा जाता है। इसमें जियारत के लिए बड़ी संख्या में जायरीन आते हैं। परंतु संभल और मुरादाबाद आदि जगहों पर इसी साल सालार गाजी से जुड़े नेजा मेलों पर रोक के बाद इस मेले पर भी विवाद बढ़ गया। हिंदू संगठन पहले से ही इस स्थान को सूर्य कुण्ड और बालार्क ऋषि का आश्रम मानते हैं। अब इसमें संभल के विवाद ने आग में घी का काम कर दिया। अब हिंदू संगठनों ने सैय्यद सालार मसूद गाजी को विदेशी आक्रांता बताते हुए मेले का विरोध तेज कर दिया। इन संगठनों का कहना है कि कालान्तर में सैय्यद सालार मसूद गाजी और स्थानीय महाराजा सुहेलदेव के बीच चित्तौरा में भीषण युद्ध हुआ था। इस युद्ध में मसूद गाजी मारा गया था। हिंदू पक्ष का आरोप है कि उस समय के मुस्लिम शासकों ने बालार्क श्रृषि के आश्रम पर जबरन कब्जा कर दरगाह बना दी है, जो अब हमें वापस चाहिए। खैर, पिछले साल तक स्थिति यह रही कि सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर हर साल मेले का आयोजन होता रहा है। इस साल जब प्रशासन ने मंजूरी नहीं दी तो इजाजत के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर कर मांग की गई कि मेले की इजाजत दी जाए ताकि इस मेले से आर्थिक रूप से जुड़े लोगों को नुकसान से बचाया जा सके। याचिका के अनुसार मेला पिछले 800 वर्षों से हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक रहा है। मेले में देश-विदेश से लाखों हिंदू-मुस्लिम शामिल होते हैं। यह मेला न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मज़बूती प्रदान करता है। मेले को मंजूरी न देने के निर्णय से लाखों श्रद्धालुओं की भावनाएं आहत हुई हैं। और स्थानीय व्यापारियों को आर्थिक नुकसान की आशंका है। मेला कमेटी का तर्क है कि ये दरगाह 1375 में फिरोजशाह तुगलक ने सैयद सालार मसूद गाजी की याद में बनवाई थी। यहां पर लंबे समय से हर साल जेठ के महीने में एक माह का उर्स चलता है।

कट्टर मुस्लिमों की नादानी में मिला हिंदुओं को मौका : इतिहास गवाह है कि कमजोर से कमजोर व्यक्ति भी जुल्म की इंतेहा होने पर विरोध कर ही देता है। ठीक उसी प्रकार 1978 के दंगों में हिंदुओं को प्रताड़ित कर, उसकी हत्याएं कर संभल के कुछ कट्टरवादी सोच के मुसलमानों को लगा कि अब उन्हें रोकने वाला कोई नहीं है। और फिर उन्होंने वहां से हिंदुओं को और उनकी पहचान को मिटाने का काम शुरू कर दिया था। और वे लगभग अपने अभियान में सफल भी होते दिखाई दे रहे थे। वह तो न जाने कहां से संभल की शाही जामा मस्जिद का विवाद सामने आ गया और फिर पूरा नैरेटिव बदल गया। अगर कोर्ट के आदेश पर संभल की शाही जामा मस्जिद के सर्वे के लिए गई लीगल टीम के सामने मुस्लिमों ने उत्पात न किया होता तो शायद मामला इतना बढ़ता नहीं। खैर, संभल में हुए नवंबर के दंगों के बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इशारे पर संभल प्रशासन को खुली छूट मिल गई और उसने दबाव बना लिया। उसके बाद धीरे-धीरे संभल की हिंदुत्व वाली पहचान भी निकल कर बाहर आने लगी, वहां के सारे तीर्थ और मंदिर मिलने लगे। उसके बाद बारी आई सैयद सालार मसूद गाजी की याद में लगने वाले नेजा मेले की। तब तक प्रशासन पूरा दबाव बना चुका था और फिर उसने नेजा मेले की अनुमति नहीं दी। और यह कहा कि सैयद सालार मसूद गाजी आक्रांता था, इसलिए उसके महिमा मंडन की इजाजत नहीं दी जा सकती। यही हाल मुरादाबाद और अन्य जगहों का भी रहा। ऐसे में संभल में बना दबाव बहराइच में काम आ गया। ऐसे में मुसलमानों की कट्टर सोच का शिकार होकर गाजी मियां का मेला अपनी 500 साल पुरानी परंपरा से हाथ धो बैठा। अब प्रशासन चाहे जो भी कहे पर सच यही है कि इसके पीछे एक कट्टर सोच को मात देने वाला नैरेटिव ही काम कर रहा था।

गाजी मियां की जियारत होगी, मेला नहीं लगेगा : उत्तर प्रदेश के बहराइच में सालार मसूद गाजी की दरगाह पर लगने वाले मेले पर लगी रोक फिलहाल जारी रहेगी। मेला प्रबंध समिति ओर से दायर यायिका में शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में सुनवाई हुई। कोर्ट ने फौरी व्यवस्था के तौर पर जियारत यानी धार्मिक गतिविधियों की अनुमति दे दी है, और प्रशासन को जायरीनों की आवक-जावक को नियंत्रित करने का निर्देश दिया है। और यह काम हाईकोर्ट की निगरानी में होगा। इसके साथ ही कोर्ट ने मेला लगाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने इस मामले में प्रशासन के तर्क को सही ठहराया है।

अपनी अंतरिम आदेश में कोर्ट ने मेला समिति को मेला आयोजन की इजाजत नहीं दी है। इस प्रकार मेले के आयोजन को लेकर जिला प्रशासन की ओर से लगाई गई रोक जारी रहेगी। सालार गाजी की दरगाह पर हर साल जेठ के महीने में मेला लगाया जाता है, लेकिन, इस बार प्रशासन ने इसके लिए अनुमति नहीं दी है। प्रशासन ने कहा था कि दरगाह प्रबंधन के पास मेला आयोजित करने के लिए आवश्यक संसाधन नहीं है, इसलिए अनुमति नहीं दी जा सकती। डीएम ने इस मामले की जांच कराई और अनुमति देने से इनकार कर दिया। इसके बाद मेला समिति ने हाईकोर्ट में अपील की। शुक्रवार को इस मामले की जस्टिस एआर मसूदी और जस्टिस अजय कुमार श्रीवास्तव की बेंच में सुनवाई हुई। अब अगली सुनवाई सोमवार 19 मई को होगी।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक