भारत में यह है हाल, 32 साल बाद मिला न्याय

सिस्टम कितना क्रूर हो सकता है इसका जीता उदाहरण हैं, प्रयागराज जनपद के ग्राम हेतापट्टी निवासी कुमाऊं रेजीमेंट के पूर्व नायक बलराम सिंह। सेना से निकालने के 32 वर्ष बाद सशस्त्र बल अधिकरण लखनऊ ने अब जाकर पूर्व नायक बलराम सिंह को विकलांगता पेंशन दिए जाने का आदेश दिया है।

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लखनऊ। सिस्टम कितना क्रूर हो सकता है इसका जीता उदाहरण हैं, प्रयागराज जनपद के ग्राम हेतापट्टी निवासी कुमाऊं रेजीमेंट के पूर्व नायक बलराम सिंह। सेना से निकालने के 32 वर्ष बाद सशस्त्र बल अधिकरण लखनऊ ने अब जाकर पूर्व नायक बलराम सिंह को विकलांगता पेंशन दिए जाने का आदेश दिया है। अधिकरण के सदस्य न्यायमूर्ति अनिल कुमार (सदस्य न्यायिक) एवं वाइस एडमिरल अतुल कुमार जैन (सदस्य प्रशासनिक) ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया है।
जानकारी के अनुसार नायक बलराम सिंह वर्ष 1981 में टेरिटोरियल आर्मी में भर्ती हुए लेकिन वर्ष 1993 में बारह साल की सेवा के बाद बायीं आंख में इल्स डिजीज के कारण मेडिकल आधार पर बिना किसी पेंशन के सेवामुक्त कर दिया था। जबकि, मेडिकल बोर्ड ने उनमें बीस प्रतिशत विकलांगता बताई, और सेना सेवा से जुड़ा भी माना था। सन 1994 में पीसीडीए ने उनकी पेंशन को अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद 2001 में भी उनकी अर्जी खारिज कर दी गई। पर हार नहीं मानते हुए उन्होंने 2024 में अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय के माध्यम से न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाया।

* बहत्तर वर्षीय पूर्वनायक को बत्तीस साल बाद मिली विकलांगता पेंशन
* बलराम सिंह सेना से निकालने के पहले कुमाऊं रेजीमेंट में था
* बीमारी-भुखमरी से जूझ रहे सैनिक को सरकार अब देगी पेंशन

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता विजय कुमार पांडे ने दलील दी कि मेडिकल बोर्ड की राय को बिना किसी उच्चतर मेडिकल बोर्ड के, केवल लेखा विभाग ने नकार दिया, जो सुप्रीम कोर्ट के निर्णय एक्स सैपर मोहिन्दर सिंह बनाम भारत सरकार (1993) के विपरीत है। उन्होंने यह भी कहा कि भर्ती के समय बलराम सिंह पूरी तरह स्वस्थ थे, बीमारी सेवा के दौरान हुई और इसे मेडिकल बोर्ड ने स्वीकार किया l साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने राम अवतार बनाम भारत सरकार (2014) और कमांडर राकेश पाण्डेय बनाम भारत सरकार (2019) के फैसलों का हवाला देते हुए स्थायी विकलांगता और राउंडिंग ऑफ का अधिकार बताया। केंद्र सरकार की ओर से अधिवक्ता दिनेश कुमार पांडे ने ये तर्क दिया कि विकलांगता न तो सेवा से जुड़ी है, न अर्जित है और इसलिए पेंशन का हक नहीं बनता । परंतु खंडपीठ ने सरकार की दलीलों को खारिज करते हुए स्पष्ट कहा कि, लेखा विभाग को मेडिकल बोर्ड की राय बदलने का अधिकार नहीं है। मेडिकल बोर्ड ने विकलांगता को स्थायी और सेवा-जनित माना, अतः यही मान्य होगा।

दोनों पक्षों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों ने स्पष्ट किया है कि विकलांगता पेंशन जीवन भर मिलेगी और बीस प्रतिशत को राउंड ऑफ कर पचास प्रतिशत माना जाएगा। सरकार को चार माह में भुगतान करने का आदेश दिया गया, अन्यथा आठ प्रतिशत ब्याज देना होगा।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक