लखनऊ। खुद को बड़ा यदुवंशी और कृष्ण भक्त कहने वाले यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव इसका नैरेटिव गढ़ने में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव से पीछे पड़ते दिखाई दे रहे हैं। अखिलेश यादव ने जहां इटावा में पूर्व में प्रस्तावित श्रीकृष्ण मंदिर का विचार त्याग कर शिव मंदिर का निर्माण कराना शुरू कर दिया है, वहीं मध्य प्रदेश के सीएम मोहन यादव ने इस बार जन्माष्टमी पर्व पूरे प्रदेश में समारोह पूर्वक मनाकर बडा़ संदेश दिया है। मोहन सरकार ने इस बार बलदाऊ के जन्मदिन हल छठ से लेकर कृष्ण जन्माष्टमी तक सांस्कृतिक कार्यक्रम कराए।
मोहन यादव सरकार ने इसके अलावा लीला पुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण से जुड़े मध्यप्रदेश के चार प्रमुख स्थानों धार के अमझेरा, इंदौर के जानापाव, उज्जैन के संदीपनि आश्रम और रायसेन जिले के महलपुर पाठा के मंदिरों का विकास कराने का भी निर्णय लिया है। ये इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अखिलेश यादव के परिवार ने इटावा में कृष्ण मंदिर बनाने का निर्णय लिया था पर उसे रोक कर वहां शिव मंदिर बना रहे हैं। जबकि मोहन यादव ने इस बार जन्माष्टमी पर्व भव्यता से मनाया और भगवान श्री कृष्ण से जुड़े राज्य में श्री कृष्ण से जुड़े चार स्थानों को विकसित करने का भी निर्णय लिया है। यानी कृष्ण भक्ति का नैरेटिव गढ़ने में मोहन यादव बीस पड़ते दिखाई दे रहे हैं।
इस बार मध्य प्रदेश की मोहन यादव सरकार ने जन्माष्टमी पर्व पर विशेष फोकस करते हुए कार्यक्रम आयोजित किए। मोहन यादव ने इसके लिए विशेष रूप से पर्यटन विभाग को निर्देश दिए थे। खास बात यह है कि मोहन यादव ने इस आयोजन का प्रचार भी खूब कराया। इस तरह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इस बार अपने बड़े कृष्ण भक्त और यदुवंशी होने का पुख्ता सबूत दे दिया है। वैसे तो सूबे में हर साल की तरह इस बार भी जन्माष्टमी आयी पर इस बार विशेष रही। इस साल आयोजनों में राज्य के पर्यटन विभाग ने भी मुख्यमंत्री के निर्देश पर विशेष तैयारी की थी। इस बार बलराम जन्मोत्सव हल छठ और जन्माष्टमी पर भव्य कार्यक्रम आयोजित किए गए। सीएम ने अपने सरकारी निवास में इस बाबत आवश्यक तैयारियों की खुद समीक्षा की और पूरे प्रदेश में बलराम व श्रीकृष्ण के प्रसंगों, जीवनगाथा से जुड़े विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करने के निर्देश दिए। इनमें विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, विद्यालयों में हुए कार्यक्रमों में स्थानीय साहित्य, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं का भी सहयोग लिया गया। प्रदेश में भगवान श्रीकृष्ण के चरण जिन स्थानों पर पड़े और जहां उनके जीवन के विशेष प्रसंग घटित हुए, ऐसे सभी स्थान पावन मानकर जन रुचि के अनुरूप प्रभावी कार्यक्रम हुए। इन प्रमुख स्थानों में संदीपनि आश्रम उज्जैन, अमझेरा, जामगढ़, जानापाव आदि शामिल हैं। कार्यक्रमों में संस्कृति और पर्यटन विभाग के सौजन्य से काफी कलाकार भी जुड़े। जानकारी के अनुसार जानापाव में 16 अगस्त को भक्ति गायन हुआ तो वहीं अमझेरा (धार) में बधाई नृत्य और नृत्य-नाटिका की प्रस्तुतियां की गईं। इसके अलावा 16 अगस्त को पन्ना के बलदेवजी और जुगल किशोर मंदिर में भी भक्ति गायन और बधाई नृत्य हुए। दमोह, खातेगांव और रीवा में भी एक दिवसीय कार्यक्रम हुए। मंडला में 14 अगस्त को हलधर लीला, बरेदी लोकनृत्य और भक्ति गायन हुआ, जबकि 16 अगस्त को महिष्मति घाट पर नृत्य नाटिका और भजन संध्या का आयोजन किया गया। इसके अलावा उमरिया के पाली में भी भक्ति गायन के अलावा ओडिशा के कलाकारों का नृत्य और नृत्य नाटिका हुई। शहडोल में भी तीन स्थानों पर रासलीला, भक्ति गायन और नत्य-नाटिका हुई।
एमपी में श्रीकृष्ण से जुड़े चार स्थानों पर फोकस : मध्य प्रदेश में इस बार राज्य की मोहन यादव सरकार ने जन्माष्टमी पर्व को चार प्रमुख स्थानों पर भव्य रूप से मनाया। इनमें उज्जैन के संदीपनि आश्रम, धार के अमझेरा, इंदौर के जानापाव और रायसेन के महलपुर पाठा शामिल हैं। हालांकि इन स्थानों पर पूर्व में भी आयोजन होते हैं, किंतु इस बार सरकार की विशेष रुचि से इसे भव्यता मिल गई। अब आइए इन जगहों का महत्व समझते हैं।
अमझेरा : मध्यप्रदेश के धार जिले में स्थित अमझेरा वो जगह है, जहां माता रुक्मिणी का हरण हुआ था। बताया जाता है कि रुक्मिणी मध्य प्रदेश के ही विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थीं और श्रीकृष्ण से विवाह करना चाहती थीं, लेकिन उनके भाई रुक्मी शिशुपाल से उनका विवाह कराना चाहते थे। रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को संदेश भेजकर विवाह करने का आग्रह किया। तब भगवान श्रीकृष्ण रुक्मिणी का हरण कर द्वारका ले गए, जहां उन्होंने उनसे विवाह किया।
जानापाव: इंदौर जिले का जानापाव वैसे तो भगवान परशुराम की जन्म स्थली के रूप में विख्यात है, लेकिन इसका एक बड़ा महत्व ये भी है कि इंदौर के इसी जगह पर परशुराम ने भगवान श्री कृष्ण को सुदर्शन चक्र दिया था। शास्त्र बताते हैं कि सुदर्शन चक्र इसी जगह श्री कृष्ण के हाथों में विराजित हुआ।
संदीपनि आश्रम : उज्जैन के संदीपनि आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण, दाऊ और सुदामा शिक्षा-दीक्षा के लिए पहुंचे थे। संदीपनि के इस आश्रम का कृष्ण की जीवन गाथा में विशेष स्थान है। इसी गुरुकुल से उन्होंने 16 विद्याएं, 18 पुराण और 64 कलाओं का ज्ञान अर्जित किया था। इतिहास यहां के उस गोपालपुर मंदिर का भी है, जिसके द्वार को सोमनाथ का द्वार माना गया। इस बेशकीमती द्वार को 11वीं सदी में महमूद गजनी ने लूट लिया था। मराठा शैली में बने इस मंदिर का मुख्य द्वार चांदी का है।
महलपुर पाठा : रायसेन जिले का प्राचीन महलपुर पाठा मंदिर 13वीं शताब्दी में निर्मित हुआ था। मंदिर में राधा-कृष्ण और देवी रुक्मिणी की मूर्ति एक ही श्वेत पत्थर पर बनी हुई है। इस मंदिर का शिलालेख इसके संवत 1354 अर्थात वर्ष 1297 ईस्वी में बनने की जानकारी देता है। मंदिर के पास ही प्राचीन किला भी है, जहां परमार वंश के राजाओं का शासन रहा। इस किले में 51 बावड़ियां हैं। मकर संक्रांति पर यहां बड़ा मेला लगता है।
गौशाला से बदबू वाले बयान में फंसे अखिलेश : भगवान श्रीकृष्ण को सर्वाधिक प्रिय उनकी गैया थीं और गौशाला उनके रहने का स्थान। उन्ही गौशालाओं से बदबू आने वाला बयान इत्र नगरी कन्नौज में देकर सपा प्रमुख अखिलेश हिंदू समाज के लोगों और भाजपा के निशाने पर आ गए थे। अब भी गाहे-बगाहे इसे लेकर उन पर सवाल उठाए जाते हैं। वे यह बयान देकर फंस गए हैं। इससे उठे विवाद और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की धुर हिंदू समर्थक राजनीति से परेशान होकर सपा ने अब अपनी चुनावी रणनीति में परिवर्तन किया है। शायद इसीलिए अखिलेश यादव कृष्ण भक्ति छोड़कर शिव भक्ति की ओर जा रहे हैं। इसीलिए वे इटावा में कृष्ण मंदिर वाली जगह पर बाबा केदारनाथ की अनुकृति वाला केदारेश्वर महादेव मंदिर बनवा रहे हैं। सूत्रों की खबर है कि सपा परिवार महाभारत कालीन उस कथा को भी दोहराना चाहता है जिसमें पांडवों ने युद्ध में की गई हत्याओं के बाद प्रायश्चित स्वरूप केदारनाथ धाम का निर्माण कराया था। सूत्रों का यह भी कहना है कि केदारेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण कारसेवकों पर गोली चलवाने का भी प्रायश्चित है। क्योंकि कृष्ण मंदिर की जगह अचानक शिव मंदिर बनाने का कोई वाजिब कारण दिखता नहीं है। वैसे भी अखिलेश ने अभी तक अयोध्या के राम मंदिर से दूरी बना रखी है, क्योंकि उनके पिता स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव पर कारसेवकों पर गोली चलवाने का आरोप है। बताते हैं कि राम मंदिर से दूरी के चलते ही उन्होंने खुद के यदुवंशी होने और बड़ा कृष्ण भक्त होने का दम भरते हुए अयोध्या की तर्ज पर इटावा में एक भव्य कृष्ण मंदिर बनवाने की घोषणा की थी, ताकि भाजपा के राम मंदिर नैरेटिव की काट तैयार की जा सके। पर ताजा सियासी समीकरण और हिंदुत्व के बढ़ते दबाव के बीच अखिलेश के पास दो ही विकल्प थे। पहला यह कि वे पार्टी लाइन छोड़कर अयोध्या में राम की शरण में आते या फिर वे हिंदुत्व की दूसरी धारा का चुनाव करें।
इधर राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा, बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार से उपजी नाराजगी, बाबा बागेश्वर के हिंदू एकता के प्रयास और प्रयागराज महाकुंभ से उठे सनातन की एकजुटता के ज्वार ने उन्हें नयी रणनीति बनाने पर मजबूर कर दिया है। उधर भाजपा को अयोध्या से हराकर विपक्ष के पोस्टर ब्वॉय बने सांसद अवधेश प्रसाद पासी भी अपने बेटे की मिल्कीपुर से हार के बाद और सांसद बनने के बाद संभवतः पहली बार बीते चैत्र नवरात्र में अयोध्या में प्रभु श्रीराम लला के सपरिवार दर्शन किए। उधर अखिलेश को किसी शुभचिंतक ने राम मंदिर के जवाब में श्रीराम के आराध्य देवाधिदेव महादेव का मंदिर बना कर मध्यमार्गी सनातनी बनने का सुझाव दे दिया। इसके बाद इटावा में प्रस्तावित कृष्ण मंदिर की जगह केदारेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण शुरू हो गया। बताते हैं कि ये मंदिर सपा के साफ्ट हिंदुत्व की ओर जाने का भी बड़ा प्रमाण है। क्योंकि सनातन में मान्यता है कि भोलेनाथ को दक्षिण मार्गी और वाम मार्गी दोनों ही पूजते हैं और आशीर्वाद भी प्राप्त करते हैं। खबर है कि यह मंदिर अक्षांश रेखा पर स्थित है, और इसी रेखा पर महादेव के अन्य मंदिर भी स्थित हैं। खास बात यह है कि इस शिव मंदिर के बारे में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने स्वयं सूचना दी है। यानी फिलहाल कृष्ण मंदिर का प्रस्ताव नहीं है। इसके अलावा जबसे अखिलेश यादव ने गौशाला से बदबू वाला बयान दिया है तबसे भाजपा और हिंदू संगठनों ने उन्हें निशाने पर ले रखा है। नोटिस करने वाली बात यह भी है कि अखिलेश ने उसके बाद से अपने यदुवंशी होने का कोई और दावा भी नहीं किया है। इटावा में बन रहे केदारेश्वर महादेव मंदिर का वास्तु केदारनाथ मंदिर जैसा ही है। मंदिर इटावा के चंबल घाटी में लायन सफारी के सामने है।
अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक