परमानंद का मार्ग है सूर्य नमस्कार…

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आज के युग में भारत की अमूल्य धरोहर योग विद्या के प्रति संपूर्ण विश्व में श्रद्धा और विश्वास बढ़ा है और पूरे विश्व के सभी समुदाय के लोगों ने योग विद्या की आरोग्यकारी साधनों का विभिन्न बीमारियों के उपचार में लाभ प्राप्त किया है। योगिक क्रियाओं के विषय में बहुत ही शास्त्रोक्त एवं ज्ञानवर्धक जानकारी श्रीनाथ आयुर्वेद चिकित्सालय भगवत दास घाट रोड सिविल लाइंस कानपुर के वरिष्ठ आयुर्वेद चिकित्सक एवं भारत सरकार आयुष मंत्रालय के योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा बोर्ड के बोर्ड मेंबर डॉ रवींद्र पोरवाल ने बहुत ही सार्थक जानकारी दी है ताकि योगिक क्रियाओं का अभ्यास करते समय हम उन क्रियाओ का अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकें।

आसन व्यायाम नहीं है…

योगिक आसनों को सामान्य जन व्यायाम समझ लेते हैं वस्तुतः योगिक आसन व्यायाम की तरह दिखाई देते हैं और व्यायाम के ही तरह उनका अभ्यास जनसामान्य करता है। लेकिन आसन व्यायाम नहीं है आसन शरीर के आंतरिक अंगों जैसे हृदय लीवर, पेनक्रियाज, संपूर्ण पाचन तंत्र, नस नाड़ियों, गुर्दों, हड्डियों, मन मस्तिष्क के ऊपर अच्छा प्रभाव डालते हैं और शरीर के आंतरिक अंगों में आई हुई विकृति या बीमारियों के निदान में मदद करते हैं। साथ ही साथ शरीर की रक्षा प्रणाली को मजबूत करते हैं। हमारी इम्यूनिटी को बढ़ाकर हमें भविष्य में होने वाली बीमारियों से बचाव में मदद करते हैं।

नियमित योगाभ्यास शरीर की एजिंग की रेट को कम करके बुढ़ापा मुक्त स्वस्थ जीवन यानी चिर यौवन, सदैव युवा बने रहने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। जबकि सामान्य व्यायाम, जिम करना, डांस करना, योगासनों जैसे पोज बनाकर जल्दी-जल्दी व्यायाम करना, एरोबिक या अन्य तरह तरह की आधुनिक मशीनी एक्सरसाइज, दौड़ लगाना, विभिन्न खेलों को खेलना आदि हमारी मांसपेशियों को सशक्त और मजबूत बनाते हैं। इनका शरीर की इम्युनिटी, आरोग्यता व आंतरिक अंगों पर उतना अच्छा प्रभाव नहीं होता, जितना योगिक आसनों का होता है।

अपना आसन चुनिए…

शास्त्रों में 84 लाख आसनों का उल्लेख है। इनमें 108 आसनों को महत्वपूर्ण माना गया है। सामान्य रूप से इन आसनों में हमें चार या पांच आसनों का 10 मिनट अभ्यास प्रतिदिन करना चाहिए। पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए चरण आसन क्रोध को कम करके याददाश्त बढ़ाता है। नेत्र ज्योति बढ़ाने और चश्मा हटाने के लिए भी यह आसन बहुत लाभप्रद है। वीर्य संबंधी दोषों को दूर करने के लिए ब्रम्हचर्य आसन और सतासन का अभ्यास अमृततुल्य लाभप्रद है। बढ़ा हुआ रक्तचाप, घबराहट और डिप्रेशन को नियंत्रित करने के लिए पक्षी आसन रामबाण उपाय है। विमनानासन, सूर्यभेदी व नाड़ी शोधन प्राणायाम दमा एलर्जी और साइनोसाइटिस में अत्यन्त लाभप्रद है।

मधुमेह में अश्व चालनासन और पदचालन आसन बहुत उपयोगी है। वही हार्ट अटैक या हृदय की गंभीर बीमारी होने के बाद शवासन और मकरासन बहुत उपयोगी है। ऐसे रोगी वृक्षासन का भी अभ्यास करके लाभ प्राप्त कर सकते हैं । पेट की पुरानी से पुरानी बीमारियों से निजात पाने के लिए उदर शक्ति, त्रियाकासन और सर्प आसन का अभ्यास उपयोगी है। नींद संबंधी समस्याओं, बुरे बुरे सपने रात्रि में आना, सुबह सोकर उठने के बाद आलस थकान और उबासी से बचने के लिए लक्ष्मण आसन का अभ्यास अमोघ अस्त्र है। वहीं महिलाओं के लिए हलासन, गर्भासन, कुक्कुटासन, उस्ट्रासन और कपोल शक्ति का अभ्यास बालों की समस्याओं, सौंदर्य की रक्षा के साथ गर्भाशय की विभिन्न समस्याओं और रोगों से छुटकारा पाने के लिए उपयोगी है।

गलत प्राणायाम के खतरे को समझें…

सामान्य रूप से स्वास प्रस्वांस के माध्यम से जो प्राणवायु शरीर के अंदर जाती है, वह प्राणवायु हमें नया जीवन, नई शक्ति, नई स्फूर्ति प्रदान करते हैं किंतु प्राणायाम के अभ्यास से जीवन का संचालन आरोग्यता वआनंद पूर्ण तरीके से होता है। रोगों से मुक्त पूर्ण निरोगी जीवन रहता है। यही नहीं अभ्यासी के शरीर की जीवनी शक्ति में असीम वृद्धि होकर दीर्घायु प्राप्त होता है। किंतु गलत ढंग से प्राणायाम का अभ्यास करने से शरीर और मन मस्तिष्क की अनेकों प्रकार की बीमारियां उत्पन्न हो जाती है। इसलिए प्राणायाम का अभ्यास गुरु के सानिध्य में विधि पूर्वक शास्त्रोक्त ढंग से करना ही हितकारी है।

एक और महत्वपूर्ण तथ्य सामान्यतः लोग सभी आठ प्राणायाम का अभ्यास करने लगते हैं यह उचित नहीं है। ऐसा न करके अपने शरीर की जरूरत के मुताबिक गुरु से परामर्श लेकर कोई एक या दो प्राणायाम का अभ्यास करना श्रेष्ठ है। गर्मियों के मौसम में शरीर के अंदर गर्मी पैदा करने वाले प्राणायाम सूर्यभेदी का अभ्यास बहुत कम करें अन्यथा ना करें। वही नाड़ी शोधन, शीतली और शीतकारी प्राणायाम गर्मी के मौसम में बहुत लाभप्रद माने जाते हैं। प्राणायाम के अभ्यास में कुंभक, पूरक, और रेचक का ध्यान न रखने पर और मूलबंध उद्यानबंध और जालंधरबंध का प्रयोग किए बगैर प्राणायाम की साधना को पूर्ण नहीं माना जाता। इसलिए प्राणायाम का अभ्यास योग्य गुरु के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए।

हार्टफुलनेस ध्यान को गहराई से समझें…

अभिजात वर्ग में ध्यान का अभ्यास आज एक शौक बन गया है विभिन्न योगगुरुओं ने अपने अपने झंडे के नीचे अपने अपने नाम से अपने अपने तरीके से ध्यान की विशिष्ट और सहज विधि को जन जन तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है और लोगों को ध्यान का लाभ पहुंचा कर योग विद्या का प्रचार प्रसार किया है। किंतु अत्यंत सरल ध्यान को कुछ योगगुरुओं ने इतना कठिन व जटिल बना दिया है की आम अभ्यासी ध्यान का वास्तविक लाभ नहीं प्राप्त कर पाता आंख बंद कर कुछ मिनट बैठने पर उसके कहीं खुजली होती है कहीं खांसी आती है कहीं हाथ पैरों में अकड़न होती है कहीं पैर सुन होने लगते हैं तो उसका ध्यान हाथ पैरों की समस्याओं मैं ही उलझा रह जाता है और वह ध्यान रूपी परम कल्याणकारी योग विद्या का लाभ नहीं उठा पाता।

रामचंद्र मिशन के हार्टफूलनेस ध्यान पद्धति को सबसे सरल प्रभावशाली और मन मस्तिष्क को शांत करके उत्साह और आनंद की अनुभूति प्रदान करने वाला ध्यान माना जाता है। हार्टफुलनेस ध्यान बहुत सरल है और विशेष बात यह है कि इसमें मन की एकाग्रता के साथ साथ मन मस्तिष्क और शरीर दोनो के अंदर एकत्रित विष तत्वो को डिटॉक्सिफाई करने का कारगर और सरल उपाय बताया जाता है इसके अभ्यासी को चंद दिनों में ही बहुत लाभ मिलता है साथ हीआध्यात्मिक उन्नति के द्वार खोलने वाला यह ध्यान विधि लगभग 30 मिनट के केवल तीन सत्रों में अभ्यासी को ध्यान का साधक बना देता है।

इसका अभ्यास करने से विभिन्न मानसिक समस्याएं, डिप्रेशन, नकारात्मक चिंतन, अनिद्रा, घबराहट, अत्यधिक क्रोध, मानसिक अशांति जैसी दिक्कतों का समूल सफाया हो जाता है। हार्टफुलनेस ध्यान का मूलभूत सिद्धांत अभ्यासी की अंतः चेतना का विकास करके उसे प्रकृति रूपी मां की गोद के परम आनंद का आभास कराना है। ध्यान अभ्यासी के आभा मंडल के चारों ओर नकारात्मक और दुख प्रदान करने वाली तरंगों का पूरी तरह खत्म हो जाता है और सकारात्मक तरंगो का आभामंडल ही नहीं, संपूर्ण शरीर के चारों तरफ एक घेरा बन जाता है जो शारीरिक और मानसिक रूप से निरोगी रखकर सद चिंतन और कल्याणकारी चिंतन का मार्ग प्रशस्त करता है।

परमानंद का मार्ग है सूर्य नमस्कार

सूर्य नमस्कार के अभ्यास से आसन प्राणायाम और मुद्रा तीनों का लाभ प्राप्त होता है। इस महत्वपूर्ण योगिक क्रिया की 12 अवस्थाएं होती हैं। प्रत्येक अवस्था का एक मंत्र होता है। सूर्य नमस्कार शारीरिक दृढ़ता व निरोगता के साथ-साथ आध्यात्मिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। सामान्य रूप से सूर्य नमस्कार की सभी 12 अवस्थाओं का अभ्यासक्रम को पूरा करने को एक सूर्य नमस्कार का अभ्यास माना जाता है। प्रतिदिन प्रातः काल सूर्योदय के समय न्यूनतम वस्त्र धारण करके उगते सूर्य की रोशनी में 5 बार सूर्य नमस्कार का अभ्यास करना सभी दुखों से मुक्ति पाने का साधन है।