श्रीराम सेतु बनाने में गिलहरियों का भी रहा महत्वपूर्ण योगदान

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श्रीराम सेतु बनाने में गिलहरियों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सभी गिलहरियां अपने मुंह में मिट्टियां भरकर लाती थीं और पत्थरों के बीच उनको भर देती थीं। इस दौरान उन्हें वानरों के पैरों के बीच से होकर गुजरना होता था। वानर भी इन गिरहरियों से तंग आ चुके थे। क्योंकि उन्हें भी गिलहरी को बचाने हुए निकलना होता था लेकिन वानरों को यह नहीं मालूम था कि ये गिलहरियां यहां वहां क्यों दौड़ रही है। तभी एक वानर ने उस पर चिल्लाते हुए कहा कि तुम इधर-उधर क्यों भाग रही हो। तुम हमें काम नहीं करने दे रही।

उनमें से एक वानर ने गुस्से में आकर एक गिलहरी को उठाया और उसे हवा में उछाल कर फेंक दिया। हवा में उड़ती हुई गिलहरी भगवान का नाम लेती हुई सीधा श्रीराम के हाथों में ही जाकर गिरी। प्रभु राम ने स्वयं उसे गिरने से बचाया था। वह जैसे ही उनके हाथों में जाकर गिरी और उसने आंखें खोलकर देखा, तो प्रभु श्रीराम को देखते ही वह खुश हो गई। उसने श्रीराम से कहा कि मेरा जीवन सफल हो गया, जो मैं आपकी शरण में आई।

श्रीराम उठे और वानरों से कहा कि तुमने इस गिलहरी को इस तरह से क्यों लज्जित किया। श्रीराम ने कहा कि क्या तुम जानते हो गिलहरी द्वारा समुद्र में डाले गए छोटे पत्थर तुम्हारे द्वारा फेंके जा रहे बड़े पत्थरों के बीच के फासले को भर रहे हैं? इस वजह से यह पुल मजबूत बनेगा। यह सुन वानर सेना काफी शर्मिंदा हो गई। उन्होंने प्रभु राम और गिलहरी से क्षमा मांगी।

श्रीराम हाथ में पकड़ी हुई गिलहरी को अपने पास लाए और उससे इस घटना के लिए क्षमा मांगी। उसके कार्य को सराहना देते हुए उन्होंने उसकी पीठ पर अपनी अंगुलियों से स्पर्श किया। श्रीराम के इस स्पर्श के कारण गिलहरी की पीठ पर तीन रेखाएं बन गई, जो आज भी हर एक गिलहरी के ऊपर श्रीराम के निशानी के रूप में मौजूद हैं। यह तीन रेखाएं राम, लक्षमण और सीता की प्रतीक है।