…तो राजनीतिक लिव इन में हैं आप और कांग्रेस

...तो राजनीतिक लिव इन में हैं आप और कांग्रेस....... * चूंकि केजरीवाल रायबरेली में कांग्रेस का प्रचार करने नहीं आए इसलिए दिल्ली में गांधी परिवार ने उनके साथ मंच साझा नहीं किया * खबर है कि लखनऊ आकर भी आप सुप्रीमो के रायबरेली नहीं आने से गांधी परिवार नाराज है * आप के सूत्रों का कहना है कि नुकसान होने के डर से पार्टी के उम्मीदवार नहीं चाहते थे कि राहुल गांधी उनके लिए प्रचार करें

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लखनऊ। बढ़ती उम्र के साथ दो विपरीतलिंगी युवाओं में बढ़ती सेक्स की जरूरतों के मद्देनजर शादी के विकल्प के रूप में लिव इन रिलेशनशिप ने अपना स्थान बनाया है। ठीक उसी तरह राजनीति में भी यह प्रयोग आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने किया है। दोनों ने अपनी जरूरत के हिसाब से क्षेत्रवार समझौते किए हैं। दिल्ली, गुजरात और हरियाणा में जहां वे एक-दूसरे के खिलाफ नहीं लड़ने पर सहमत हुए हैं वहीं पंजाब में दोनों पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ मैदान में हैं। वहां दोनों ही पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ विष वमन भी कर रही हैं। आप और कांग्रेस के चुनावी रिश्तों को लेकर भाजपा और एनडीए के घटक दल उन पर हमलावर हैं और दोनों ही पार्टियां इस मुद्दे पर कोई साफ-साफ जवाब नहीं दे पा रही हैं। ऐसे में इन दोनों पार्टियों के रिश्तों को गठबंधन का नाम न देकर राजनीतिक लिव इन रिलेशनशिप कहना ज्यादा उपयुक्त होगा। अभी तक छठवें चरण का प्रचार समाप्त हो गया है। 25 मई को मतदान भी होना है किंतु अभी तक गांधी परिवार और अरविंद केजरीवाल ने कोई मंच साझा नहीं किया है। यह जरूर है कि केजरीवाल की गिरफ्तारी के विरोध में रामलीला मैदान में इंडी गठबंधन जुटान में में गांधी परिवार था किंतु अरविंद केजरीवाल नहीं थे।

अब राजनीतिक हलकों में इस बात की लेकर बड़ी चर्चा है कि रायबरेली और अमेठी से फुर्सत पाकर दिल्ली पहुंचे गांधी परिवार ने दिल्ली में केजरीवाल के साथ अभी तक कोई मंच साझा नहीं किया। ऐसे में यह सवाल टीवी चैनलों ने भी उछला। जिस पर कांग्रेस और आप के प्रवक्ताओं से सवाल भी पूछे गए। पर दोनों ही पार्टियां इसका जवाब गोल कर जा रही हैं।

ऐसा भी नहीं है कि गांधी फैमिली प्रचार नहीं कर रही है। राहुल गांधी बाकायदा दिल्ली में अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए रोड शो कर रहे हैं और मेट्रो में भ्रमण कर लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। किंतु उन्हें आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार करने की फुर्सत नहीं मिल रही। इस बारे में कांग्रेसी सूत्रों का कहना है कि चूंकि अरविंद केजरीवाल रायबरेली और अमेठी में राहुल गांधी और किशोरी लाल शर्मा का प्रचार करने नहीं गए इसको लेकर गांधी परिवार नाराज है। कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि केजरीवाल लखनऊ तक आए और अखिलेश यादव के साथ साझा पत्रकार वार्ता भी की किंतु रायबरेली और अमेठी जाने की जहमत नहीं उठाई। सूत्रों का यह भी कहना है कि इसके अलावा रायबरेली और अमेठी में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता भी कांग्रेस के पक्ष में प्रचार करते नहीं दिखे। बताते हैं कि तभी से दोनों पार्टियों के बीच खटास शुरू हो गई। अब जबकि दिल्ली में 25 मई को होने वाले मतदान के लिए 23 की शाम तक का प्रचार थम गया है तो इस पर चर्चाएं और तेज हो गई हैं।

राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का कथित गठबंधन जरूरत और मजबूरी के चलते हुआ समझौता है। अगर यह गठबंधन वास्तव में होता तो इसका प्रभाव पंजाब के चुनाव में भी दिखता। क्योंकि आधा अधूरा गठबंधन राजनीति में नहीं चलता। भाजपा और एनडीए के घटक दलों ने लगातार इस पर कटाक्ष किया, प्रहार किया पर दोनों ही पार्टियों इसका जवाब देने में असफल रहीं।

आप और कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार जो कहानी बताई गई है उसका सार यह है कि दोनों पार्टियों को दिल्ली के लोकसभा चुनावों में लगातार हार का सामना करना पड़ रहा था। इसलिए कुछ नहीं होने की बजाए कुछ पाने की गरज से एक समझौता हुआ पर इसे गठबंधन नहीं कह सकते। यदि यह गठबंधन होता तो पंजाब में भी होता।

उधर आम आदमी पार्टी के सूत्रों का कहना है कि आम आदमी पार्टी ने कह दिया था कि उनके प्रत्याशियों के लिए राहुल गांधी के प्रचार की जरूरत नहीं है। आप के नेताओं का मानना था कि राहुल गांधी के प्रचार करने से आप को फायदा कम नुकसान अधिक होगा। उनका मानना है कि राहुल कब और क्या अंट-शट बोल दें, कुछ पता नहीं। उनके प्रचार का चुनाव पर नकारात्मक प्रभाव पड़े इससे बेहतर है कि वह आप के प्रत्याशियों के चुनाव प्रचार से दूर ही रहें। आप के लोगों को लगता है कि राहुल गांधी जब अंट-शंट बोलकर अपनी ही पार्टी का नुकसान कर देते हैं तो हमारा क्या फायदा करेंगे।
इसके अलावा स्वाति मालीवाल के मुद्दे पर प्रियंका गांधी का बयान भी आम आदमी पार्टी को खल गया। जिस शिद्दत से इंडी गठबंधन की अन्य पार्टियों ने इस मुद्दे पर आम आदमी पार्टी को समर्थन दिया या चुप्पी साधे रहे वैसा कांग्रेस ने नहीं किया। इस बाबत प्रियंका गांधी ने पत्रकारों के पूछने पर साफ-साफ कहा कि जहां भी महिलाओं के साथ नाइंसाफी होगी वहां कांग्रेस उस महिला के पक्ष में खड़ी होगी। बताते हैं कि तभी से अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी नाराज है।

हालांकि बाद में कांग्रेस के प्रवक्ताओं ने इस मुद्दे पर लीपापोती करके आप को संतुष्ट करने की कोशिश की किंतु बात बनी नहीं। इसीलिए न तो आम आदमी पार्टी ने गांधी फैमिली को प्रचार के लिए बुलाया और न ही गांधी फैमिली में कोई रुचि दिखाई। क्योंकि उसे तो रायबरेली-अमेठी में अरविंद केजरीवाल का नहीं जाना खल गया था।

कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि दिल्ली का चुनाव आते-आते कांग्रेस और आप का समझौता लगभग समाप्ति पर है। यह जरूर है कि दोनों पार्टियां रिएक्शन देने में सावधानी बरत रही हैं। क्योंकि अगर उनके भाग्य से दिल्ली के परिणाम उनके पक्ष में हुए तो आगे चलकर सरकार बनाने में एक-दूसरे की मदद तो लेनी ही पड़ेगी। कहते हैं ना कि राजनीति संभावनाओं और जरूरतों का खेल है। यहां कब कौन सी संभावनाएं जाग जाएंगी और किसकी जरूरत पड़ जाएगी, कोई नहीं जानता। और इस बात को आप भले ही थोड़ा कम समझती हो पर कांग्रेस अच्छी तरह समझती है। इसीलिए यह वक्त की जरूरत ही है कि एक-दूसरे को पानी पी-पीकर कोसने वाली आप और कांग्रेस एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। अब दोनों पार्टियों के समझौते का भविष्य दिल्ली की जनता पर निर्भर करता है कि वह इंडी गठबंधन को समर्थन देती है या उसे अभी भी मोदी पर भरोसा है।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक