लखनऊ। फाइलेरिया से प्रदेशवासियों को बचाने के लिए स्वास्थ्य विभाग की ओर से आईवरमेक्टिन नाम की दवा खिलाई जा रही है। साल में एक बार खिलाई जाने वाली इस दवा से कोई भी शख्स फाइलेरिया से तो बचेगा ही, अन्य कई बीमारियां भी उसके पास नहीं आएंगी।
जी हां, आईवरमेक्टिन एक ऐसी दवा है जो कई रोगों में काम करती है। फाइलेरिया नियंत्रण अधिकारी सुदेश कुमार के मुताबिक आईवरमेक्टिन उन तीन दवाओं में से एक है जो फाइलेरिया मुक्त रखने के लिए किसी व्यक्ति को खिलाई जाती है। अन्य दो दवाएं अल्बिंडजॉल और डीईसी हैं।
उन्होंने बताया कि साल में एक बार ये दवाएं पांच साल तक खा लेने पर वह व्यक्ति फाइलेरिया मुक्त हो जाता है। सुदेश के मुताबिक आइवरमेक्टिन रात की खुजली (स्कैबीज) में भी काम करती है। पेट में छोटे कीड़ों को मारने में भी कारगर है। इसके अलावा जुएं मारने में भी काम आती है। मतलब यह दवा फाइलेरिया जैसी बीमारी से तो दूर रखेगी ही। इसको खाने पर स्कैबीज और दूसरे अन्य रोगों से भी बचेंगे। सुदेश ने बताया कि इन तीनों दवाओं के सेवन से बच्चों में पौष्टिक आहार का सेवन बढ़ता है जिससे उनका शारीरिक विकास भी बेहतर होता है।
फाइलेरिया के लक्षण : आमतौर पर फाइलेरिया के कोई लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते, लेकिन बुखार, बदन में खुजली और पुरुषों के जननांग और उसके आस-पास दर्द व सूजन की समस्या दिखाई देती है। इसके अलावा पैरों और हाथों में सूजन, हाथी पांव और हाइड्रोसिल (अंडकोषों की सूजन) भी फाइलेरिया के लक्षण हैं। चूंकि इस बीमारी में हाथ और पैर हाथी के पांव जितने सूज जाते हैं इसलिए इस बीमारी को हाथीपांव कहा जाता है। वैसे तो फाइलेरिया का संक्रमण बचपन में ही आ जाता है, लेकिन कई सालों तक इसके लक्षण नजर नहीं आते। फाइलेरिया न सिर्फ व्यक्ति को विकलांग बना देती है बल्कि इससे मरीज की मानसिक स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
फाइलेरिया से बचाव : फाइलेरिया चूंकि मच्छर के काटने से फैलता है, इसलिए बेहतर है कि मच्छरों से बचाव किया जाए। इसके लिए घर के आस-पास व अंदर साफ-सफाई रखें। पानी जमा न होने दें और समय-समय पर कीटनाशक का छिड़काव करें। फुल आस्तीन के कपड़े पहनकर रहें। सोते वक्त हाथों और पैरों पर व अन्य खुले भागों पर सरसों या नीम का तेल लगा लें। हाथ या पैर में कही चोट लगी हो या घाव हो तो फिर उसे साफ रखें। साबुन से धोएं और फिर पानी सुखाकर दवाई लगा लें।