आज 16 जून की सुबह एक दुखद खबर लेकर आयी। साठ के दशक के मशहूर अभिनेता व 110 से अधिक फिल्मों में मुक्तलिफ रोल निभा चुके अभिनेता, निर्माता व निर्देशक चंद्रशेखर (वैद्य) 98 की उम्र में सबको सोता छोड़कर खामोशी से दुनिया से विदा हो गये। मशहूर टीवी सीरियल “रामायण” में आर्य सुमंत का यादगार रोल करने वाले व 1953 में बड़े पर्दे पर अपनी पहली फिल्म “सुरंग” के साथ सबके जेहन पर छा गये। 1964 की म्यूजिकल हिट फिल्म “चा चा चा” में न केवल वे हीरो थे बल्कि उन्होंने उसका निर्माण व निर्देशन भी किया। इस फिल्म से मशहूर डांसर हेलन ने फिल्मी दुनिया में इंट्री की।
चंद्रशेखर औपचारिक रूप से तैयार होना पसंद करते थे। इस उम्र में भी वो रोज डिनर में चिकन या मटन बिरयानी के साथ सेवन-कोर्स भोजन पसंद करते थे। डिनर तो अक्सर 90 मिनट तक चलता। बेटे अशोक शेखर बताते हैं कि ‘पापा-जी’ सुबह 7.30 बजे उठते थे। अपनी पसंद के अनुसार कपड़े पहनते, सूखे मेवे, जूस या दूध के हल्के नाश्ते का आनंद लेते। बाहर बगीचे में दिन के कई अखबार पढ़ते थे। थोड़ा टीवी देखते नाश्ते में सूप के साथ शुरू होने वाला दिन मिठाई के साथ समाप्त होता। पूरे सात कोर्स के भोजन में शामिल होता था, जो अक्सर 90 मिनट तक चलता।
7 जुलाई, 1923 को तत्कालीन हैदराबाद राज्य में जन्मे, चंद्रशेखर को कम उम्र से ही फिल्मों की जादुई दुनिया से प्रभावित किया था। शिकायत हुई और उन्हें कॉलेज से बाहर कर दिया गया। चूंकि वह हिंदी और उर्दू में पारंगत थे। कई लोगों ने उन्हें क्षेत्रीय तेलुगु फिल्मों के बजाय हिंदी फिल्म उद्योग में किस्मत आजमाने की सलाह दी और 1940 के दशक की शुरुआत में वेस्टेन डांस में डिप्लोमा के साथ वे बॉम्बे आए।
गायिका शमशाद बेगम की सिफारिश से चंद्रशेखर को पुणे में शालीमार स्टूडियो में नौकरी मिल गई। नाम और प्रसिद्धि जल्द ही फिल्म ‘बेबास’ (1950) के साथ पहली ‘चॉकलेट-हीरो’ भारत भूषण के साथ आई। भारत भूषण और चंद्रशेखर के बीच एक बंधन विकसित हुआ, जिसने बाद में एक स्थापित अभिनेता के रूप में फिल्म उद्योग में मजबूती से पैर जमाने में मदद की। इन वर्षों में उन्होंने अपनी पहली फिल्म “सुरंग” (1953) के बाद “कवि”, “मस्तान” (1954), “बारादरी” (1955), “बसंत बहार” (1956), “काली” जैसी कई प्रमुख फिल्मों में अभिनय किया। “काली टोपी लाल रुमाल” (1959), “बरसात की रात” (1960) व “बात एक रात की” (1961) से पुख्ता पहचान बना ली।
बाद में उन्होंने अपनी खुद की फिल्में बनाने का फैसला किया और “चा चा चा” और “स्ट्रीट सिंगर” जैसी प्रमुख हिट फिल्मों में एक निर्देशक, निर्माता, लेखक, अभिनेता, नर्तक आदि के रूप में प्रसिद्ध हो गये। इसके बाद “किंगकांग” (1962), “रुस्तम-ए-बगदाद” (1963), “सरदार”, “कन्यादान” (1968) सीरियल “रामायण” (1987) में यादगार आर्य सुमंत की भूमिका अदा की। “कटी पतंग”, “महबूबा”, “नमक हलाल”, “बरसात की एक रात”, “कुली”, “शराबी”, “शक्ति”, ” वरदान”, “अजनबी” के अलावा “खौफ” (2000) की। उसके बाद उन्होंने आधिकारिक तौर पर बॉलीवुड से संन्यास ले लिया।
वे बॉलीवुड के उन अभिनेताओं में से हैं जिन्होंने उस युग के शीर्ष निर्देशकों और मेगा-स्टार्स के साथ काम किया जिनमें वी शांताराम, नितिन बोस, देवकी बोस, विजय भट्ट, भगवान, बीआर चोपड़ा, प्रकाश मेहरा, मनमोहन देसाई, शक्ति सामंत , रामानंद सागर, प्रमोद चक्रवर्ती, दिलीप कुमार, देव आनंद, राजेंद्र कुमार, भारत भूषण, दारा सिंह, राजेश खन्ना, मनोज कुमार और अमिताभ बच्चन प्रमुख रहे।
उन्होंने कई वर्षों तक सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन (CINTAA) के अध्यक्ष के रूप में उद्योग में काम किया। इसके अलावा उन्होंने फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लॉइज के अध्यक्ष, अखिल भारतीय फिल्म कर्मचारी परिसंघ, भारत के सिने आर्टिस्ट वेलफेयर फंड के ट्रस्टी और सिने आर्टिस्ट वेलफेयर ट्रस्ट, भारतीय फिल्म निर्देशक संघ के उपाध्यक्ष पद पर कार्य किया। राइटर्स एसोसिएशन, इंडियन मोशन पिक्चर्स प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन और कई आधिकारिक सरकारी समितियों और पैनलों पर रहे।
चंद्रशेखर अपने पीछे अशोक शेखर (64) व अनिल शेखर (58) अशोक के बेटे विशाल शेखर, एक प्रतिष्ठित विज्ञापन फिल्म निर्माता, मेडिको, रेणु अरोड़ा (74) (चंद्रशेखर की बेटी) और उनके बेटे शक्ति अरोड़ा, जो “पवित्र रिश्ता” जैसे टेलीसीरियल्स में अभिनेता हैं।
प्रस्तुति – प्रेमेंद्र श्रीवास्तव