संगमन… अर्थात मिलना-जुलना। संगमन… एकजुट होना… एकत्र होना। जी हां, चाहे पारिवारिक स्तर पर हो या सामाजिक स्तर पर हो या फिर व्यापक स्तर पर हो… संगमन किसी भी स्तर पर अति आवश्यक है। अहा जिंदगी से लेकर वाह जिंदगी तक… जिंदगी की खुशहाली के लिए बेहद महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है कि संगमन हो। संगमन धार्मिक, आध्यात्मिक एवं सामाजिक स्तर पर व्यक्ति को एक विशेष चेतना प्रदान करता है। संगमन वस्तुत: एक सनातन संस्कार है। जिसे अंगीकार करना चाहिए।
एक सफल कुटुम्ब-परिवार के लिए आवश्यक है कि परिवार के सदस्यों के बीच संगमन हो। इसके लिए कतई आवश्यक नहीं है कि संगमन स्वरूप वृहद हो। संगमन का आशय सद्भावना, समर्पण, आत्मीयता, आदर-सम्मान, निष्ठा आदि इत्यादि। किसी परिवार में पति-पत्नी एवं दो बच्चे हैं तो भी संगमन किया जा सकता है। परिवार में पति-पत्नी एवं दो बच्चे हैं तो घर-आंगन में संगमन कर सकते हैं। संगमन में किसी प्रकार की आैपचारिकता की कोई आवश्यकता नहीं होती। यह पारिवारिक संगमन संभव हो तो नित्य करना चाहिए लेकिन यदि नित्य संभव न हो तो सप्ताह में एक बार अवकाश के दिन अवश्य करना चाहिए।
कारण, इस साप्ताहिक संगमन से पारिवारिक सदस्यों को एक उत्साह, ऊर्जा एवं आनन्द की अनुभूति मिलेगी। इतना ही नहीं, इस संगमन से सम्पूर्ण परिवार को आध्यात्मिक शक्ति भी मिलेगी। यह आध्यात्मिक शक्ति किसी भी गम्भीर संकट में भी संजीवनी साबित होगी। पारिवारिक संगमन केे लिए घर-आंगन में एक स्थान निश्चित करना चाहिए। इस निश्चित स्थान पर घर-परिवार के सभी सदस्यों को आसन बिछा कर बैठना चाहिए। संगमन में सर्वप्रथम अपने आराध्य के प्रति समर्पण की भावना प्रकट करनी चाहिए।
प्रारम्भ में कुछ पल-क्षण ईश्वर का ध्यान-भजन करें। ईश्वर के ध्यान-भजन के दौरान परिवार के सभी सदस्यों को ताली बजा कर ईश्वर का गुणगान कर स्वयं को जागृत करना चाहिए। ताली बजाने से व्यक्ति की सुप्तावस्था स्वत: चैतन्यता में परिवर्तित हो जाती है। यह अवस्था व्यक्ति को चैतन्यता के शिखर तक ले जाती है। व्यक्ति इससे अपने शरीर में एक शक्ति एवं स्फूर्ति के संचार का अहसास करता है। ध्यान-भजन की अवधि व्यक्ति को अपने समय की उपलब्धता एवं सरलता को ध्यान में रख कर तय करनी चाहिए। ध्यान-भजन केे तत्पश्चात परिवार के सदस्यों को आपसी संवाद पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। परिवार के सदस्यों को एक दूसरे को ध्यान एवं गम्भीरता से सुनना चाहिए।
कोई समस्या हो तो उसके निराकरण पर परामर्श भी किया जाना चाहिए। तत्पश्चात परिवार के सभी सदस्यों कोे एक साथ भोजन करना चाहिए। अब यदि घर-परिवार बड़ा है तो भी परिवार के सभी सदस्यों को संगमन में भागीदार बनना चाहिए। इस संगमन से परिवार के सभी सदस्यों को एक आत्मिक बल मिलता है। अब देेखें कि यदि परिवार अति विस्तृत हो चुका है आैर एक ही शहर या गांव में हैं तो भी प्रयास करना चाहिए कि पारिवारिक संगमन सप्ताह मे नहीं तो माह में एक बार अवश्य होना चाहिए। कारण, यह पारिवारिक संगमन आत्मिक शक्ति प्रदान करता है। अब यदि परिवार के अन्य सदस्य अन्य शहरों में रहते हैं।
मसलन, पुत्र-बहू, पुत्री-दामाद, चाचा-ताऊ, भाई-भतीजे अन्य शहर में निवास करते हैं तो माह के बजाय वर्ष मेें एक बार पारिवारिक संगमन अवश्य रखे। कारण, अन्य शहरों में प्रवास करने वाले बंधु-बांधव एवं अन्य स्वजनों के लिए प्रतिमाह यात्रा करना शायद संभव न हो। लिहाजा वर्ष में एक बार संगमन करें जिससे परिवार के सभी सदस्यों के बीच एक भावनात्मक जुड़ाव बना रहेगा। हां, प्रणाम एवं आशीर्वाद की परम्परा को नहीं भूलना चाहिए। संगमन समाप्त होने पर बड़ों का आदर करते हुए चरण स्पर्श-प्रणाम करना चाहिए।
बड़ोें को चाहिए कि छोटों को आशीर्वाद दें आैर छोटों के कल्याण की कामना करनी चाहिए। आपसी संवाद एवं भोजन साथ-साथ करने से आत्मिक परिवेश रचित होता है। लिहाजा आनन्द की एक सुखद अनुभूति होती है। इससे नई पीढ़ी को संस्कार मिलेंगे तो वहीं नई पीढ़ी अपने स्वजनों एवंं परिजनों से परिचित होती रहेगी। लिहाजा किसी भी परिवार में पारिवारिक संगमन बेहद आवश्यक है। इसे संस्कार का हिस्सा बनाना चाहिए।