मांग और आपूर्ति के दोहरे झटके लगे
कोविड ने अब तक असंभव समझी जाने वाली आर्थिक घटना को संभव कर दिखाया। बात हो रही है भारतीय अर्थव्यवस्था की। पहली बार अर्थव्यवस्था को मांग आघात और आपूर्ति आघात दोनों का एक साथ सामना करना पड़ा है।
भारतीय रिज़र्व बैंक पूरी ताकत के साथ अर्थव्यवस्था को भरपूर गति देने के प्रयास में आज 40 हजार करोड़ रु की सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद की और अगली तिमाही में भी 1.20 लाख करोड़ रु की सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद करने को दृढ़ है। इधर बारह महीनों में जनता के पास मुद्रा की मात्रा में 15.64 % की अनपेक्षित बढ़ोतरी दर्ज की गई। कुल मात्रा 3.79 लाख करोड़ रु बढ़कर 28 लाख करोड़ रु के स्तर को भी पार कर गई।
आर्थिक नियामक भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) गवर्नर ने जून बुलेटिन में अर्थव्यवस्था को विकास की पटरी पर गति देने संबंधी उपायों का जिक्र करते हुए सकारात्मक खाका खींचा। उनका कहना है कि चालू तिमाही में 18.5%, दूसरी में 7.9%, तीसरी में 7.2 % और अंतिम तिमाही में 6.6 % की विकास दर रहने का संशोधित अनुमान है।
आरबीआई बाजार को सपोर्ट देने की रणनीति के तहत आज 17 जून को 40 हजार करोड़ रु की सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद करेगा और दूसरी तिमाही में भी द्वितीयक बाजार (सेकेंडरी मार्केट) से 1.20 लाख करोड़ रु की सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद करके अर्थव्यवस्था को गति देने की कोशिश में लगा रहेगा।
गवर्नर बुलेटिन में गवर्नर के दिए गए वक्तव्य में अर्थव्यवस्था की बहाली के प्रति दृढ़ विश्वास उजागर हुआ। उन्होंने कहा है कोविड की पहली लहर के सापेक्ष दूसरी लहर अधिक क्षतिकारक रही थी। गवर्नर ने बारिश से कृषि क्षेत्र में अच्छे परिणाम आने की आशा व्यक्त करते हुए ग्रामीण मांग में मजबूती रहने से देश की अर्थव्यवस्था को अच्छा सपोर्ट मिलने की उम्मीद जताई।
गवर्नर ने कहा कि 2, 3 और 4 जून को मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठकें हुईं और रेपो रेट, बैंक रेट और रिवर्स रेपो रेट यथावत रखने का निर्णय किया गया। रेपो रेट अब तक के न्यूनतम स्तर 4 % पर है, जो मई 2020 से बरकरार है। बैंक रेट 4.25%, रिवर्स रेपो रेट 3.35 % पर है। आरबीआई जिस ब्याज दर पर बैंकों को प्रतिभूतियों पर अल्पकालिक उधार देता है उसे रेपो रेट, और बैंकों की अपने पास जमा राशि पर जितनी दर से ब्याज देता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं। बैंक रेट वह है जिसपर आरबीआई बैंकों को दीर्घकालिक उधार देता है।
आरबीआई चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में 4 जून तक 37955 करोड़ रु की सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद कर चुका है। इसके अलावा बैंकिंग क्षेत्र में पर्याप्त तरलता बनाए रखने के लिए 15 हजार करोड़ रु की अतिरिक्त तरलता सुविधा (लिक्विडिटी विंडो) 2022, मार्च तक उपलब्ध रहेगी। बैंक इसके माध्यम से जरूरतमंद एमएसएमई को सहायता मुहैया करा सकते हैं।
आरबीआई ने भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) को भी 16 हजार करोड़ रु की तरलता सुविधा मुहैया कराई है। बुलेटिन के अनुसार कोविड से देश में दो लाख करोड़ रु की उत्पाद हानि का अनुमान लगाया गया है। बताते चलें कि पिछले बारह महीनों के अंतराल में चलन में मुद्रा की मात्रा (करेंसी इन सर्कुलेशन) में 3 लाख 84 हजार 190 करोड़ रु अर्थात 15.22 % की बढ़ोतरी दर्ज की गई जोकि अपने आप बहुत है।
2020, 24 अप्रैल को चलन में 25 लाख 22 हजार 970 करोड़ रु से बढ़कर 2021, 23 अप्रैल को 29 लाख 7 हजार 160 करोड़ रु के स्तर पर आ पहुंची। कोविड के चलते भविष्य को लेकर आशंका ग्रस्त जनता ने अपने पास नकदी काफी रखी हुई है। आरबीआई की रपोर्ट के अनुसार 2020, 24 अप्रैल से 2021, 23 अप्रैल के बीच जनता के पास मुद्रा मात्रा 15.64% बढ़कर 24 लाख 24 हजार 665 करोड़ रु से 28 लाख 3 हजार 941करोड़ रु हो गई। चलन में मुद्रा का इतना अधिक होना स्वस्थ संकेतक नहीं है।
देश में वित्त क्षेत्र की एक कद्दावर हस्ती और निजी क्षेत्र के एक प्रमुख बैंक के प्रमोटर ने अर्थव्यवस्था की रफ़्तार बढ़ाने के खातिर आरबीआई को अधिक मात्रा में नोट छापने का सुझाव तक दे डाला। हालांकि सुर्खियों में आने के बाद आरबीआई गवर्नर ने उक्त सुझाव को सिरे से नकार भी दिया।
प्रणतेश नारायण बाजपेयी