सत्ता, धनबल एवं बाहुबल का होता है अध्यक्ष एवं प्रमुख का चुनाव

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प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायती व्यवस्था लागू होने के बाद सपा, बसपा एवं वर्तमान में भाजपा तीनों बहुमत की सरकारें जिला पंचायत अध्यक्ष एवं ब्लॉक प्रमुख का चुनाव सीधे जनता से कराने का हिम्मत नहीं जुटा पायी। यह दोनों चुनाव सत्ता की ताकत बाहुबल और धनबल का होता है। इन दोनों पदों का चुनाव जीत हार से विधानसभा चुनाव का आंकलन करना उचित नहीं है बल्कि हम इसे एक राजनीतिक बेवकूफी की संज्ञा दे सकते हैं। यह चुनाव जो भी सरकार रही है उसने धनबल, सत्ता बल और बाहुबल के सहारे जीता है।

भारतीय जनता पार्टी के 17 अध्यक्ष निर्विरोध जीते है। धनबल, बाहुबल और सत्ताबल के ताकत से अधिक से अधिक पदों पर कब्ज़ा करने का अभियान जारी है। कितनी सीटों पर कब्ज़ा हो पायेगा यह 3 जुलाई को चुनाव प्रक्रिया पूरी होने के बाद पता चलेगा। यह कड़वी सच्चाई है कि अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख दोनों पदों पर खरीद फरोख्त करके सत्ता की ताकत दिखा कर कब्ज़ा होता रहा है और यह पहली बार नहीं हो रहा है।

1995 में पहली बार 73वां संविधान संशोधन लागू होने के बाद अध्यक्ष और प्रमुख के चुनाव हुए थे तो उस समय भी तत्कालीन सपा सरकार ने ताकत और सत्ता बल पर तीन चौथाई पदों पर कब्ज़ा किया था। यह प्रक्रिया 2000 भाजपा सरकार, 2005 सपा सरकार, 2010 बसपा सरकार और 2015 में फिर सपा सरकार में जारी रहा। आज सपा, भाजपा पर आरोप लगा रही है लेकिन सपा सरकार में भी 36 जिला पंचायत अध्यक्ष और 279 ब्लॉक प्रमुख निर्विरोध चुने गए थे। इन दोनों पदों पर सामान्यतया जिले का जो प्रभावशाली नेता होता है उसके परिवार के सदस्य रिश्तेदार या फिर डम्मी प्रत्याशी काबिज होते हैं।

इन दोनों पदों की खूबसूरती यह है कि सत्ता परिवर्तन के साथ ही जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख सत्ता के साथ जुड़ जाते हैं और अगर नहीं जुड़ते तो नई सत्ता उन्हें अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से हटा करके अपने दल के किसी भी बाहुबली धनबली को अध्यक्ष और प्रमुख बना देती है। यह दोनों पद राजनीति के भ्रष्टतम चरित्र का सबसे बड़ा उदहारण है।

पंचायती राज व्यवस्था की मंशा को सभी राजनीतिक दल बसपा, सपा, भाजपा, कांग्रेस ने मिलकर बहुत अशोभनीय शब्द लिख रहा हूँ- रेप जैसा आचरण किया और पंचायती राज व्यवस्था को घुट-घुट कर तड़प तड़प कर बर्बादी के कगार पर पहुंचा दिया है। किसी राजनीतिक दल की हैसियत नहीं है कि वह जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख का चुनाव शहरी निकायों के मेयर एवं नगर पालिका परिषद् और नगर पंचायत के अध्यक्षों की तरह सीधे करा सके।

वर्तमान हालात में बसपा मुखिया ने चुनाव में अनियमितता के कारण लड़ने से मना कर दिया और अध्यक्ष और प्रमुख का पद सीधे जनता से चुनाव कराने का मांग कर रही हैं। ऐसी ही मांग सपा सरकार में अध्यक्ष और प्रमुख पदों पर जब सपाई कब्ज़ा कर रहे थे तब भाजपा ने मांग की थी। योगी आदित्यनाथ सरकार में भी जिनका तीन चौथाई का बहुमत है उसी तर्ज का तांडव वैसी ही गुंडागर्दी, खरीद-फरोख्त का आचरण कर रही है जैसा पूर्व सरकारों में होता रहा है।

73वां सविधान संशोधन के बाद महात्मा गाँधी के जिस ग्राम स्वराज की परिकल्पना और समाज के अंतिम व्यक्ति के जीवन स्तर को उठाने के लिए की गयी थी उसे राजनीतिक भ्रष्टाचार ने तार-तार कर दिया है। सपा, बसपा, भाजपा कांग्रेस सभी ने मिलकर महात्मा गाँधी के ग्राम स्वराज के सपने को चकनाचूर किया है। मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि अगर सरकारों ने ईमानदारी से त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था को लागू किया होता तो आज ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली, पानी, सड़क, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मूलभूत आवश्यकताये आवश्यतानुसार पूरी हो गयी होती लेकिन दुर्भाग्य वश ऐसा नहीं हुआ।

पंचायतें ग्राम पंचायत से लेकर क्षेत्र पंचायत जिला पंचायत सभी एक लूट का अड्डा बन गयी है। जो भी आता है प्रधान हो प्रमुख हो जिला पंचायत अध्यक्ष हो अपने अपने तरीके से लुटता है और फिर कार्यकाल पूरा होने पर नए चुनाव की तैयारी और लूटने की प्रत्याशा में गोटे बिछाना शुरू कर देता हैं। जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में सत्ताबल, धनबल, बहुबल का प्रयोग हो रहा है ऐसा ही प्रयोग ब्लॉक प्रमुख चुनाव में होगा। दोनों पदों पर चुनाव के बाद विधानसभा के चुनाव होंगे और जो भी सरकार होगी उसके अनुसार इन पदों का समायोजन फिर से शुरू हो जायेगा।

योगी सरकार की तरह 2016 में जब दो तिहाई से अधिक पदों पर तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अध्यक्ष और प्रमुख पदों पर कब्ज़ा किया था तो इसे जनादेश बताते हुए 2017 में पूर्ण बहुमत सरकार बनाने के घोषणा की थी। लेकिन 2017 में सपा का हश्र क्या हुआ ? मात्र 47 सीटों पर सिमट गई। योगी आदित्यनाथ एवं भाजपा के नेताओं को भी इतिहास से सीखना चाहिए। जिला पंचायत अध्यक्ष और प्रमुख चुनाव की जीत को जनादेश नहीं मानना चाहिए क्योकि विधानसभा चुनाव का अध्यक्ष और प्रमुख चुनाव से कोई तुलना नहीं हो सकती है।

राजेन्द्र द्विवेदी, वरिष्ठ पत्रकार