नई दिल्ली। दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। इसी तर्ज पर भारत का विपक्ष सत्ताधारी भाजपा और एनडीए के खिलाफ फिर एकजुट होता दिखाई दे रहा है। लोकसभा चुनाव के बाद दिल्ली का विधानसभा का चुनाव आते-आते लगभग बिखर सा गया विपक्ष, अब एक बार फिर वक्फ संशोधन बिल पर एक होकर आक्रामक दिखाई दे रहा है। इस बिल को जहां सत्ता पक्ष पास कराने पर आमादा दिखाई दे रहा है, वहीं विपक्ष तुष्टीकरण के चक्कर में इसके खिलाफ आवाज बुलंद किए हुए है। बीते 13 फरवरी को संसद के दोनों सदनों में जेपीसी की 482 पन्नों रिपोर्ट को पेश किया गया तो हंगामा हो गया। विपक्ष ने इसे संसदीय लोकतंत्र की हत्या करार दिया तो सत्ता पक्ष ने आरोप को गलत करार दिया। विपक्ष का कहना था कि जेपीसी में संख्या बल के आधार पर विपक्ष की आवाज को दबाया गया है। खैर, जो भी हो अंततः जेपीसी का मसौदा संसद में चर्चा के लिए स्वीकार कर लिया गया है।
विपक्ष के वाक आउट के बाद लोकसभा की कार्रवाई 10 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी गई है। राज्यसभा में भी विपक्ष ने हंगामा करते हुए सदन से वाकआउट किया। अब विपक्ष के तेवर देखकर तो यही लगता है कि 10 मार्च या उसके बाद चर्चा के दौरान इस पर जबरदस्त हंगामा होने के आसार हैं। वैसे इस बिल को संसद से पास कराना सत्ता पक्ष के लिए टेढ़ी खीर साबित होगा। क्योंकि सत्ता में बैठे कुछ दल भी अपने वोट बैंक की राजनीति के चलते शायद खुलकर इसका समर्थन न कर पाएं। एक तरह से यह मोदी सरकार के लिए अग्नि परीक्षा भी साबित होगा। लोकसभा में इस संशोधित बिल को जेपीसी के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने तथा राज्यसभा में मेघा कुलकर्णी ने पेश किया।
देश में इस समय तुष्टीकरण की राजनीति का औजार बने वक्फ संशोधन बिल के संसद के दोनों सदनों में पेश होते ही आशंका के अनुरूप जमकर बवाल हुआ। दोनों ही सदनों से विपक्ष ने बहिर्गमन किया। राज्यसभा में तो तीन विपक्षी सदस्यों को पूरे दिन के लिए निलंबित भी कर दिया गया। विपक्ष का आरोप है कि जेपीसी ने जो संशोधित मसौदा पेश किया है उसमें विपक्ष के सदस्यों के सुझाव हटा दिए गए हैं। उनकी बातों को रेफरेंस के रूप में भी नहीं रखा गया है। जबकि सत्ता पक्ष का कहना था कि आरोप गलत है। एआइएमआइएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी इस मामले में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से भी मिले, जिन्होंने उचित फैसला लेने का आश्वासन दिया। ओवैसी का आरोप है कि यह बिल वक्फ बोर्ड की आत्मा को मारने वाला है, और हम इसे किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे। और लगभग यही बात कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी कहा है। उनका कहना था कि बहुमत के बल पर विपक्ष की आवाज दबाई गई है, जो स्वस्थ संसदीय परंपराओं के लिए ठीक नहीं है।
राज्यसभा में इस संशोधित बिल को मेघा कुलकर्णी ने के साथ जब गुलाम अली ने पेश किया तो हंगामा शुरू हो गया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और आप नेता संजय सिंह ने इसे तुरंत खारिज करने की मांग की। यह भी आरोप लगाया गया कि रिपोर्ट से कई बातें हटा दी गई हैं जो चर्चा के दौरान स्वीकृत हुई थीं। खड़गे ने कहा कि यह रिपोर्ट असंवैधानिक है, इसे तुरंत खारिज कर वापस जेपीसी में भेजा जाए। आप के संजय सिंह ने कहा कि हमारी बातों पर चर्चा भी नहीं की गई और सीधे कूड़ेदान में फेंक दिया गया। यह असंवैधानिक है। इस पर राज्यसभा के स्पीकर जगदीप धनखड़ ने कहा कि आप चर्चा के समय अपनी बात कह सकते हैं। अभी सिर्फ रिपोर्ट टेबल की गई है, अभी इस पर चर्चा नहीं हो रही है। इस पर संसदीय कार्य और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री किरेन रिजीजू ने कहा कि हालांकि जेपीसी के अध्यक्ष को यह पावर है कि उन्हें कुछ भी गलत लगता है तो वे उसे रिपोर्ट में से हटा सकते हैं। किंतु मैं इस बात का एश्योर करता हूं कि इसमें से कुछ भी नहीं हटाया गया है। सारी रिपोर्ट और सारे रेफरेंस इसमें लगे हुए हैं। इसके बाद भी यदि विपक्ष को लगता है कि कुछ हटाया गया है तो वे बिल पर चर्चा के दौरान अपनी बात कह सकते हैं। पर विपक्षी सदस्य इससे संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने सदन से वाकआउट कर दिया। रास मे अपनी बात रखते हुए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि जेपीसी की इस फर्जी रिपोर्ट को हम कभी भी नहीं मानेंगे। इस पर सदन में के नेता जेपी नड्डा ने कहा कि विपक्ष देश को कमजोर करना चाहता है, वह विदेशी ताकतों के प्रभाव में आकर संसदीय व्यवस्था को कमजोर करना चाहता है। यह ठीक बात नहीं है। उन्होंने कहा कि विपक्ष का उद्देश्य बिल पर चर्चा करना नहीं, सिर्फ हंगामा खड़ा करना है। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ लोग देश के खिलाफ ही लड़ना चाहते हैं। विपक्ष इस मामले में देश कमजोर करने के लिए तुष्टीकरण की राजनीति कर रहा है।
उधर इस संशोधित बिल को जब लोकसभा में जगदम्बिका पाल ने पेश किया तो वहां भी विपक्ष ने हंगामा करते हुए वाक आउट कर दिया। इसके बाद लोकसभा की कार्रवाई 10 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी गई। इस मामले में गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि चर्चा के दौरान विपक्ष अगर कोई संशोधन चाहता है तो हमें कोई आपत्ति नहीं है। संसदीय व्यवस्था के तहत विपक्ष इस बिल में जो कुछ भी जोड़ना चाहता है जोड़े, हमें कोई आपत्ति नहीं है। उधर एआइएमआइएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी का आरोप है कि यह संशोधन वक्फ बोर्ड को बर्बाद करने की साजिश है, वक्फ बोर्ड की जमीनें हड़पने की कोशिश है। उन्होंने भी आरोप लगाया कि हमारी बातों को रिपोर्ट में से हटा दिया गया है।
आप के सांसद संजय सिंह ने आरोप लगाया कि सत्ता पक्ष अभी तो सिर्फ वक्फ संशोधन बिल लेकर आ रहा है। कल को वह मंदिरों, मस्जिदों और गुरुद्वारों को भी हड़पने के लिए बिल लेकर आएगा। इस मामले में लगभग यही आरोप कांग्रेस पार्टी के सांसद प्रमोद तिवारी ने भी लगाया। इसके अलावा कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा कि वक्फ बिल पर मुसलमानों के साथ अन्याय करने की कोशिश की जा रही है। इस घटना को इतिहास में काले अक्षरों में लिखा जाएगा। उनका भी आरोप है कि इस मामले में सरकार द्वारा संख्या बल के आधार पर विपक्ष की आवाज दबाने की कोशिश की गई है। इसके अलावा समाजवादी पार्टी की डिंपल यादव, टीएमसी की सुष्मिता देव और कल्याण बनर्जी ने भी इस बिल का विरोध किया है। इस बाबत समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजकुमार भाटी ने कहा है कि ये भ्रम फैलाया जा रहा है कि वक्फ बोर्ड जिस भी जमीन पर हाथ रख देता है, वह उसकी हो जाती है। पर ऐसा नहीं है। अगर ऐसा ही होता तो दावा तो संसद भवन, दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा और प्रयागराज में महाकुंभ कुंभ की जमीन पर किया गया था। तो क्या वह प्रापर्टियां वक्फ को दे दी गईं, नहीं। यह सब वक्फ बोर्ड को बदनाम करने की साज़िश है। जबकि भाजपा प्रवक्ता शाजिया इल्मी का कहना है कि वर्तमान वक्फ बोर्ड की आड़ में पूरे देश में लैंड माफिया पैदा हो रहे हैं। जिनका मकसद सिर्फ अपना स्वार्थ सिद्ध करना है, उसका गरीबों की सेवा से कोई मतलब नहीं है। संशोधित नया बिल इसी गड़बड़ी को रोकने के लिए है। वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी का कहना है कि जब तीन तलाक का कानून आया था, तब भी ऐसा ही विवाद हुआ था। लेकिन कानून बन जाने के बाद मुस्लिम महिलाओं ने ही इसका समर्थन किया था। क्योंकि वह कानून उनके हक की रक्षा करता है। ठीक उसी तरह वक्फ का कानून भी किसी के खिलाफ नहीं है। बस सरकार को ये कोशिश करनी होगी वह किसी तरह मुस्लिमों को समझाए कि नया कानून उनके खिलाफ नहीं है। जिस दिन सरकार इसमें सफल हो जाएगी, उस दिन से इस बिल से कोई दिक्कत नहीं होगी। उधर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष अब्दुल्ला सैफुल्लाह रहमानी ने भी कहा है कि ये ये लड़ाई हिंदू-मुस्लिम के बीच नहीं है। ये मुसलमानों के हक की लड़ाई है। और हम इसमें पीछे नहीं रहेंगे। बोर्ड के महासचिव ने कहा कि बोर्ड ने अपनी तरफ से 5 करोड़ लोगों का संदेश जेपीसी में भेजा था, लेकिन रिपोर्ट में उसका कोई जिक्र नहीं है। ऐसे में हमें लगता है कि हमारे साथ धोखा हुआ है। परंतु हम अपने मजहब पर चोट बर्दाश्त नहीं कर सकते। खुदा न खास्ता अगर ये बिल क़ानून बन भी जाता है तो हम इसे कोर्ट में चैलेंज करेंगे।
जेपीसी धोखा, संशोधन मंजूर नहीं- जवाद : इस संशोधित बिल की कड़ी निंदा करते हुए मजलिस उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना सैय्यद कल्बे जवाद नक़वी ने कहा कि संयुक्त संसदीय समिति के गठन के तुरंत बाद हमने कहा था कि यह केवल धोखा देने के लिए है। और आज हमारी बात सच साबित हुई। मौलाना ने कहा कि जिस तरह से संयुक्त संसदीय समिति ने मनमाने ढंग से बैठकें कीं और सरकार समर्थकों को ही सिर्फ विधेयक पर विचार व्यक्त करने के लिए आमंत्रित किया, उससे पता चल रहा था कि औक़ाफ़ पर सरकार की नीयत ठीक नहीं है। इसके अलावा वक्फ संशोधन बिल पर शिया वक़्फ़ पर पक्ष रखने के लिए किसी प्रतिनिधि को आमंत्रित नहीं किया गया। इसके अलावा उलेमा और राष्ट्रीय संगठनों की ओर से पेश किये गये प्रस्तावों को पढ़ने की भी ज़हमत नहीं उठाई गयी। ये कमेटी सिर्फ धोखा देने के लिए बनाई गई थी। सरकार नज़ूल को समझे बिना औक़ाफ़ पर कब्ज़ा करने की योजना बना रही है। मौलाना ने कहा कि जिन लोगों ने अंग्रेज़ों का विरोध किया, उनकी संपत्तियां नुज़ूल में दर्ज कर दी गईं थीं। ऐसे में क्या हमें देशभक्त होने की सज़ा मिल रही है? उन्होंने कहा कि यह जिम्मेदारी कांग्रेस की थी कि वो वक़्फ़ संपत्ति को नज़ूल से बाहर कर वक़्फ़ में दर्ज कराए, पर कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया। और जहां तक बीजेपी की बात है, तो वह कांग्रेस की नीतियों को ही आगे बढ़ा रही है। इसलिए हम इस मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का पूरा समर्थन करते हैं, और उनके हर आंदोलन में शामिल रहेंगे। हमारा यह भी मानना है कि जो वक्फ बचाओ आंदोलन में शामिल नहीं होगा, क़ौम का गद्दार माना जाएगा। मौलाना ने कहा कि यह वक़्फ़ बिल नहीं,सांप का बिल है, जो औक़ाफ़ को डंसने के लिए लाया गया है। जो लोग पद की लालच में इस बिल का समर्थन कर रहे हैं वो क़ौम के प्रति ईमानदार नहीं हैं। उन्होंने आगे कहा कि इस मामले में राजनीतिक दल भी मुसलमानों के प्रति ईमानदार नहीं हैं, इसलिए उन पर भरोसा न किया जाय।
आखिरकार संशोधन में दिक्कत क्या है : सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार देश भर में 8,17000 वक्फ प्रॉपर्टी हैं। इनका कुल क्षेत्रफल लगभग 9.50 लाख एकड़ है। इन सभी वक्फ प्रॉपर्टी की अनुमानित कीमत 1.02 लाख करोड़ बताई जा रही है। सूत्रों ने बताया कि आजादी के समय भारत में कुल 52000 वक्फ प्रॉपर्टी थीं जो 2024 में 8 लाख से ज्यादा हो गई हैं। और इसी तरह वक्फ दावे करता रहा तो 2025 में इनकी संख्या 9 लाख का आंकड़ा पार कर जाएगा। सूत्रों ने कहा कि ऐसा वक्फ को मिले असीमित अधिकारों के कारण है। जानकारों के अनुसार वक्फ बोर्ड ने अगर किसी प्रॉपर्टी को अपना बता दिया तो वह वक्फ को मिल जाती है। हालांकि इसके खिलाफ वक्फ ट्रिब्यूनल में शिकायत की व्यवस्था है, पर सामान्यतः वह वक्फ के पक्ष में ही फैसले देता है। इसके बाद उसके आदेश को किसी भी सिविल कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जा सकता। सिर्फ हाई कोर्ट ही इस मामले में कोई आदेश दे सकता है, लेकिन तब तक वह प्रॉपर्टी वक्फ के ही कब्जे में रहती है। नए संशोधन में इन्हीं सब दिक्कतों को दूर करने की बात कही जा रही है। इसी तरह कब्जे के आधार पर भी किसी प्रॉपर्टी को वक्फ प्रॉपर्टी मान लिया जाता है। आरोप यह भी है कि वक्फ का उद्देश्य इस पुराने कानून से पूरा नहीं हो रहा है, गरीब मुसलमानों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है। आरोप यह भी है कि मुस्लिम बिरादरी के तमाम बड़े नेताओं और मौलानाओं ने वक्फ के नाम पर जमीनों पर कब्जा कर अपना साम्राज्य खड़ा किया है। ऐसे में उन्हें इस बात का भय हो गया है कि यदि वक्फ बोर्ड के कानून में संशोधन हुआ तो उनके साम्राज्य पर सरकार का हस्तक्षेप हो जाएगा। इसी के चलते वे इस संशोधन का विरोध कर रहे हैं। आरोप तो यहां तक है कि असदुद्दीन ओवैसी की हैदराबाद की तमाम प्रॉपर्टी वक्फ की जमीनों पर कब्जा करके बनाई गई हैं।
प्रयागराज महाकुंभ की भूमि पर ठोंका था दावा : मुस्लिम नेता मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने कुछ दिन पहले प्रयागराज में महाकुंभ की 55 एकड़ जमीन पर वक्फ की प्रॉपर्टी होने का दावा कर सनसनी फैला दी थी। उन्होंने कहा था कि महाकुंभ मेले की 55 एकड़ जमीन वक्फ की प्रापर्टी है। जब इस पर हो हल्ला हुआ तो उन्होंने सफाई दी कि यह उनकी जानकारी की बात नहीं है, उनको किसी ने बताया है। इस मामले पर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा था कि यदि दावा करने वालों के पास कोई सबूत हो तो उसे पेश करें, अन्यथा इस तरह बयान देकर विवाद न पैदा करें। आखिरकार मौलाना बरेलवी की ओर से कोई सबूत तो नहीं आया, हां मौलाना इस मुद्दे पर अपनी बात से पलट जरूर गये। इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तब कहा था कि महाकुंभ की जमीन पर वक्फ का दावा करने वाले पहले अपना दामन बचा लें। हम पुराने कागज निकाल कर वक्फ की एक-एक इंच जमीन का हिसाब लेंगे। और जो भी जमीन गलत तरीके से वक्फ में शामिल की गई होगी, उसको वापस लेंगे। खैर मौलाना द्वारा अपना बयान वापस लेने के पर फिलहाल इस मामले का पटाक्षेप हो गया है। बताते हैं कि इसके बाद यूपी की प्रशासनिक मशीनरी सक्रिय भी हुई थी। और उसके आंकलन के मुताबिक अधिकतर वक्फ संपत्तियों के दावे गलत तथ्य देकर किए गए हैं। सूत्रों का कहना है कि अब इस पर महाकुंभ के पूर्ण होने के बाद कार्रवाई हो सकती है। यानी पिक्चर अभी बाकी है।
देश में और भी हैं वक्फ संपत्तियों के विवाद : अभी कुछ दिनों पहले ही कर्नाटका के विजयपुरा में किसानों की 1200 एकड़ जमीन पर वक्फ बोर्ड ने दावा किया है। वक्फ बोर्ड ने किसानों को नोटिस भी जारी कर दिया है। इस नोटिस के बाद सियासत तेज हो गई। दरअसल, विजयपुरा जिले के होनवाड़ा गांव की 1200 एकड़ जमीन पर शाह अमीनुद्दीन दरगाह ने अपना हक जता दिया है। इसके अलावा यूपी में ही काशी और मथुरा के मामले पहले से ही चल रहे हैं। तमिलनाडु में तो 1500 साल से भी पहले बने मंदिर वाले पूरे गांव को ही वक्फ की प्रॉपर्टी बता कर नोटिस जारी कर दिया गया जबकि इस्लाम धर्म का जन्म ही 1400 साल का बताया जाता है।
वक्फ बोर्ड का उद्देश्य : भारत में विशाल वक्फ बोर्ड का मुख्य उद्देश्य मुस्लिम समुदाय की सेवा करना है। पर भले ही वक्फ बोर्ड देश में जमीन के तीसरे सबसे बड़े मालिक के रूप में उभरा हो, लेकिन भारत के मुसलमान अब भी बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कई सामाजिक-आर्थिक संकेतकों पर तो वे दलितों से भी बदतर स्थिति में हैं। उधर वक्फ के जिम्मेदार आज भारत के सबसे बड़े जमींदार बने हुए हैं। असल में वक्फ इस्लामिक कानून में एक प्रकार का धर्मार्थ बंदोबस्त है। इसमें किसी संपत्ति का स्वामित्व अल्लाह को हस्तांतरित किया जाता है। और संपत्ति को स्थायी रूप से धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए समर्पित किया जाता है। वक्फ (वकीफ के रूप में जाना जाता है) बनाने वाला व्यक्ति उन उद्देश्यों का निर्देश दे सकता है जिनके लिए संपत्ति से उत्पन्न आय का उपयोग किया जाना चाहिए। इसमें गरीबों और ज़रूरतमंदों को सपोर्ट करना, मस्जिद या अन्य धार्मिक संस्थानों को बनाए रखना, शिक्षा की व्यवस्था करना, या अन्य धार्मिक कार्यों के लिए पैसा उपलब्ध करवाना शामिल है। इस तरह, वक्फ को धार्मिक दान का एक रूप माना जाता है, जो मुस्लिम समुदाय को समाज कल्याण में योगदान देने और आध्यात्मिक पुण्य अर्जित करने की अनुमति देता है। इन वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन एक वक्फ बोर्ड द्वारा किया जाता है, जो यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार होता है कि संपत्ति से होने वाली आय का उपयोग वक्फ और इस्लामी सिद्धांतों की इच्छा के अनुसार किया जा रहा है। पर पिछले दिनों कुछ शिकायतें आई थीं कि वक्फ की प्रॉपर्टी से होने वाली आय का दुरुपयोग हो रहा है। और गरीब मुस्लिमों को इसका कोई फायदा नहीं मिल रहा है। इसके अलावा वक्फ बोर्ड द्वारा लोगों की सम्पत्ति हथियाने वाले जमींदार के रूप में भी देखा गया है। आरोप तो यह भी है कि वक्फ के जिम्मेदार उसकी सम्पत्तियों पर अवैध कब्जा कर अपना निजी हित साध रहे हैं। इसीलिए वे वर्तमान व्यवस्था में बदलाव का विरोध कर रहे हैं। इन्हीं सब दिक्कतों के चलते केंद्र सरकार ने वक्फ संशोधन बिल लाने का फैसला किया है। एक जानकारी के अनुसार इस्लाम धर्म में 73 फिरके हैं। जैसे शिया, सुन्नी, मुहम्मदी, मजारी, बरेलवी, आला हजरती, अहले हदीस, अहमदिया आदि। एक फिरका जन्नती भी होता है। जानकारों का मानना है कि इन सभी फिरकों के वक्फ के तरीके भी अलग-अलग होते हैं। ऐसे में कुछ फिरकों को भी वक्फ बोर्ड की व्यवस्थाओं से परेशानी है।
अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक