कंगारू : लम्बी छलांग का महारथी

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‘कंगारू” को खिलंदड या नटखट खिलौना कहा जाये तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी क्योंकि ‘कंगारू” कभी शंात भाव से एकाग्र बैठा दिखेगा तो कभी लम्बी छलांग लगाते दिखेगा। भले ही उसका स्वभाव खिलंदडपन व नटखट नहीं होता लेकिन उसके क्रियाकलाप व हरकतें उसके चंचलपन को खुद-ब-खुद बयां करती हैं। वन्य जीव श्रंखला का जीव ‘कंगारू” खास तौर से आस्ट्रेलिया में घास के मैदानों, बाग-बगीचों व हरितिमा वाले खुले जंगलों में दिख जायेगा।

‘कंगारू” आस्ट्रेलिया के अलावा पापुआ न्यू गिनी व न्यूजीलैण्ड में भी पाया जाता है लेकिन आस्ट्रेलिया में ‘कंगारू” अपनी खास पहचान रखता है। ‘कंगारू” आस्ट्रेलिया का राष्ट्रीय पशु मान्य है। सामान्य तौर पर कंगारू की 21 प्रजातियां मानी जाती हैं  लेकिन कतिपय विशेषज्ञों की राय में कंगारू की प्रजातियां साठ से भी अधिक होती है। इनमें खास तौर से डोरकोपसिस, डेन्ड्रोलेग्स, पैडीमिलस, प्रोटेमनोडन, मैकरोपस, शैलधाकुरंग, ओनीकोगोल, शैलवेलेबी, नखपुच्छ, पैलर्किस्टिस, भीम कंगारू आदि होते हैं।

खास बात यह है कि कंगारू की कुछ प्रजातियों का रहन-सहन अलग-अलग होता है। डोरकोपसिस प्रजाति के कंगारू कुत्तों के आकार के होते हैं तो वहीं डेन्ड्रोलेग्स प्रजाति के कंगारू पेड़ों पर भी आसानी से चढ़ जाते हैं। प्रोटेमनोडन प्रजाति के कंगारू खास तौर से घास के जंगलों में रहते हैं तो शैलधाकुरंग, ओनीकोगोल, शैलवैलेबी व नखपुच्छ प्रजाति के कंगारू पहाड़ की खोह में भी पाये जाते हैं तो वहीं घास के मैदानों में भी दिखेंगे। पैलर्किस्टिस व भीम कंगारूओं का आकार सामान्य से कुछ अधिक होता है।

सामान्यत: कंगारूओं की ऊंचाई करीब दो मीटर होती है। इनका वजन 90 किलो के आसपास होता है। विशेषज्ञों के लिए अचरज का विषय यह है कि कंगारूओं के शिशुओं का अविकसित व आसामान्य होना क्योंकि कंगारूओं के शिशु जन्म के समय चार से छह इंच लम्बे होते हैं। ‘कंगारू” शिशुओं को अपने पेट के उपर व वक्ष स्थल के नीचे बनी त्वचा की सुरक्षित थैली में आश्रय देता है। शिशु बड़ा होने तक इसी सुरक्षित थैली में आश्रय पाता है। बड़ा होने पर शिशु थैली का आश्रय छोड़ कर स्वच्छंद विचरण करने लगता है।

विशेषज्ञों की मानें तो 12 से 17 माह तक शिशु स्तनपान करता है। इसके बाद वन्य क्षेत्र के खानपान पर निर्भर हो जाता है। कंगारू शाकाहारी होता है। घास-पत्ते,फल-फूल उसका भोजन होते हैं। कंगारू सामान्यत: शांतिप्रिय वन्य जीव होता है लेकिन आत्मरक्षा व सुरक्षा के लिए बेहद खतरनाक भी होता है। उसके आगे के पैर काफी छोटे होते हैं तो वहीं पीछे के पैर काफी लम्बे व ताकतवर होते हैं। आत्मरक्षा के लिए कंगारू बेहद गम्भीर हमला करता है जिससे हमलावर को पीछे हटना पड़ता है। कंगारू की पूंछ केवल देखने या दिखाने के लिए नहीं होती बल्कि उसकी पूंछ पांचवे पैर का काम करती है। पूंछ छलांग लगाने में काफी सहायक होती है तो वहीं बैठने में पूंछ एक तरह से स्टैण्ड का काम करती है। पीछे के दोनों पैरों व पूंछ से संतुलन बना कर कंगारू बैठता है।

कंगारू सामान्यत: चालीस से साठ किलोमीटर की रफ्तार से छलांग भरता है या दौड़ता है लेकिन उसकी छलांग लगाने की यह रफ्तार सत्तर से अस्सी किलोमीटर तक भी होती है। हालांकि  सामान्यत: उसकी छलांग लगाने या चलने की रफ्तार बीस से तीस किलोमीटर की होती है। कंगारू कभी-कभी सौ की संख्या में झुण्ड में भी दिख जायेंगे लेकिन कंगारूओं को झुण्ड में रहना पसंद नहीं होता। कंगारू एक बार में तीस फुट तक लम्बी छलांग लगा सकता है। वन्य जीवन में कंगारूओं को भी शिकार का खतरा रहता है।

विशेषज्ञों की मानें तो आस्ट्रेलिया में आैसत बीस प्रतिशत कंगारू शिकार में मारे जाते हैं। हालांकि आस्ट्रेलिया में कंगारूओं को अमूल्य पशु धरोहर के रूप में देखा जाता है। लिहाजा शिकार भी होता है। आस्ट्रेलिया दुनिया के पचास से अधिक देशों को कंगारूओं के मांस का निर्यात करता है। आस्ट्रेलिया सहित दुनिया के कई देशों में कंगारूओं के मांस को बेहद पंसद किया जाता है। मांस के अलावा उसकी पूंछ के सूप को भी पसंद किया जाता है। लिहाजा कंगारूओं का शिकार बड़े पैमाने पर होता है।