लखनऊ। राजनीतिक हलकों में इस बात की बड़ी चर्चा है कि यदि किन्हीं कारणों से इस बार भी राहुल गांधी की लॉन्चिंग फेल हो गई तो पार्टी का अगला चेहरा प्रियंका गांधी होंगी। ऐसा उनकी रायबरेली और अमेठी में सक्रियता और उसके बाद देश के बाकी जगहों में प्रचार के लिए बढ़ती उनकी डिमांड को देखकर कहा जा रहा है। जानकारों का कहना है कि रायबरेली और अमेठी में तो मतदान भी प्रियंका गांधी के चेहरे पर ही हुआ। चुनाव प्रचार के दौरान जितना अपीलिंग भाषण लोगों को प्रियंका का लगा उतना राहुल गांधी का नहीं। दोनों ही क्षेत्रों में उनकी बहुत डिमांड रही। कुल मिलाकर रायबरेली और अमेठी में सिर्फ कांग्रेस पार्टी का नहीं बल्कि प्रियंका गांधी का भी राजनीतिक भविष्य दांव पर है। कांग्रेसियों का कहना है कि रायबरेली और अमेठी से सांसद चाहे जो भी बने परंतु हार और जीत प्रियंका दीदी की ही होगी।
इंडी गठबंधन के लिए विशेषकर कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा की सीट बनी रायबरेली और अमेठी में राहुल गांधी और किशोरी लाल शर्मा के पर्चा दाखिले के बाद से ही प्रियंका ने यहां डेरा डाल दिया था। दोनों सीटों पर यह बात आम हो गई है कि चाहे राहुल गांधी जीतें-हारें या किशोरी लाल शर्मा, जीत और हार का श्रेय सिर्फ और सिर्फ प्रियंका गांधी को जाएगा। दो मई को दोनों सीटों पर नामांकन पत्र दाखिल होने के बाद प्रियंका गांधी ने इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया था।
कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि अमेठी से किशोरी लाल शर्मा तो डमी उम्मीदवार हैं। अगर वे जीत भी जाते हैं तो वहां प्रियंका गांधी की दावेदारी बनी रहेगी। और कभी भी उनसे इस्तीफ़ा दिलवाकर प्रियंका को दावेदार बनाया जा सकता है। हालांकि इस सच के बावजूद प्रियंका गांधी ने अपनी पूरी तवज्जो रायबरेली में ही रखी क्योंकि वह रायबरेली सीट जीतकर पार्टी जनों को भी मैसेज देना चाहती थीं कि वह कांग्रेस की परंपरागत सीट और मां की विरासत को बचा कर ले आई हैं। क्योंकि उन्हें इस बात की अच्छी तरह से जानकारी थी कि यदि राहुल गांधी रायबरेली से चुनाव हार जाते हैं तो यह उनके राजनीतिक छवि को बड़ा नुकसान पहुंचाएगा। और यदि राहुल वायनाड से भी जीत जाते हैं तो उन्हें पुरस्कार स्वरूप वायनाड सीट भी मिल सकती है। ऐसे में रायबरेली से जीतने के बाद प्रियंका गांधी के चुनावी कौशल पर भी मोहर लग जाएगी कि उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी राहुल गांधी को रायबरेली से जितवा दिया।
वैसे भी रायबरेली कांग्रेस और राहुल गांधी के राजनीतिक अस्तित्व से जुड़ी हुई है। प्रदेश की यही एकमात्र सीट है जहां से कांग्रेस को उम्मीद है। हालांकि भाजपा के दिनेश प्रताप सिंह ने राहुल गांधी को जोरदार टक्कर दी है। अब 4 जून को क्या रिजल्ट आएगा यह तो 4 जून को ही पता चलेगा किंतु लड़ाई कांटे की है, इसमें कोई शक नहीं। इसीलिए रायबरेली में अखिलेश यादव, राहुल गांधी और सोनिया गांधी की संयुक्त सभाएं करानी पड़ीं। सोनिया गांधी को चुनावी सभा के दौरान भावुक अपील भी करनी पड़ी कि राजीव गांधी के बाद आप लोगों ने मुझे संभाला और समर्थन दिया। अब मैं आपको अपना बेटा सौंप रही हूं, इसका ख्याल रखना आपका काम है। इसे जिताइए यह आपकी उम्मीदों पर खरा उतरेगा।
प्रियंका गांधी ने भी रायबरेली में अपनी प्रतिष्ठा लगा दी थी। राहुल गांधी चूंकि प्रचार करने के लिए बाहर जाते रहे इसलिए भी रायबरेली में प्रियंका गांधी ने खूब मेहनत की। सोनिया गांधी चूंकि अस्वस्थ होने के कारण बहुत सक्रिय नहीं रहीं इसलिए भी मोर्चा प्रियंका गांधी ने संभाल लिया था। यहां से जुड़े कांग्रेसियों का कहना है कि प्रियंका दीदी ने राहुल भैया के लिए बहुत मेहनत की है। सही मायने में यह जीत प्रियंका गांधी की कही जाएगी।
दूसरी तरफ रायबरेली के व्यस्त समय में से प्रियंका गांधी ने अमेठी को भी काफी तवज्जो दिया। उनके धुआंधार प्रचार के बाद अमेठी में लड़ाई को स्मृति ईरानी बनाम प्रियंका गांधी दर्शाने की भी कोशिश कांग्रेसियों ने की। वे कहते रहे कि चेहरा भले ही किशोरी लाल शर्मा का है परंतु लड़ तो प्रियंका दीदी ही रही हैं। सूत्रों का कहना है कि गांधी परिवार रायबरेली को लेकर कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था। रायबरेली में कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं है। और गठबंधन के साथी सपा के मजबूत स्तंभ मनोज पांडे बगावत करके भाजपा के खेमे में जा चुके थे। ऐसे में परिस्थितियों बहुत मजबूत नहीं दिख रही थीं। जब सोनिया गांधी ने 2019 में लोकसभा का चुनाव जीता था तब भले ही समाजवादी पार्टी कांग्रेस के साथ गठबंधन में नहीं थी किंतु एक बड़ा होने नेता होने के नाते समाजवादी पार्टी में सोनिया गांधी को मौन समर्थन दिया था। इसके चलते उनकी जीत आसान हो गई थी। 2019 के चुनाव में भाजपा के दिनेश प्रताप सिंह ने भी यहां बड़ी मेहनत की और जीत का अंतर बहुत कम कर दिया था। इधर दिनेश प्रताप सिंह का ग्राफ भी लगातार बढ़ रहा था। ऐसे में परिवार ने रायबरेली सीट पर फोकस किया और अमेठी में परिवार के किसी आदमी को मैदान में नहीं उतारा गया ताकि सारी तवज्जो रायबरेली पर लगी रहे। ऐसे में कांग्रेसी मोहरे के रूप में परिवार के नजदीकी किशोरी लाल शर्मा को उतारा गया। सूत्र बताते हैं कि एक बार यह भी चर्चा उठी की क्यों न अमेठी से रॉबर्ट वाड्रा को उतारा जाए लेकिन फिर यही सोचा गया कि रॉबर्ट वाड्रा के चुनाव मैदान में उतरने से परिवार का ध्यान बंटेगा और रायबरेली में स्थितियां कमजोर हो सकती हैं। इसलिए इस विचार को सोनिया गांधी ने तत्काल खारिज कर दिया।
अब किशोरी लाल शर्मा जीतेंगे या नहीं यह तो 4 जून को पता चलेगा किंतु अंदरखाने कि खबर है कि अगर वे जीत भी जाते हैं तो उनका इस्तीफा गांधी परिवार के हित में लगभग तय है। सूत्रों का कहना है कि अगर राहुल रायबरेली से चुनाव नहीं जीतते हैं और किशोरी लाल शर्मा अमेठी से जीत जाते हैं तो भी राहुल को यूपी में बनाए रखने के लिए अमेठी से लड़ाया जा सकता है। क्योंकि तब उनके सामने स्मृति ईरानी का मजबूत मिला नहीं होगा। एक बार किशोरी लाल शर्मा के जीतने के बाद अमेठी की परिस्थितियां बदल सकती हैं। यदि राहुल गांधी रायबरेली से जीत जाते हैं तब भी किशोरी लाल शर्मा को त्याग करना पड़ सकता है। वह इस्तीफा देंगे और अमेठी की सीट पर प्रियंका या रॉबर्ट वाड्रा को मैदान में उतारा जा सकता है। इसीलिए जब भी मौका मिला तो प्रियंका गांधी अमेठी में प्रचार करने के लिए गई। वे अमेठी में अपने दिए गए भाषणों में लोगों से यही कहती रहीं कि आप किशोरी लाल शर्मा को जिताएं जो हमारे परिवार के बहुत खास हैं। किशोरी लाल शर्मा के जीतने का मतलब प्रियंका गांधी का जीतना है। प्रियंका का यह बयान लोगों में जगह भी बना रहा था। कांग्रेसियों ने भी प्रचार करना शुरू कर दिया था कि किशोरी लाल शर्मा का तो सिर्फ नाम सामने दिख रहा है असली लड़ाई प्रियंका गांधी बनाम स्मृति ईरानी है। प्रियंका ने भी अपने भाषणों में हर जगह यही कहा कि आप यह मानकर चलिए कि किशोरी लाल शर्मा को नहीं आप मुझको जिताएंगे।
कांग्रेसी सूत्रों का यह भी संकेत है कि यदि दैव योग से कांग्रेस पार्टी वायनाड, रायबरेली और अमेठी तीनों सीटों पर जीत जाती है तभी राजनीति में रॉबर्ट वाड्रा की एंट्री होगी। इसके पहले भी रॉबर्ट कई बार अमेठी से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं। इसके अलावा यदि समाजवादी पार्टी के विद्रोही विधायक मनोज पांडे की मेहनत दिनेश प्रताप सिंह को जिता ले गई तो यह प्रियंका गांधी और कांग्रेस के लिए राजनीतिक झटका होगा और उनकी छवि को बहुत तगड़ा बट्टा लगेगा। अब यह जनता तय करेगी कि रायबरेली और अमेठी का असली हक वह किसे देगी।
अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक