अमेरिका फर्स्ट के जवाब में इंडिया फर्स्ट

अमेरिका फर्स्ट के जवाब में इंडिया फर्स्ट दबाव में न आते हुए भारत ने साफ कर दिया कि वह ट्रंप की धमकी के आगे नहीं झुकेगा इस मामले में चीन और ब्राजील स्पष्ट तौर पर भारत के साथ, पक्ष में बयान भी जारी किया बदले समीकरण में पीएम मोदी 31 अगस्त और एक सितंबर को चीन की यात्रा पर एनएसए डोभाल की रूस यात्रा में राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा तय, डेट की प्रतीक्षा अमेरिका में ट्रंप के रुख का विरोध, सांसद निक्की हैली ने इसे गलत कदम बताया

0
91

लखनऊ। अमेरिका के टैरिफ वार के दबाव में न आते हुए भारत ने साफ कर दिया है कि वह इसके आगे नहीं झुकेगा और देश के किसानों, पशुपालकों, मत्स्य पालकों और अन्य देशवासियों के हितों से कोई समझौता नहीं करेगा। यानी अगर डोनाल्ड ट्रंप अपनी अमेरिका फर्स्ट की नीति पर चल रहे हैं तो नरेंद्र मोदी भी इंडिया फर्स्ट की नीति पर ही रहेंगे। ट्रंप ने 25 परसेंट अतिरिक्त टैरिफ लगाकर दबाव बनाया तो नरेंद्र मोदी ने एनएसए अजित डोभाल को आगे की वार्ता के लिए रूस भेज दिया तो वे राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा कन्फर्म कर आए। उधर चीन ने भी औपचारिक बयान जारी कर भारत पर टैरिफ लगाने की निंदा कर दी है। इसके बाद पीएम नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा भी कन्फर्म हो गई है। ब्राजील के राष्ट्रपति ने भी दबाव बनाते हुए पीएम मोदी से फोन पर बात कर इस मामले पर अपना समर्थन जता दिया है।

अब सूत्रों की खबर है कि भारत, रूस और चीन साथ मिलकर अमेरिका की दादागिरी का जवाब देंगे। हालांकि ट्रंप ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख को अमेरिका बुलाकर और भारत को वहीं से धमकी दिलवाकर फिर दबाव बनाने की कोशिश की है पर अब झुकने को तैयार नहीं है। एक खबर यह भी है ब्रिक्स देश किसी नयी मुद्रा को मान्यता देकर उसी से व्यापार करेंगे। दूसरी ओर आर्थिक नीतियों के जानकार बताते हैं कि अमेरिका के टैरिफ वार का कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। ये अलग बात है कि भारत की विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे को लेकर मोदी सरकार पर लगातार हमलावर हैं।

डोनाल्ड ट्रंप अगर व्यापारी हैं तो नरेंद्र मोदी गुजराती हैं, जो पैदाइशी व्यापारी होते हैं। ऐसे में दो अब व्यापारियों की जंग शुरू हो गई है। अगर पाकिस्तानी अवाम और वहां के जानकारों की मानें तो इस लड़ाई में जीत नरेंद्र मोदी की ही होगी। उनका मानना है कि अमेरिका अब अपने पत्ते गंवा चुका है, और उसने भारत के साथ टैरिफ बार छेड़कर अपना बड़ा नुकसान कर लिया है। उनका मानना है कि अमेरिका को भारत जैसा बाजार मिलना मुश्किल है, यही बात अमेरिका के लोग भी कह रहे हैं। चाहे वह डोनाल्ड ट्रंप की पार्टी की सांसद निक्की हैली हों या नाटो के सलाहकार, सब के सब ट्रंप के इस निर्णय को गलत ठहरा रहे हैं। उनका मानना है कि ट्रंप ने यह काम ठीक नहीं किया। उधर अब नरेंद्र मोदी ने भी आपदा में अवसर तलाश लिया है, इसी कारण अमेरिका की धमकी से बेपरवाह होकर उन्होंने अपने पैरों पर खड़ा होने की तरकीब निकालना शुरू कर दी है। उन्होंने पहले अजित डोभाल को पुतिन से मिलने के लिए रूस भेज दिया और उसके बाद खुद 31 अगस्त और 1 सितंबर को शंघाई कोऑपरेशन आर्गेनाइजेशन यानी एससीओ की मीटिंग में चीन जाने का फैसला किया है। इधर चीन का भी नज़रिया बदला है। उसने अपनी तरफ से पहल करते हुए अमेरिका के टैरिफ टैक्टिस का विरोध करते हुए इसे अन्यायपूर्ण बता दिया है।

इसके अलावा ट्रंप के टैरिफ टैक्टिस के दबाव में न आते हुए ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा ने भी कह दिया है कि वे अब इस मामले में ट्रंप से नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी, ब्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग से बात करेंगे। इसके अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से हुई वार्ता के बाद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा का भी ऐलान हो गया है। खास बात यह है कि डोभाल ने दबाव की रणनीति के तहत रूस से ही पुतिन के भारत आने की घोषणा की है। खबर है कि पुतिन और डोभाल की मुलाकात में कुछ नयी डील पर भी सहमति बन गई है। और यह अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लिए रणनीतिक रूप से बहुत बड़ा मैसेज है। इसके जरिए मोदी ने अमेरिका को बता दिया है कि अगर डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका फर्स्ट का नारा लेकर चलते हैं तो नरेंद्र मोदी भी इंडिया फर्स्ट का ही नारा लेकर चलेंगे। इस बाबत पीएम नरेंद्र मोदी ने साफ-साफ कह दिया है कि वह भारत के किसानों, पशुपालकों और मछुआरों के हितों की कीमत पर ट्रंप का कोई दबाव नहीं मानेंगे। उन्होंने कहा कि वे झुकेंगे नहीं, भले ही उनको बड़ी से बड़ी कीमत चुकानी पड़े। उन्होंने कहा कि वे अपना कोई निजी नुकसान भी सहने को तैयार हैं। यानी अब आर-पार की लड़ाई का ऐलान हो गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात का समर्थन उनके मंत्री भी करते हैं। सरकार के सबसे वरिष्ठ मंत्री और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि कुछ लोग विश्व का बास बनना चाहते हैं, पर भारत को यह स्वीकार नहीं। उनका कहना है कि कुछ वैश्विक शक्तियां भारत की बढ़ती ताकत स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं, पर भारत की प्रगति रोकने की उनकी कोशिशें नाकाम रहेंगी। केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने भी राजनाथ सिंह की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि भारत अब किसी से दबने वाला नहीं है। पर अब हमें भी अपना विकास करके आगे बढ़ना चाहिए, और हममें वह क्षमता है।
उपरोक्त घटनाक्रमों के बाद ट्रंप ने भारत पर दबाव बनाने के लिए पाकिस्तान के जनरल मुनीर को फिर अमेरिका बुलाया है। और जैसा कि अनुमान था कि ट्रंप ने प्रेशर पालिटिक्स का सहारा लेते हुए अपनी ही धरती से आसिम मुनीर के जरिए भारत को धमकी भी दिलवा दी। अमेरिका दर पर इस प्रेशर पॉलिटिक्स के जरिए भारत को झुकाने की उसकी कोशिश भी सफल नहीं हुई। हालांकि अमेरिका में भी ट्रंप के इस कदम की आलोचना हो रही है। उन्हीं की पार्टी की संसद निक्की हैली ने इसे गलत कदम करार दिया है, और कहा है कि इस तरह से अमेरिका भारत जैसा एक मजबूत साथी गंवा देगा। टैरिफ लगाने के इस निर्णय का अमेरिका के व्यापारियों ने भी विरोध किया है।

खबर है कि अमेरिका में तमाम वस्तुओं के दाम बढ़ गए हैं और जनता परेशान है। इधर भारत की जनता का कहना है कि वह देशहित में कोई भी कुर्बानी देने को तैयार है। उधर खबर यह भी है कि अब भारत, रूस और चीन की तिकड़ी की नीव पड़ गई है। इस विवाद के बीच चीन ने कहा है हमारा देश रूस से तेल खरीदने के विरोध में अमेरिका द्वारा भारत पर टैरिफ लगाए जाने का विरोध करता है। चीन ने कहा है कि भारत और चीन अब मतभेद बुलाकर सहयोग की राह पर चलें। अच्छे संबंधों के लिए यह जरूरी भी है। चीन ने कहा है कि भारत और चीन को एक-दूसरे के सहयोग की जरूरत भी है, इसलिए एक-दूसरे पर भरोसा करना जरूरी है।

हालांकि चीन का इतिहास देखकर उस पर इतनी जल्दी विश्वास करना होशियारी नहीं होगी पर वैश्विक स्तर पर लाभ हानि का आंकलन तात्कालिक माहौल के मद्देनजर करना ही पड़ता है। अब जब अमेरिका ने मजबूर कर दिया है तो भारत ने भी इस ओर कदम बढ़ा दिया है। मोदी ने कहा कि अब जो होगा देखा जाएगा। मोदी ने ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा से भी बात करने के बाद कहा कि राष्ट्रपति से बातचीत अच्छी रही।

दूसरी ओर भारत में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, सपा नेता अखिलेश यादव और एआईएमआईएम के नेता ओवैसी ने आरोप लगाया है कि मोदी भारतीय किसानों के हितों की रक्षा करने में असफल साबित हो रहे हैं। उनकी विदेश नीति पूरी तरह सफल रही है। 11 साल तक ट्रंप के साथ खड़े रहने वाले मोदी को ट्रंप ने भाव नहीं दिया। ट्रंप लगातार भारत के खिलाफ बोलने जा रहे हैं, टैरिफ बढ़ाते जा रहे हैं, लेकिन मोदी बोल नहीं पा रहे हैं। कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने भी कुछ इसी तरह का आरोप लगाया है। हांलांकि आर्थिक नीतियों के जानकारों का मानना है कि अगर ट्रंप के टैरिफ लागू भी रहे तो भी भारत की जीडीपी को अधिक से अधिक 1.85% का ही नुकसान होगा। रिजर्व बैंक ने भी कहा है कि इसका कोई खास असर नहीं पड़ेगा।

क्या चाहते हैं डोनाल्ड ट्रंप : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चाहते हैं कि भारत उनको शांति का मसीहा बताकर नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामिनेट करे। इसीलिए उन्होंने ने भारत और पाकिस्तान के बीच बीते अप्रैल में हुई लडाई को रोकवाने का श्रेय लेने की कोशिश की की। पर भारत ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया। भारत ने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत-पाक मामलों के बीच किसी तीसरे पक्ष का कोई दखल न था और न ही हम बर्दाश्त कर सकते हैं। इस मामले में पाकिस्तानी डीजीएमओ ने भारत के अपने काउंटर पार्ट से बात की और भारत की सेना ने पाकिस्तान को एक मौका दे दिया। हालांकि ट्रंप इस मामले में लगातार दबाव बनाने की कोशिश करते रहे, उन्होंने लगभग 35 बार से अधिक अपना दावा दोहराया किंतु भारत ने इस मामले में उनका दखल होना नहीं माना। हालांकि भारत की विपक्षी पार्टियां इस मामले को मुद्दा बनाती रहीं। बाद में संसद में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ-साफ कह दिया कि इस मामले में में दुनिया के किसी देश का कोई दबाव नहीं था। इसके बाद ट्रंप ने टैरिफ टैक्टिस का सहारा लिया। उन्होंने भारत पर पहले 25 परसेंट टैरिफ लगाया और कहा कि भारत रूस से तेल खरीद कर उसे आर्थिक रूप से मजबूत कर रहा है, जिसका इस्तेमाल यूक्रेन में हो रहा है। इसी को आधार बनाकर अब ट्रंप ने कहा है कि अगर भारत रूस से तेल खरीद बंद नहीं करेगा तो उस पर और अतिरिक्त टैरिफ लगेगा, परंतु भारत ने साफ कर दिया है कि वह रूस से तेल खरीद जारी रखेगा। इसके बाद डोनाल्ड ट्रंप चिढ़ गये। इसके अलावा ट्रंप चाहते हैं कि अमेरिका के डेयरी और फिशरीज उत्पाद, सब्जी, फल और मक्का वगैरह भारत में आकर बिना टैरिफ के बिके, परंतु नरेंद्र मोदी भारत के किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए इसके लिए तैयार नहीं हैं। मामला यहां भी फंसा हुआ है।

दरअसल ट्रंप इस बात से भी डरे हुए हैं कि भारत बहुत तेजी से आगे बढ़ रही इकोनामी है। और इसी का परिणाम है कि भारत विश्व की चौथी सबसे बडी इकोनॉमी बन गया है, जो 2014 तक 11 वीं पायदान पर था। उनको डर से कि अगर भारत इसी तरह आगे बढ़ता रहा तो वह तीसरी बड़ी इकोनॉमी बन जाएगा। ऐसे में वह अमेरिका के दबाव में भी नहीं आएगा और खुद मुख्तार हो जाएगा। ऐसे में ट्रंप को लगता है कि इससे उसकी चौधराहट को खतरा हो जाएगा। इसी कारण वह भारत को टैरिफ जाल में उलझाकर प्रगति को बाधित करना चाहता है। सूत्रों का कहना है कि उसने पाकिस्तान के जनरल आसिम मुनीर को भी इसीलिए अमेरिका बुलाया है ताकि भारत को दबाव में लाया जा सके। एक खबर यह भी है कि वे जनरल आसिम मुनीर को भड़का कर एक बार फिर भारत को युद्ध की आग में झोंकना चाहते हैं। ट्रंप को लगा था कि वे अच्छे रिश्तों की बुनियाद पर भारत से जो चाहेंगे, करा लेंगे, पर नरेंद्र मोदी ने साफ-साफ कह दिया है कि वे देश हित की कीमत पर अमेरिका और डोनाल्ड ट्रंप से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहते हैं। नरेंद्र मोदी अपने हालिया बयानों में इसी व्यक्तिगत नुकसान की बात करते हैं। भारत का विपक्ष भी इन्हीं रिश्तों पर सवाल उठा रहा है। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप अपने इस प्रयास में भी फेल हो गए हैं।

ताज़ा घटनाक्रम में डोनाल्ड ट्रंप के बुलावे पर अमेरिका पहुंचे पाक जनरल आसिम मुनीर ने भारत को एक बार फिर धमकी दी है। उसने कहा है कि हम तो नीचे जाएंगे पर आधी दुनिया को भी नीचे ले जाएंगे। आसिम मुनीर ने अमेरिकी धरती से भारत को सीधे परमाणु युद्ध की धमकी दी है। यह पहली बार है कि अमेरिका की धरती से किसी तीसरे देश के खिलाफ परमाणु धमकी दी गई है। निश्चित रूप से यह डोनाल्ड ट्रंप के इशारे पर ही हुआ होगा। भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच आसिम मुनीर ने सिंधु जल संधि का मुद्दा उठाते हुए यह धमकी दी है। इस समझौते को पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद भारत ने स्थगित कर दिया है, मुनीर ने धमकी दी है कि अगर भारत ने सिंधु नदी पर बांध बनाया तो हम उसे बम मार कर उड़ा देंगे। मुनीर का यह बयान आने के बाद ऐसा लगता है कि ट्रंप भारत को पाकिस्तान के साथ युद्ध में उलझाकर भारत की इकोनॉमी को कमजोर कर डेड इकोनॉमी वाले अपने बयान को सही साबित करना चाहते हैं। पर उन्हें नहीं मालूम कि यह आज का भारत है, और वह किसी के बहकावे में आने वाला नहीं है।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक