# शिवचरण चौहान
गुलखैरा एक बहुत ही सुंदर फूल है जो पौधे के तने पर खिलता है। पौधे पर करीब एक दर्जन फूल आते हैं जो बहुत ही सुंदर होते हैं। इसके तुरही जैसे रंग-बिरंगे फूल पास से गुजरने वाले का ध्यान आकर्षित कर लेते हैं। फूलों में खुशबू तो नहीं होती है पर रंग चटक और आकर्षक होते हैं।
गुलखेरा का वानस्पतिक नाम आल्थिया रोजिआ है। यह मालवेशी कुल का पौधा है। आलथिया ग्रीक भाषा का शब्द है जो अल्थोस से बना है। जिसका अर्थ होता है घाव भरना या निरोग करना। आल्थीया जंगली भिंडी का ग्रीक नाम है। इसका पौधा भी भिंडी के पौधे की तरह या जूट के पौधे की तरह होता है। करीब 4 या 5 फीट ऊंचा गुलखैरा के पौधे में शाखाएं नहीं होती हैं। पौधे का तना सीधा सीधा खमभे सा होता है। इसके तने पर ही फूल खिलते हैं। जैसे कि जूट या भिंडी के पौधे में। जूट और भिंडी के फूल पीले रंग के होते हैं। गुल खैरा का फूल बैंगनी लाल गुलाबी और सफेद रंग का तुरही जैसा लंबा होता है।
एशिया माइनर का पौधा और अफगानिस्तान का देशज पौधा है। सन 18 45 में गुलखैरा भारतीय वनस्पति विज्ञान हावड़ा पश्चिम बंगाल में आया। इसके फूल की सुंदरता को देखते हुए इसे बाग बगीचा घर के गमलों उद्यानों गार्डन में लगाया जाने लगा। आकर्षक फूलों के कारण इसकी मांग भारत में हर कोने पर होने लगी। राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान केंद्र लखनऊ ने इसके औषधीय गुणों के बारे में किसानों को बताया। कहते हैं पाकिस्तान के किसान गुलखैरा की खेती खूब करते हैं और वहां के हकीम पंसारी इसको महंगे दामों पर खरीद कर इससे दवाएं बनाते हैं। निसंतान दंपतियों को संतान तथा बल वीर्य वर्धक और मर्दाना ताकत की दवायें इससे सदियों से बनाई जाती रही है। नजला जुकाम खांसी तथा अनेक रोगों की रामबाण औषधियां गुल खेरा के फूल पत्तियों तनों और जड़ों से बनाई जाती हैं।
पहले पहल गुलखेरा की खेती उन्नाव जिले के किसानों ने की। इन्हीं की देखा देखी कन्नौज और हरदोई के किसानों ने अपने खेतों में गुलखेरा उगाया। गुल खेरा की फसल ₹10000 प्रति कुंटल बिकती है। 1 एकड़ में करीब डेढ़ लाख का गुलखेरा पैदा होता है। लखनऊ में साआदत गंज मंडी मे इसकी फसल बिकती है। यहां से पंसारी हकीम वैद्य और अन्य लोग यूनानी आयुर्वेदिक और हकीमी दवाएं बनाने वाले इसे खरीद कर ले जाते हैं।
गुलखैरा की खेती नवंबर में बोई जाती है और अप्रैल-मई में इसकी फसल तैयार होती है। बीज बोने के बाद इसके खेत से खरपतवार हटा दिए जाते हैं और फूलों को विकसित होने दिया जाता है। अप्रैल-मई में इसके फूल पत्तियां और तना सूख कर खेत में ही गिर जाते हैं। सूखे पौधे को फूलों को इकट्ठा करके बाजार में बेच दिया जाता है। इसकी फसल एक 2 साल तक सुखा कर सुरक्षित रखी जा सकती है। इसलिए इसमें कोई हानि नहीं होती है।
भारतीय फूल और पादप अनुसंधान केंद्र लखनऊ ने पाकिस्तान में इसकी व्यवसायिक खेती की सफलता को देखते हुए भारत के किसानों को भी इसकी खेती करने की सलाह दी। अभी उत्तर प्रदेश के तीन चार जिलों में ही इसकी थोड़ी बहुत खेती की जा रही है।
भारत में अभी तक यह पौधा अपने सुंदर फूलों के कारण घरों में बगीचों में उद्यानों में लगाया जाता रहा है। सौंदर्य प्रेमी इसके फूल पसंद करते हैं। जनवरी-फरवरी से लेकर मार्च तक भयंकर सर्दियों में इसके लुभावने लाल गुलाबी बैगनी श्वेत पुष्प बरबस ही सबका ध्यान अपनी और खींच लेते हैं।
अपने अभूतपूर्व औषधीय गुणों के कारण इस पौधे को वैद्य और हकीमो ने सदियों से प्रयोग किया है। संतान प्राप्ति बल और वीर्यवर्धक इसका फूल लोगों को लुभाता रहा है। मर्दाना ताकत की दवा है गुलखेरा के पौधे से ही बनाई जाती हैं। हकीम नजला खांसी जुकाम आदि अनेक दवाइयां गुलखैरा के फूल, पत्तियों और जड़ों से बनाते हैं। आप जहां गुलखैरा का फूल देखें नजरअंदाज ना करें। यह प्रकृति का दिया हुआ मनुष्यों के लिए इंसानों के लिए वरदान है।
# गुलखैरा को हाली हाक भी कहा जाता है यह शीत ऋतु में खिलने वाला फूल है।
# गुलखैरा अफगानिस्तान का मूल मूल पौधा है जो पाकिस्तान होता हुआ भारत में आया।
# यूनानी दवाओं प्रयोग आने के कारण इसकी व्यवसायिक खेती भी की जाती है।
# उत्तर प्रदेश के उन्नाव कन्नौज हरदोई सहित कई जिलों में हाली हाक की खेती की जाती है। लखनऊ में साआदत गंज मंडी में गुलखेरा की फसल बिक जाती है जहां से हकीम और पंसारी इसे खरीद ले जाते हैं।