नई दिल्ली। ‘अगर हमें भारत को वर्ष 2040 में ‘नॉलेज पावर’ बनाना है, तो ज्ञान प्राप्त करने के साथ- साथ नए ज्ञान का सृजन भी करना होगा। इसलिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति में ‘लर्निंग टू लर्न’ पर जोर दिया गया है।” यह विचार शिक्षा तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव और आईआईएमसी के चेयरमैन अमित खरे ने भारतीय जन संचार संस्थान और महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित विमर्श के दौरान व्यक्त किये।
‘मीडिया शिक्षा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन’ पर आयोजित इस विमर्श में आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश शुक्ल, कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर के कुलपति प्रो. बलदेव भाई शर्मा और शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के संयोजक अतुल कोठारी समेत मीडिया शिक्षण से जुड़े देश के प्रमुख विद्धानों ने हिस्सा लिया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के तौर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए अमित खरे ने कहा कि भारत की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का दृष्टिकोण वैश्विक है, लेकिन उसकी जड़ें भारतीय संस्कृति से जुड़ी हुई हैं। हम विश्व समुदाय के अंग हैं, इसलिए हमारी शिक्षा नीति ऐसी होनी चाहिए जिससे भारतीय संस्थान विश्व के सबसे अच्छे शिक्षण संस्थानों में गिने जाएं। उन्होंने कहा कि मीडिया शिक्षा के सामने कई महत्वपूर्ण चुनौतियां हैं। संस्थानों ने कई वर्षों से अपने पाठ्यक्रमों में बदलाव नहीं किया है। इसलिए मीडिया शिक्षण संस्थानों को वर्तमान समय की जरुरतों के अनुसार पाठ्यक्रम निर्माण करना चाहिए।
खरे ने कहा कि मीडिया और एंटरटेनमेंट के क्षेत्र में पिछले वर्ष 34 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिली है। इसमें विशेष तौर पर एनिमेशन, गेम्स और वीएफएक्स के क्षेत्र में सबसे ज्यादा वृद्धि हुई है। इसलिए मीडिया शिक्षकों को इन विषयों पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि एक एजुकेशन हब का निर्माण हमारा लक्ष्य होना चाहिए, जहां विद्यार्थियों को देश के अन्य संस्थानों और उनके पाठ्यक्रमों से जुड़ी जानकारी हासिल हो सके। इसी के द्वारा भारत की ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ाया जा सकता है।
आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि मीडिया शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए मीडिया एजुकेशन काउंसिल की आवश्यकता है। इसकी मदद से न सिर्फ पत्रकारिता एवं जनसंचार शिक्षा के पाठ्यक्रम में सुधार होगा, बल्कि मीडिया इंडस्ट्री की जरुरतों के अनुसार पत्रकार भी तैयार किये जा सकेंगे। उन्होंने कहा कि भारतीय परंपरा के पास विदेशी मॉडल की तुलना में बेहतर संचार मॉडल हैं। इसलिए हमें संवाद और संचार के भारतीय मॉडल को मीडिया पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना चाहिए।
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश शुक्ल ने कहा कि भारत में अब तक संस्थान केंद्रित शिक्षा प्रणाली पर जोर दिया जाता था, लेकिन नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने ‘सब पढ़ें और सब बढ़ें’ का रास्ता हमें दिखाया है। उन्होंने कहा कि शिक्षा नीति के माध्यम से शिक्षकों को नए प्रयोगों के लिए अवसर मिल रहा है। इसलिए ये हमारा दायित्व है कि हम अपने विद्यार्थियों को इस तरह तैयार करें, कि वे चुनौतियों को अवसर में बदल पाएं।
इस अवसर पर शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के संयोजक अतुल कोठारी ने कहा कि शिक्षा मंत्रालय का नाम पूर्व में मानव संसाधन मंत्रालय था, लेकिन मेरा मानना है कि मनुष्य ‘सोर्स’ तो हो सकता है, लेकिन ‘रिसोर्स’ नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि इस नीति में समाज के सभी वर्गों के उत्थान की बात कही गई है। इसलिए सभी मीडिया संस्थानों को साझा कार्य करने का स्वभाव अपनाना होगा। इसके अलावा कंटेट प्रोडक्शन, कंटेट मैनेजमेंट और कंटेट डिस्ट्रीब्यूशन जैसे नए विषयों को पाठ्यक्रम में शामिल करना होगा।
कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर के पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष प्रो. शाहिद रसूल ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2040 के भारत को ध्यान में रखकर बनाई गई है। भारत युवाओं का देश है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से इसे एक नई आर्थिक शक्ति बनाने पर जोर दिया गया है। उन्होंने कहा कि अगर हम विश्व गुरु बनना चाहते हैं, तो भारत के प्रत्येक व्यक्ति को समान शिक्षा के अवसर मिलने चाहिए।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर के कुलपति प्रो. बलदेव भाई शर्मा ने कहा कि एक वक्त था जब लोगों का मानना था कि पत्रकार पैदा होते हैं और पत्रकारिता पढ़ा कर सिखाई नहीं जा सकती। लेकिन अब वक्त बदल गया है। जनसंचार का क्षेत्र आज शिक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। उन्होंने कहा कि मीडिया के शिक्षकों के पास पत्रकारिता की औपचारिक शिक्षा के साथ-साथ मीडिया में काम करने का प्रत्यक्ष अनुभव भी होना चाहिए, तभी वे बच्चों को प्रभावी ढंग से पढ़ा पाएंगे।
इस सत्र में मीडिया शिक्षण से जुड़े प्रो. मृणाल चटर्जी, डॉ. अनिल कुमार, प्रो. प्रदीप नायर, प्रो. एहतेशाम अहमद खान, प्रो. सपना, प्रो. अनिल अंकित, डॉ. क्षिप्रा माथुर, डॉ. सोनाली नरगुन्दे और डॉ. धनंजय चोपड़ा ने भी अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन प्रो. अनुभूति यादव और प्रो. संगीता प्रणवेंद्र ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन आईआईएमसी के डीन (अकादमिक) प्रो. गोविंद सिंह और डीन (छात्र कल्याण) प्रो. प्रमोद कुमार ने किया।