गोरखपुर। चार दशक तक जून से नवंबर तक पूर्वांचल के मासूमों के लिए काल का पर्याय रही इंसेफेलाइटिस की रफ्तार योगी सरकार के समन्वित अंतर्विभागीय प्रयासों से थम गई है। 2017 से इंसेफेलाइटिस से प्रभावित मरीजों और इस बीमारी से होने वाली मौतों में बहुत कमी आई है। बीमारी ओर तो प्रभावी नियंत्रण पा ही लिया गया है, इससे होने वाली मौतों में भी 95 फीसद से अधिक कमी आई है।
1977-1978 से 2016 तक पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रतिवर्ष 1200 से 1500 बच्चे इंसेफेलाइटिस के क्रूर पंजे में आकर दम तोड़ देते थे। सरकारी तंत्र की बेपरवाही से 2016 तक कमोवेश मौत की यह सालाना इबारत लिखी जाती रही। मौत के इस खेल में सिर्फ बदलाव बीमारी के नए स्वरूप का हुआ। जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) के नाम से शुरू यह बीमारी अब एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के रूप में भी नौनिहालों की जान की दुश्मन बन गई।
2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने इंसेफेलाइटिस प्रभावित बच्चों के इलाज की व्यवस्था सुदृढ करने के साथ ही बीमारी की जड़ पर “दस्तक” देना शुरू किया। इलाज के लिए जहां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) पर इंसेफेलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर (ईटीसी) बनाए गए वहीं गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज की व्यवस्था को भी मजबूत किया गया। सीएचसी पर पीडियाट्रिक आईसीयू (पीकू) बनाए गए। ब्लॉक स्तर पर ही इलाज का इंतज़ाम होने से रोगियों को त्वरित चिकित्सा सुविधा मिली। वहीं इसके चलते बीआरडी मेडिकल कॉलेज पर पड़ने वाला भार भी कम हुआ।
दूसरी तरफ बीमारी के कारण का निवारण करने के लिए सरकार ने स्वास्थ्य विभाग, पंचायती राज विभाग, शिक्षा, ग्रामीण विकास विभाग, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, आशा वर्कर आदि के लिए समन्वित कार्ययोजना तैयार की। इसी कार्ययोजना की परिणति दस्तक अभियान के रूप में हुई। इसके तहत बीमारी से बचाव के लिए जन जागरूकता, गंदगी से मुक्ति, शुद्ध पेयजल पर फोकस किया गया। राज्य सरकार के इस प्रयास में केंद्र सरकार की स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) से भी खासी मदद मिली। एसबीएम के तहत गांवों में घर घर शौचालय बनने से खुले में शौच से निजात मिली। खुले में शौच को इंसेफेलाइटिस का एक प्रमुख कारण माना जाता रहा है। पर, हालात अब बदल चुके हैं। 2017 से साल दर साल मरीजों और मौत का आंकड़ा धराशायी होता गया है।
इंसेफेलाइटिस उन्मूलन को लेकर योगी आदित्यनाथ के संघर्ष का पूरा पूर्वांचल साक्षी है। 1998 में पहली बार सांसद बनने के बाद से ही वह इस बीमारी को लेकर सड़क से संसद तक आंदोलनरत रहे। 2017 में मुख्यमंत्री बनने से पहले तक संसद का कोई भी ऐसा सत्र नहीं रहा जब वह इस मुद्दे पर पूर्वी उत्तर प्रदेश की जनता के आवाज न बने हों।
इंसेफेलाइटिसरोधी टीकाकरण शुरू कराने में भी योगी की महती भूमिका रही है। मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके प्रयासों का परिणाम सबके सामने है। उनके नेतृत्व में इंसेफेलाइटिस नियंत्रण की सफलता का जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कई मंचों से कर चुके हैं।
चालीस सालों में हुई थीं पचास हजार मौतें : पूर्वी उत्तर प्रदेश में चालीस सालों (1977 से 2016) में अनुमानतः पचास हजार बच्चे इंसेफेलाइटिस से काल कवलित हुए। आंकड़ों के लिहाज से अकेले गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज की बात करें तो 2016 में यहां 1765 इंसेफेलाइटिस मरीज भर्ती हुए जिनमें से 466 की मौत हो गई थी। योगी के सीएम बनने के बाद गोरखपुर में एईएस के 817 और जेई के 52 मरीज मिले। मरीजों की संख्या कम होने के साथ ही मौतों की संख्या में भी कमी आई।
गोरखपुर में 2017 में मौतों (जेई व एईएस दोनों) का ग्राफ घटकर 124 पर आ गया। दस्तक अभियान, सुदृढ़ चिकित्सा सुविधाओं से इसमें लगातार गिरावट आती गई है। 2020 में जेई व एईएस मिलाकर 240 मरीज भर्ती हुए। मौतों का आंकड़ा भी गिरकर 15 पर सिमट गया। चालू वर्ष में गोरखपुर में एईएस के सिर्फ 219 मरीज आए जिनमे से 15 ने दम तोड़ दिया जबकि जेई से कोई मौत नहीं हुई है।