नई दिल्ली। दिल्ली सरकार ने 2020 में पांचवें वित्त आयोग का गठन करना था लेकिन अभी तक आयोग का गठन नहीं किया गया। यह आयोग ही तय करता है कि दिल्ली सरकार द्वारा दिल्ली नगर निगम को किस अनुपात में करों का वितरण किया जाएगा। दिल्ली सरकार जानबूझ कर गठित नहीं कर रही ताकि तीनों नगर निगमों को आर्थिक संकट में फंसाए रखा जाए।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 (1) के मुताबिक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार का यह दायित्व है कि प्रत्येक पांच साल में राज्य वित्त आयोग का गठन करे। सभी राज्यों की यह संवैधानिक जिम्मेदारी है कि उन्हें यह आयोग बनाना ही होता है। दिल्ली में 2016 में चौथे वित्त आयोग का गठन किया गया था जिसने 2018 में अपनी रिपोर्ट दे दी थी। दिल्ली सरकार को अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभाते हुए पांचवां वित्त आयोग 2020 में गठित करना था ताकि अप्रैल 2021 से मार्च 2026 तक की अवधि के लिए उसकी सिफारिशों को लागू किया जाए। दिल्ली सरकार ने अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी नहीं निभाई। इससे दिल्ली नगर निगमों को राज्य के करों से उनका वाजिब हिस्सा नहीं मिल पा रहा।
गौरतलब है कि दिल्ली नगर निगम भारी वित्तीय संकट से गुजर रही हैं और दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने जानबूझ कर ऐसी स्थिति पैदा की है कि नगर निगमों को काम करने में मुश्किल आए ताकि आप उसका राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश करे। उपराज्यपाल चाहें तो निर्देश जारी कर दिल्ली में पांचवें वित्त आयोग के गठन के लिए केजरीवाल पर दबाव डाल सकते हैं। ऐसा इसलिए भी जरूरी है कि नगर निगम के चुनाव अगले साल के आरंभ में होने वाले हैं। जब नया सदन आए तो उसे ऐसे वित्तीय संकट का सामना न करना पड़े, जैसा इन दिनों करना पड़ रहा है।
दिल्ली सरकार की संकीर्ण राजनीति को देखते हुए केंद्र सरकार को वैकल्पिक उपाय करने चाहिए ताकि दिल्ली सरकार द्वारा नगर निगमों को फंड जारी न करने की स्थिति में केंद्र सरकार से सीधे मदद मिल सके। नगर निगमों के विभाजन से पूर्व केंद्र ही दिल्ली नगर निगम की वित्तीय जरूरतों को पूरा करता था।