लखनऊ। गौशाला से बदबू आने के बयान से उठे विवाद और सांसद रामजीलाल सुमन के राणा सांगा पर दिए बयान से उपजी ठाकुरों की नाराजगी के अलावा योगी आदित्यनाथ की धुर हिंदू समर्थक राजनीति और बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की हिंदू एकजुटता वाली मुहिम से परेशान होकर समाजवादी पार्टी ने अब रणनीति में परिवर्तन किया है। अब उसके मुखिया अखिलेश यादव हिंदुत्व विशेषकर शिव भक्ति की ओर जा रहे हैं। शायद इसीलिए अब वे इटावा में प्रस्तावित कृष्ण मंदिर की जगह बाबा केदारनाथ की अनुकृति वाला केदारेश्वर महादेव मंदिर बनवा रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि पहले जो जमीन कृष्ण मंदिर बनवाने के लिए ली गई थी उसी पर केदारनाथ धाम की हूबहू अनुकृति वाला यह मंदिर बनाया जा रहा है।
खबर है कि ऐसा करके सपा परिवार महाभारत कालीन उस कथा को दोहराना चाहता है जिसमें पांडवों ने युद्ध में की गई हत्याओं के बाद प्रायश्चित स्वरूप केदारनाथ धाम का निर्माण किया था। सूत्रों का कहना है कि इस केदारेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण भी कारसेवकों पर गोली चलवाने का प्रायश्चित है। या फिर वैष्णव भक्ति धारा के जवाब में शुरू की जा रही शिव भक्ति की नई धारा लाने की कोशिश है। क्योंकि जिस स्थान पर कृष्ण मंदिर बनाया जाना था उसी जगह पर अचानक शिव मंदिर बनाने का कोई वाजिब कारण दिखता नहीं है। खैर, एक तरफ शिव मंदिर निर्माण तेजी पर है तो दूसरी ओर इसका विरोध भी शुरू हो गया है। खबर है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस बाबत उत्तर प्रदेश सरकार को एक पत्र लिखा है। इस मामले में सपा का कोई आधिकारिक बयान अभी तक नहीं आया है। वैसे इसके पूर्व दिल्ली में भी ऐसा ही एक शिव मंदिर केदारनाथ धाम के नाम से बनवाने की कोशिश हुई थी। बाद में विरोध के बाद उसका निर्माण बंद कर दिया गया था। अब देखते हैं कि इस मामले में क्या होता है।
जानकारों का कहना है कि दरअसल अखिलेश यादव को मिल्कीपुर उपचुनाव में हार के बाद ये लगने लगा है की मिल्कीपुर जैसा मजबूत किला अगर गिर सकता है तो ये चिंता का विषय है।उन्होंने अभी तक अयोध्या के राम मंदिर से दूरी बना रखी है, क्योंकि उनकी पार्टी और उनके पिता स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव के ऊपर राम विरोधी होने का आरोप है। उन पर कारसेवकों पर गोली चलवाने का आरोप है। राम मंदिर से दूरी के चलते ही उन्होंने अयोध्या की तर्ज पर इटावा में भव्य कृष्ण मंदिर बनवाने की घोषणा की थी। ताकि भाजपा के राम मंदिर नैरेटिव की काट तैयार की जा सके। इसके लिए जमीन भी खरीद ली गई थी। उन्होंने सार्वजनिक तौर पर इसकी घोषणा भी कर दी थी। पर अभी के ताजा सियासी समीकरण में और हिंदुत्व के बढ़ते दबाव के बीच उनके पास दो ही विकल्प थे। पहला यह कि वे पार्टी लाइन छोड़कर अयोध्या में राम की शरण में आते या फिर दूसरा यह कि वे हिंदुत्व की दूसरी धारा का चुनाव करें। इसमें उनके किसी शुभ चिंतक ने उन्हें शिव की शरण में जाने का सुझाव दिया। सपा पर हिंदू विरोधी और मुस्लिम समर्थक होने का आरोप लगाया जाता है। पर इससे पार्टी को कोई फर्क भी नहीं पड़ता था, क्योंकि ऐसा करके उसका मुस्लिम वोट बैंक मजबूत होता था। किन्तु इधर राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा, बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार से उपजी नाराजगी, बाबा बागेश्वर के हिंदू एकता के प्रयास और प्रयागराज महाकुंभ से उठे सनातन की एकजुटता के ज्वार ने उन्हें नयी रणनीति बनाने पर मजबूर कर दिया है। इसके दो संकेत बीते दिनों दिखाई दिए। भाजपा को अयोध्या से हराकर विपक्ष के पोस्टर ब्वॉय बने सांसद अवधेश प्रसाद पासी ने बहुत दिनों के बाद या यों कहें कि सांसद बनने के बाद पहली बार बीते चैत्र नवरात्र में अयोध्या में प्रभु श्रीराम लला के सपरिवार दर्शन किए तो चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया। सांसद ने न सिर्फ खुद रामलला के दर्शन किए बल्कि यह भी कह दिया कि शीघ्र ही पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव भी आएंगे। फिर तो इस पर राजनीतिक चर्चा भी शुरू हो गई। लोग कयास लगाने लगे कि मिल्कीपुर के विधानसभा उपचुनाव में मिली बुरी हार तथा पूरे उपचुनाव में भी भाजपा से लगभग परास्त होने के बाद सपा के जिम्मेदारों को अब अकल आ गई है। और वे हिंदुत्व की तरफ लौटने लगे हैं। सपा के साफ्ट हिंदुत्व की तरफ लौटने का दूसरा उदाहरण इटावा में बन रहा केदारेश्वर महादेव मंदिर है। बताया जाता है कि ये मंदिर हूबहू केदारनाथ धाम मंदिर की प्रतिकृति होगा। बताते हैं कि यह मंदिर अक्षांश रेखा पर स्थित है, और इसी रेखा पर महादेव के अन्य मंदिर भी स्थित हैं। इसमें ज्योतिष की गणना का विरोध ध्यान रखा गया है। कुछ लोग इसे महाभारत की कथा से भी जोड़ रहे हैं। उनका मानना है कि पांडवों ने महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद जब अनगिनत हत्याओं का प्रायश्चित करने की सोची तो उन्होंने ज्योतिषियों के सुझाव पर केदारनाथ धाम में मंदिर की स्थापना की थी। जानकारों का कहना है कि शायद यादव परिवार भी ऐसा ही कुछ प्रायश्चित करना चाहता है। इसीलिए पांडवों की तरह महादेव का मंदिर बनाया जा रहा है। जबकि यहां भगवान कृष्ण का मंदिर बनवाना प्रस्तावित था। इसकी घोषणा भी अखिलेश यादव ने पूर्व में की थी। किंतु अब अचानक शिव मंदिर की ओर जाना किसी नई कहानी को जन्म दे रहा है। सूत्र बताते हैं कि यादव परिवार का मानना है कि जब से उसने अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाई, प्रदेश में होने वाले हिंदू विरोधी दंगों पर आंखें मूंद ली और अल्पसंख्यकों की खुशी के लिए हिंदुओं की उपेक्षा की है, तबसे धीरे-धीरे उसका ग्राफ गिरा है। इसलिए अब प्रायश्चित करना जरूरी है। क्योंकि कृष्ण मंदिर को छोड़कर सपा जिस प्रकार से शिव मंदिर बनवाने में लग गई है, यह सिर्फ संयोग नहीं हो सकता। यानी कि कुछ तो बात है जिसे यादव परिवार अभी सार्वजनिक नहीं करना चाहता। खास बात यह है कि इस शिव मंदिर के बारे में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने स्वयं सूचना दी है। कुछ लोगों का ये भी कहना है कि सपा ने अयोध्या में राम मंदिर का विरोध करके भगवान भोले शंकर के आराध्य श्रीराम का अपमान करके उन्हें नाराज कर दिया है। इसीलिए अब वे भोले शंकर के मंदिर की स्थापना क़रके इसका प्रायश्चित करना चाहते हैं। ऐसे में लगता यही है कि पीडीए के साथ-साथ समाजवादी पार्टी सॉफ्ट हिंदुत्व की ओर भी बढ़ने की कोशिश में है।
दूसरी ओर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व को लेकर बहुत आक्रामक हैं। उनका यह कहना है कि हम तो अभी कोर्ट के आदेश का पालन कर रहे हैं, वरना मथुरा में अब तक बहुत कुछ हो गया होता। योगी का यह बयान भी सपा सुप्रीमो को चिंतित किए हुए है। ऐसा बयान देकर योगी अपने हिंदू वोटरों को साफ संकेत देना चाहते हैं कि वे ही हिन्दू समाज के हित रक्षक हैं। और मौका मिलते ही वे मथुरा में इदगाह वाली जगह पर भव्य कृष्ण मंदिर बनवाएंगे। वैसे भी प्रयागराज महाकुंभ में बढ़ी योगी की टीआरपी का जलवा अभी भी बरकरार है। उस महाकुंभ का ही असर है कि हिंदू समाज लगातार एक होता जा रहा है। और इसी को लेकर सपा और बाकी विपक्ष बेचैन है। इसके अलावा अखिलेश यादव वक्फ बोर्ड के विवाद में मुस्लिम पक्ष का साथ देकर हिंदुओं की भावनाओं को आहत कर चुके हैं। उनके इस रुख पर हिन्दू समाज में नाराजगी है। ऐसे में उसे भी बैलेंस करना है। इसके अलावा गौशालाओं से बदबू वाला बयान देकर वे पहले ही काफी नुकसान उठा चुके हैं। इस मामले में तो सोशल मीडिया में अखिलेश यादव को निशाने पर लेने वालों में अधिकतर यादव विरादरी के लोग थे। इधर अब एक और विवाद गोबर पेंट को लेकर शुरू हो गया है। इस मामले में अखिलेश यादव को घेरते हुए भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा है कि यदुवंशी अखिलेश यादव को गाय, गोबर और गोवंश से नफरत है। वे ऑस्ट्रेलिया जाकर भारतीय संस्कृति और संस्कार को भूल गए हैं, या फिर तुष्टिकरण की राजनीति के नाते गाय, गंगा और गीता का अपमान करते हैं। राकेश त्रिपाठी का कहना है कि यदुवंशी होने के नाते उन्हें गोवंश की समृद्धि के लिए प्रयास करना चाहिए।
पीडीए से नहीं चलेगा काम हिंदुत्व भी है जरूरी : उत्तर प्रदेश में महाकुंभ 2025 के सफल और ऐतिहासिक आयोजन के बाद एकजुट हो रहे सनातनी समाज की आवाज से घबराए विपक्ष विशेषकर समाजवादी पार्टी में बेचैनी है। इसके पहले महाराष्ट्र के सपा विधायक और प्रदेश अध्यक्ष अबू आजमी को विक्टिम बना मुस्लिमों को रिझाने की कोशिश की गई। उसके बाद राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन के विवादित बयान को दबाने की गरज से और दलितों को आकर्षित करने के लिए सपा ने रामजीलाल सुमन को दलित कहकर दलितों को रिझाने की कोशिश की, पर यह हथियार कमजोर निकला और हिंदुत्व के बढ़ते ज्वार को रोक पाने में कामयाब नहीं रहा। उल्टे सपा को इससे क्षत्रियों की नाराजगी झेलनी पड़ी। इसके अलावा अखिलेश यादव ने वक्फ संशोधन बिल पर चर्चा के समय भी बिल का विरोध कर अधिकांश हिंदुओं नाराज कर दिया है। इसके पहले अपने निर्वाचन क्षेत्र कन्नौज में गौशालाओं से बदबू आने की बात कह कर भी वे संत समाज और भाजपा की आलोचना का शिकार हो चुके हैं। उन्हें अभी तक अपने इस बयान का कोई डिफेंस नहीं मिल पाया है। जब भी इस पर सवाल होते हैं तो अखिलेश यादव और उनके प्रवक्ता सवाल घुमा देते हैं। इस मुद्दे पर सोशल मीडिया उन्हें नकली यादव तक बनाने पर आमादा है। ऐसे में अब उन्हें लगता है कि सिर्फ पीडीए से ही काम नही चलेगा, साथ में कुछ और जोड़ना पड़ेगा। उधर भाजपा ने हिंदुओं को एकजुट करने और दलितों को रिझाने के लिए इस बार के आम्बेडकर जयंती को समारोहपूर्वक मनाया और इस मामले में बाकी दलों को पीछे छोड़ दिया। दूसरी ओर अखिलेश यादव ने जिस तरह से अपने सांसद रामजी लाल सुमन का बचाव किया है, उससे यही लगता है कि राणा सांगा पर सिर्फ जुबान ही सांसद रामजीलाल सुमन की थी पर विचार अखिलेश यादव के ही थे। क्योंकि अखिलेश यादव ने कभी भी सुमन के बयान की आलोचना नहीं की। बीते विधानसभा चुनाव तक मुस्लिम-यादव समीकरण यानी एमवाई की बात करने वाले अखिलेश यादव अब पीडीए की बात करते हैं। वे हिंदुओं को जातियों में बांट कर और इसमें मुसलमानों को जोड़कर नया सियासी समीकरण बनाने की कोशिश में थे। किंतु उनका यह दांव बीते विधानसभा उपचुनाव में फेल हो गया। ऐसे में सपा को कोई और वोट समीकरण चाहिए जो उनके पीडीए में जुड़ कर उनकी चुनावी नैया पार लगा सके। यहां एक और बात भी जोड़ना जरूरी है कि पीडीए के ए यानी अल्पसंख्यक को लेकर सपाई इतने बेचैन हैं कि उन्हें नमाज पढ़ने में भी कोई संकोच नहीं है। इस मामले में समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व विधायक रविदास मेहरोत्रा का उल्लेख करना जरूरी है। उन्होंने बीते रमजान माह के दौरान मुसलमानों के साथ बाकायदा नमाज पढ़ी और निकटता दिखाने की कोशिश की। भाजपा ने इस पर खूब चुटकियां लीं और इसे मुस्लिम तुष्टिकरण की इंतेहा करार दिया। उनका यह दांव भी हिंदुओं को सपा से थोड़ा और दूर कर गया। उधर मुस्लिम समाज को भी शायद उनका यह काम रास नहीं आया। इस पर बरेली वाले मौलाना शहाबुद्दीन रजबी बरेलवी ने कहा कि यह उसूलन और शरीयत के हिसाब से गलत है। उन्होंने कहा कि अगर रविदास मेहरोत्रा को नमाज इतनी ही प्यारी है तो वह पहले कलमा पढ़ें, रोजा रखें और हज करें। उसके बाद हम उन्हें गले लगाने को तैयार हैं। अभी तक शहाबुद्दीन रजबी बरेलवी के बयान पर रविदास मेहरोत्रा का कोई रिएक्शन नहीं आया है। गौशाला से बदबू वाले मुद्दे पर बागेश्वर धाम के धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने कहा है कि अब मैं उनकी सोच को क्या कहूं, बस यही कह सकता हूं कि उनकी सोच में गंदगी है। उनका कहना है कि गाय तो हमारी माता है, देश का सम्मान है, उसके प्रति ऐसा विचार ठीक नहीं है। इसके अलावा अपनी कथाओं के माध्यम से वे लगातार हिंदू समाज को जागरूक कर रहे हैं। उन्होंने हिंदू जोड़ो अभियान के नाम से पद यात्रा भी की है, और अन्य पदयात्राओं की योजना भी बना रहे हैं। इस प्रकार वे भी भाजपा का काम आसान करते जा रहे हैं। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने पिछले दिनों बिहार के गोपालगंज जिले में कथा का आयोजन किया था। सनातनियों की भारी भीड़ जुटी थी। इससे परेशान होकर राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं ने बाबा के खिलाफ बयान बाजी भी शुरू कर दी थी। और यहां तक कह दिया था कि इन बाबाओं का बिहार के लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है। इसी दौरान आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर भी बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी के घर पर मेहमान बनकर पहुंचे थे। इन दोनों की बिहार में मौजूदगी ने माहौल ऐसा बना दिया था कि लगा हिंदुत्व का ज्वार उठ गया है। इसी से विपक्ष परेशान हो गया है। इसके अलावा संघ प्रमुख मोहन भागवत ने धर्मांतरण के मुद्दे पर कहा है कि सभी धर्म एक हैं तो धर्मांतरण की जरूरत ही क्या है। उनका कहना है कि भारत के सभी लोग सनातनी हैं, इसलिए धर्मांतरण की जरूरत नहीं है। लोगों को ये बात समझनी चाहिए कि अगर आप हिंदू हैं तो आपको हिंदू ही रहना है, डर और लालच में धर्म नहीं बदलना चाहिए। संघ प्रमुख का कहना है कि हमें अपना घर, मंदिर और श्मशान सुरक्षित रखना होगा। देश और सनातन अपने आप सुरक्षित हो जाएगा। इसके अलावा संघ के सह सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने कहा है कि अगर संघ के कार्यकर्ता काशी, मथुरा के मंदिरों के लिए आंदोलन करना चाहते हैं, तो संगठन को इससे कोई परहेज नहीं है। इस प्रकार वे मथुरा और काशी के लिए आंदोलन शुरू करने को हरी झंडी दिखा रहे हैं। और उनका यह बयान भाजपा को ही मजबूत करेगा। कुल मिलाकर हिंदुत्व के बढ़ते ज्वार के सामने अखिलेश यादव को अपना पीडीए शायद कमजोर लगने लगा है। ऐसे में उन्हें नये वोट बैंक की दरकार है। और शायद इसी लिए वे हिन्दू धर्म की शैव शाखा को आकर्षित करने में लग गए हैं।
इटावा में केदारनाथ धाम की अनुकृति निर्माणाधीन : उत्तराखंड का केदारनाथ धाम सनातनियों की आस्था का केंद्र है। हर साल जब चार धाम यात्रा शुरू होती है तो देश-विदेश से लाखों भक्त केदारनाथ का दर्शन करने पहुंचते हैं। केदारनाथ की चढ़ाई दुर्गम है, और वहां पहुंचना काफी मुश्किल है। फिर भी वहां दर्शनार्थियों का तांता लगा ही रहता है। पर अब केदारनाथ धाम जैसा ही एक और मंदिर उत्तर प्रदेश के इटावा में बन रहा है। इसका का नाम श्री केदारेश्वर महादेव मंदिर है। बीते महाशिवरात्रि के मौके पर इस मंदिर में शिवभक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा। इस मंदिर को बनवा रहे सपा नेता अखिलेश यादव ने केदारेश्वर महादेव मंदिर का वीडियो भी सोशल मीडिया मंच एक्स पर शेयर किया है। इस निर्माणाधीन मंदिर में नंदी, गर्भगृह सब कुछ केदारनाथ जैसा ही बन रहा है। मंदिर की वास्तुकला केदारनाथ मंदिर जैसी ही है। जिस तरह उत्तराखंड के केदारनाथ के सामने नंदी विराजमान हैं, ठीक वैसे ही इटावा के केदारेश्वर महादेव मंदिर के सामने भी नंदी को स्थापित किया गया है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान केदारनाथ का स्वरूप भी ठीक वैसा ही है, जैसा केदारनाथ मंदिर में हैं। यह मंदिर इटावा के चंबल घाटी में लायन सफारी के सामने बन रहा है। यह करीब से उत्तराखंड के केदारनाथ मंदिर का आभास कराता है। मंदिर में भव्य शालिग्राम शिला नेपाल से लाकर स्थापित की गई है।
केदारेश्वर मंदिर का विरोध शुरू, धामी ने लिखा पत्र : इटावा जिले में केदारेश्वर महादेव मंदिर निर्माण को लेकर उत्तराखंड में विरोध के स्वर उठने लगे हैं। साधु संतों और अलग-अलग धार्मिक संगठनों से जुड़े लोगों ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर इस पर आपत्ति दर्ज कराई है। उनका कहना है कि केदारनाथ भगवान का स्वरूप और नाम कहीं और नहीं दोहराया जाना चाहिए, इससे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचती है। खबर है कि राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी जन भावनाओं का मान रखते हुए यूपी सरकार को पत्र भी लिखा है, परंतु अभी तक इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है। उधर इस मामले में सपा का कोई बयान नहीं आया है। पर कुछ सपाइयों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है, और सबकी भावनाओं को ध्यान में रखकर इसका निर्माण किया जा रहा है। इस मंदिर के पुजारी भी कुछ ऐसा ही तर्क देते हैं। वे कहते हैं कि यह सही है कि यह मंदिर कुछ-कुछ केदारनाथ धाम के मंदिर जैसा ही है किंतु एकदम वैसा ही नहीं है। ज्ञात हो कि इसके पहले भी दिल्ली में केदारनाथ मंदिर के नाम पर मंदिर निर्माण शुरू किया गया था। इसके बाद काफी हंगामा हुआ था। बाद में मंदिर के निर्माण कार्य को रोक दिया गया था। अब इटावा के इस मंदिर के निर्माण के चलते एक बार फिर विरोध के स्वर देखने मिल रहे हैं। इस बाबत उत्तराखंड के विभिन्न धार्मिक संगठनों का कहना है कि केदारनाथ धाम का अपना एक ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है, जो श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़ा हुआ है। इसलिए, इसी नाम और स्वरूप का मंदिर किसी अन्य जगह बनाए जाने से धार्मिक परंपराओं का अपमान हो सकता है।
अब मध्यमार्गी शिव से है अखिलेश यादव की आस : हिंदू धर्म में वैष्णव, शैव और शाक्त भक्ति परंपरा की मान्यता रही है। इसमें शिव को मध्यमार्गी माना जाता है। यानी इस जगत का हर जीव उनकी कृपा पाता है, अगर वह सच्ची आराधना करे। तीनों ही विचारों के मानने वाले अपने आराध्य की श्रेष्ठता का बखान करते हैं, जबकि सनातन धर्म में तीनों की ही महत्ता है। खास बात ये भी है कि सनातन के धर्म ग्रंथों के अनुसार ये तीनों ही एक-दूसरे को अपना आराध्य मानते हैं, किंतु इन तीनों के भक्त समय-समय पर अपने आराध्य को बड़ा बताने से नहीं चूकते। मध्य काल में तो इसकी होड़ लगी थी। इसमें शिवशंकर भोलेनाथ को देव, दैत्य, मानव और सभी अन्य प्राणी मानते हैं। वर्तमान समय में यह विवाद थम गया था, पर लगता है कि अब फिर शुरूआत होने वाली है। अब शायद अखिलेश यादव अपनी तरह से हिंदुत्व की नई परिभाषा गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। और इसीलिए उन्होंने इटावा में प्रस्तावित कृष्ण मंदिर की स्थापना का विचार त्याग कर अब उस जमीन पर शिव मंदिर बनाने का निर्णय लिया है।
जानकार लोगों का कहना है कि यह अचानक नहीं है। ये पिछले लोकसभा चुनाव में कर्नाटक में दिए गए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के उस बयान से भी प्रेरित है, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर भाजपा के पास राम हैं, तो हमारे पास शिव हैं। दरअसल मल्लिकार्जुन खड़गे जिस क्षेत्र में प्रचार कर रहे थे, वहां के कांग्रेस प्रत्याशी के नाम में शिव का जुड़ाव था। उनके इस बयान को लेकर काफी राजनीतिक चिक-चिक भी हुई थी। इसे लेकर कांग्रेस को घेरने की बहुत कोशिश की गई। अब शायद सपा प्रमुख अखिलेश यादव को कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का वह बयान सूट कर गया है। इसीलिए अब वे इटावा में कृष्ण मंदिर की बजाय शिव मंदिर बनाने में जुट गए हैं। सूत्रों का कहना है कि दरअसल सनातन के कुछ जानकारों ने उन्हें यह सलाह दे दी है कि हिंदू धर्म में शिव सर्वमान्य और मध्यमार्गी हैं। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि मक्का मदीना में दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य द्वारा असुरों को दिया हुआ शिवलिंग रखा हुआ है। एक जनश्रुति के अनुसार दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य ने यह शिवलिंग देते हुए कहा था कि इसे छिपा कर रखना। जब तक यह सुरक्षित रहेगा तब तक तुम्हारी विचारधारा चलती रहेगी। जानकार यह भी कहते हैं कि मुस्लिम धर्म शुक्राचार्य द्वारा पोषित वही वाम मार्गी विचारधारा है। अब ये कितना सच है यह तो दावे के साथ नहीं कहा जा सकता किंतु हिंदू और मुस्लिम धर्म में काफ़ी विरोधी विचार हैं। जैसे कि हिन्दू सूर्य को पूजते हैं और मुस्लिम चांद को पाक और मुकद्दस मानते हैं। एक को पूर्व की दिशा अच्छी लगती है तो दूसरे को पश्चिम दिशा। एक शादी को सात जन्मों का बंधन मानता है तो दूसरा एग्रीमेंट कहता है। एक शाकाहारी है तो दूसरा मांसाहारी। हिंदू मान्यताओं में जिस वाममार्गी सनातन विरोधी असुर परंपरा की कल्पना की गई है, वह मुस्लिम धर्म के काफी नजदीक भी है। वैसे शैव परंपरा और इस्लाम में एक बात कामन भी है कि दोनों ही मूर्ति पूजक नहीं हैं। शैव शिव के प्रतीक लिंग की पूजा करते हैं और मुस्लिम निराकार अल्लाह को मानते हैं। सूचनाएं तो यहां तक हैं कि कर्नाटक में तो कुछ शिवभक्त शिव को अपने हृदय में धारण करते हैं, और शिवलिंग की भी पूजा नहीं करते हैं। और तो और कहा जाता है कि वे अपने को हिन्दू धर्म से अलग मानते हैं। ऐसे में मुस्लिमों को खुश करने के लिए भी शैव परंपरा मुफीद है। वैसे कहा जाता है कि जिसने भी शिव की आराधना की है , उनका आशीर्वाद प्राप्त करता है। भोलेनाथ को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तपस्या करने वाला देव, दैत्य, मानव या फिर कुछ और है। उनकी कृपा सब पर बराबर बरसती है। शायद इसीलिए इस सूत्र को अपनाने का फैसला किया गया है।
अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक