लखनऊ। लखनऊ में भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक के बाद पार्टी में उपजे विवाद का मजा विपक्षी पार्टियां भी खूब उठा रही हैं। कोई इसे भाजपा का आखिरी समय बता रहा है तो कोई मानसून आफर लिये घूम रहा है। दोनों तरफ से वार-पलटवार जारी है। पार्टी में उठे इस विवाद को लेकर सपा और कांग्रेस लगातार भाजपा सरकार और संगठन पर हमलावर हैं। भाजपा में सरकार बड़ी या संगठन का विवाद उठने के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने बिना केशव प्रसाद मौर्य का नाम लिये बाकायदा एक प्रस्ताव दे दिया है। उन्होंने एक्स पर लिखे एक पोस्ट में कहा है कि सौ लाओ और सरकार बनाओ। इसको लेकर टीवी चैनलों की चर्चाओं में खूब चख-चख हुई। हालांकि केशव प्रसाद मौर्य ने अखिलेश यादव के प्रस्ताव को सिरे से खारिज करके उनकी किरकिरी कर दी है। उन्होंने अखिलेश यादव को सुझाव दिया है कि वे पहले अपना घर बचाएं।
पिछले दिनों लखनऊ में हुई भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य आमने-सामने आ गए हैं। खेमेबंदी जारी है। खबर है कि योगी आदित्यनाथ को जहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का वरदहस्त बताया जा रहा है वहीं केशव प्रसाद मौर्य को भाजपा हाई कमान का समर्थन है। कार्यकारिणी की बैठक में जहां योगी आदित्यनाथ ने यह तक कर दिया कि ज्यादा उछल-कूद करने वालों को कुछ भी नहीं मिलने वाला है वहीं केशव प्रसाद मौर्य ने भी कह दिया कि संगठन हमेशा सरकार से बड़ा होता है। और जो पीड़ा इसमें कार्यकर्ताओं की है वही मेरी भी है, लेकिन सभी लोग ध्यान लगाकर सुन लें कि संगठन हमेशा सरकार से बड़ा होता है।
इसके बाद तो भाजपा और भाजपा के बाहर एक लंबी बहस छिड़ गई है। केशव प्रसाद मौर्य के समर्थन में कुछ पार्टी नेताओं के अलावा अपना दल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल, निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद, और सुभासपा सुप्रीमो ओमप्रकाश राजभर ने खुलकर बयान दिए हैं। इन सभी लोगों ने भाजपा कार्यकर्ताओं की उपेक्षा के चलते चुनाव में हार को महत्वपूर्ण और बड़ा कारण बताया है। इस विवाद के बाद डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य तो एक लंबी चौड़ी फाइल लेकर दिल्ली में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रसाद नड्डा से मुलाकात भी कर आए हैं। बताया जाता है कि इसके पूर्व वे पार्टी के लगभग 50 विधायकों से मुलाकात भी किए थे। उधर दूसरी तरफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी विधायकों से मुलाकात का सिलसिला तेज कर दिया है।
बताते हैं कि इसके पूर्व उन्होंने विधायकों से इस तरह की मुलाकात नहीं की थी। वे इस समय पूरे फॉर्म में दिखाई दे रहे हैं। यहां तक कि उन्होंने यूपी में उपचुनाव वाली प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों के लिए तीन-तीन मंत्रियों को प्रभारी नियुक्त कर बाकायदा उनकी मीटिंग भी ले ली है। खास बात यह है कि इस मीटिंग में दोनों उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक नहीं थे। योगी के इस कदम को भी लोग अपने तरीके से परिभाषित करने में लगे हुए हैं और इसे ताजा विवाद से जोड़कर देख रहे हैं। केशव प्रसाद मौर्य के अलावा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी भी दिल्ली गए थे। वहां उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी। खबरें हैं कि पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष कभी भी बदला जा सकता है, हालांकि राजनीति के जानकार इसे फिलहाल खारिज करते हैं। उनका कहना है कि पार्टी और सरकार में जो भी बदलाव होगा वह विधानसभा उपचुनाव के बाद ही होगा।
उधर भाजपा में उठे इस विवाद को लेकर विपक्षी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस और अन्य विपक्षी भी खूब चटकारे लेकर मजा ले रहे हैं। टीवी चैनलों पर इस मामले को लेकर भाजपा को घेरने की कोशिश की जा रही है। इस बाबत समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव ने तो बाकायदा बिना नाम लिए केशव प्रसाद मौर्य को एक ऑफर दे दिया है कि मानसून ऑफर है, 100 लाओ और सरकार बनाओ। इस ऑफर के जवाब में केशव प्रसाद मौर्य ने अखिलेश यादव को आड़े हाथों से लेते हुए कहा है कि वे पहले अपनी पार्टी बचा लें फिर कुछ और बात करें। उनका दावा है कि उनकी पार्टी में ही फूट पढ़ने वाली है। इधर सोशल मीडिया पर चल रही खबरों पर यकीन करें तो अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव कई विधायकों और सांसदों के साथ पार्टी तोड़कर भाजपा के साथ आने वाले हैं। हालांकि इसकी कोई भी औपचारिक पुष्टि या खंडन नहीं हो पाया है।
अखिलेश यादव को जवाब देते हुए केशव प्रसाद मौर्य ने कहा है कि समाजवादी पार्टी का वर्तमान और भविष्य दोनों खराब है। उन्हें ज्यादा उछलने की जरूरत नहीं है, जनता 2027 में उन्हें 47 पर समेट देगी। इस पर पलटवार करते हुए अखिलेश यादव ने कहा है कि भाजपा सेवान्मुखी नहीं सत्तान्मुखी पार्टी है। उन्होंने आगे कहा है कि न सरकार बड़ी होती है, न संगठन सिर्फ जनकल्याण की भावना बड़ी होती है। बहरहाल दोनों नेताओं के बाद-विवाद में जो भी सच्चाई हो किंतु यह तो सच है कि फिलवक्त भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को मनाने में लगी है। इस विषय पर अपना अलग दृष्टिकोण रखने वाले राजनीति के जानकार बताते हैं कि योगी आदित्यनाथ और केशव मौर्य की लड़ाई भाजपा हाईकमान की सोची रणनीति का हिस्सा है। ये बड़े नेताओं को कटघरे में खड़ा करके और कार्यकर्ताओं को भ्रमित कर उन्हें मनाने की कोशिश है। ताकि कार्यकर्ता यह समझे कि हाईकमान द्वारा इस मामले पर बातचीत की जा रही है और दोषियों पर कार्रवाई भी की जाएगी। जानकार कहते हैं कि इसीलिए पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और केशव प्रसाद मौर्य को दिल्ली बुलाकर अलग-अलग नेताओं से मुलाकात कराई गई ताकि लगे कि पार्टी हाई कमान इसे गंभीरता से ले रहा है। यह एक तरह से उनके जख्मों पर मरहम लगाने की रणनीति है। इससे पार्टी यह साबित करना चाहती है कि अगर कहीं कार्यकर्ताओं की उपेक्षा हुई है तो हम उनके साथ हैं। और भाजपा में हमेशा ही सरकार नहीं संगठन ही प्रमुख है। इसलिए कार्यकर्ता हमारी प्राथमिकता में है।
भाजपा में अंदर खाने चर्चा है कि यह विवाद इसलिए भी खड़ा हुआ है क्योंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कभी बीजेपी संगठन का हिस्सा नहीं रहे। उनका अपना संगठन हिंदू युवा वाहिनी था, जिसके बैनर तले वे अपनी गतिविधियां चलाते रहे। वैसे भी गोरखनाथ पीठ का भाजपा से सैद्धांतिक जुड़ाव तो रहा लेकिन औपचारिक जुड़ाव राम मंदिर आंदोलन के बाद तेज हुआ। आरोप है कि इसीलिए उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के बाद कभी भाजपा संगठन की कद्र नहीं की। उनकी पूरी सरकार ब्यूरोक्रेसी के भरोसे चलती रही। इसके चक्कर में कार्यकर्ता की उपेक्षा हुई, उसके काम नहीं हुए और वे नाराज हुआ। पार्टी के सांसदों और विधायकों ने भी सरकार से सहयोग न मिलने के कारण कार्यकर्ताओं से दूरी बनाए रखी, क्योंकि वे उनकी मदद करने की स्थिति में नहीं थे। इसके चलते भी कार्यकर्ता नाराज हुआ। इसके अलावा लोकसभा चुनाव के पूर्व कई क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं की मांग थी कि उनके वर्तमान सांसदों का टिकट काटकर नया चेहरा लाया जाए परंतु उनकी भावनाओं का ख्याल नहीं रखा गया। इससे भी कार्यकर्ता नाराज हुआ और उसने चुनाव से हाथ खींच लिए। उसने वोटरों को बूथ तक नहीं पहुंचाया, नतीजतन मतदान प्रतिशत गिरा व भाजपा के वोट कम हुए। इसीलिए भाजपा के लिए जरूरी है कि कार्यकर्ताओं को मनाया जाए।
आने वाले समय में इस बात की अधिक संभावना है कि केशव प्रसाद मौर्य उत्तर प्रदेश भाजपा के मुखिया बनें अथवा केंद्रीय संगठन में कोई बड़ा पद मिल जाए। यह भी हो सकता है कि उनका प्रमोशन करके केंद्र सरकार में ले लिया जाए ताकि यूपी में चल रहे कथित विवाद को समाप्त किया जा सके। पर वे लंबे समय तक प्रदेश सरकार में नहीं रह पाएंगे, यह लगभग तय सा लग रहा है।
इधर भाजपा में अंदर खाने चर्चा है कि अब कार्यकर्ता चाहता है कि पार्टी अपनी प्राथमिकता बदले और बहुसंख्यकों के बारे में अधिक सोचे। कार्यकर्ताओं का मानना है कि पार्टी ने अपने कोर वोटरों को उपेक्षित कर दूसरों को मैनेज करने की कोशिश की किंतु वे नहीं हुए। दुष्परिणाम ये हुआ की पार्टी का अपना कोर वोटर अब छिटकने लगा है। इसके अलावा भाजपा ने चुनावी होड़ में मध्यम वर्ग को भुला दिया है। पार्टी और सरकार की सारी तवज्जो दलित और पिछड़ों को लेकर है, किंतु वे सारे लाभ लेने के बावजूद इस बार भाजपा के साथ नहीं आए। कार्यकर्ताओं का कहना है कि पार्टी को इस दिशा में भी गंभीरता से सोचना होगा।
पार्टी की विचारधारा से जुड़े वोटरों और कार्यकर्ताओं का यह भी मानना है कि उनको आरक्षण से भी परहेज नहीं है, जहां जरूरी है उस वर्ग को आरक्षण मिलना ही चाहिए किंतु इस चक्कर में अनारक्षित वर्ग की अपेक्षा न की जाए। इस समय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की स्थिति भाजपा में उस व्यक्ति जैसी हो गई है, जिसके बारे में अफवाह फैल जाए कि वह गरीब हो गया है, और ऐसे में लोग एक-एक करके सभी उसका साथ छोड़ जाएं। भाजपा लोकसभा चुनाव के बाद यूपी में कमजोर क्या हो गई, पार्टी के अंदर और बाहर सारे तीर योगी के खिलाफ चलने लगे हैं। उनके सारे विरोधी एक स्वर में बयान देने लगे हैं। असल में योगी की कार्यशैली के चलते पार्टी नेताओं और सहयोगी पार्टियों को अपने मन माफिक करने का मौका ही नहीं मिला। सबकी दुकानदारी बंद हो गई। इसी के चलते इन नेताओं की योगी से नाराजगी चली आ रही है। अब जब उन्हें मौका मिला है तो वे केशव प्रसाद मौर्य के सुर में सुर मिलाकर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं।
सारे घटनाक्रम देखने के बाद एक बात तो साफ समझ में आ रही है कि योगी की कार्यशैली के चलते सरकार के अधिकतर मंत्री असंतुष्ट हैं। केवल डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ही नहीं, डिप्टी सीएम बृजेश पाठक भी इस लिस्ट में शामिल हैं। इन लोगों को अपने मन का करने नहीं दिया गया जिसके चलते ये नाराजगी बढ़ी है। बताया जाता है कि इन सभी मंत्रियों के कार्यों के ऊपर ब्यूरोक्रेसी की सतत निगरानी बनी हुई है, वह मुक्त होकर कोई काम नहीं कर पा रहे हैं। योगी के खिलाफ बयानबाजी में केशव प्रसाद मौर्य के अलावा राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले राज्यमंत्री दिनेश प्रताप सिंह, गोरखपुर की राजनीति में मजबूत दखल रखने वाले बीजेपी एमएलसी देवेन्द्र प्रताप सिंह, एमएलसी प्रांशु अवस्थी भी शामिल हैं। इस बाबत वरिष्ठ पत्रकार अभय दूबे का कहना है कि बीजेपी कभी हुआ करती थी कार्यकर्ता आधारित पार्टी, पर अब नहीं है। अब तो उसका कांग्रेसीकरण हो गया है। फैजाबाद से सपा के सांसद अवधेश प्रसाद पासी ने कहा है कि बीजेपी का समय अब खत्म हो चुका है। उसे यह बात अब समझ लेनी चाहिए।
उधर योगी आदित्यनाथ ने अपने मंसूबे एकदम साफ कर दिए हैं कि वे किसी भी दबाव में झुकने वाले नहीं हैं। वे इस समय पूरे फॉर्म में है और पेशबंदी में लगे हुए हैं। उनकी कोशिश है कि प्रदेश के अधिकतर विधायकों को अपने विश्वास में लिया जाए ताकि पार्टी को यह बताया जा सके कि बहुमत उनके साथ है। पार्टी विधायक त्रिभुवन राम ने भी मुख्यमंत्री के सुर में सुर मिलाते हुए कहा है कि हम अपने दलित वोट बैंक को सहेज नहीं पाए और अति आत्मविश्वास ने भी हमें धोखा दे दिया। उनका कहना है कि मुख्यमंत्री ने अपनी पूरी क्षमता से काम किया है। हालांकि वे भी मानते हैं कि पार्टी में बदलाव समय की मांग है। उधर भाजपा को कमजोर पड़ता देख सहयोगी पार्टियां भी सिर उठाने लगी हैं। अब देखें कि ये कथित लड़ाई आगे क्या मोड़ लेती है, परंतु जो भी होगा विधानसभा उपचुनाव के बाद ही।
अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक