लखनऊ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर पहली बार महाराजा सुहेलदेव की जयंती पर उनके पराक्रम और राष्ट्रसेवा भाव को असली सम्मान मिलने जा रहा है। जिसके तहत बहराइच जिले में चित्तौरा झील पर स्थित महाराजा सुहेलदेव की कर्मस्थली को अब एक अलग पहचान मिलेगी। वहां महाराजा सुहेलदेव की याद में 4.20 मीटर ऊंचा स्मारक और चित्तौरा झील के तट पर घाट एवं छतरी के निर्माण का कराया जाएगा। इसके अलावा भी निर्माण संबंधी कई कई अन्य योजनाएं शुरु की जाएंगी। इन सारी योजनाओं का वर्चुअल शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महाराजा सुहेलदेव की जयंती (16 फरवरी/बसन्त पंचमी) के अवसर पर करेंगे।
11वीं शाताब्दी के प्रतापी शासक एवं पराक्रमी योद्धा महाराजा सुहेलदेव की जयंती पर आयोजित इस कार्यक्रम में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी मौजूद रहेंगे। इस समूचे आयोजन की रुपरेखा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ही तैयार की है। जिसके तहत प्रदेश की सरकार महाराजा सुहेलदेव की जयंती पूरे प्रदेश में बड़े धूमधाम से मनाएगी। इस दौरान प्रदेश भर में कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। बहराइच में 16 फरवरी (बसंत पंचमी) को इस संबंध में आयोजित कार्यक्रम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्चुअल रूप से संबोधित भी करेंगे। कार्यक्रम के दौरान बहराइच और श्रावस्ती के लिए कुछ बड़ी सौगातों की भी घोषणा की जायेगी। जिसके तहत महाराज सुहेलदेव की अश्वरोधी मुद्रा में कांस्य प्रतिमा की स्थापना, विशिष्ट अतिथि गृह, पर्यटक आवास गृह एवं कैफेटेरिया का निर्माण, चित्तौरा झील के तट पर घाट एवं छतरी का निर्माण, सामाजिक महोत्सव हाल/लान का निर्माण और बच्चों के लिए पार्क एवं जिम का निर्माण करने का ऐलान किया जाएगा। इससे चित्तौरा झील पर स्थित महाराजा सुहेलदेव की कर्मस्थली को अब एक अलग पहचान मिलेगी।
इसके पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में राजभर समाज के महाराजा सुहेलदेव को पूरे देश में एक अलग सम्मान दिया गया है। इनके सम्मान में डाक टिकट और ट्रेन चलाया जा चुकी है। इस क्रम को आगे बढ़ाने के लिए अब बहराइच में अरसे से उपेक्षित चित्तौरा झील पर स्थित महराजा सुहेलदेव मंदिर को संवारा जा रहा है और महाराजा सुहेलदेव की कर्मस्थली को एक नई पहचान दी जा रही है। बहराइच और उसके आसपास के क्षेत्र ऐतिहासिक और पौराणिक रूप से काफी महत्वपूर्ण रहे हैं। पौराणिक धर्म ग्रंथों के मुताबिक बहराइच को ब्रह्मा ने बसाया था। यहां सप्त ऋषि मंडल का सम्मेलन भी कराया गया था। चित्तौरा झील के तट पर त्रेता युग के मिथिला नरेश महाराजा जनक के गुरु अष्टावक्र ने वहां तपस्या की थी।
ऐसे थे महाराज सुहेलदेव : यूपी की धरती आदिकाल से ही अध्यात्म, संकृति और शौर्य से संपन्न रही है। यहां अवतारों के साथ साथ ऋषियों, योगियों और तपषियों ने देश दुनिया को भारत के गौरव से परिचित कराया। तो इसी भूमि के रणबाकुरों ने तुर्क मुगल आक्रांताओं से लेकर साम्राज्यवादियों को मूकी खाने को विवश किया। इन्ही वीरों में एक नाम महाराजा सुहेलदेव का है। महान संत बालार्क ऋषि के शिष्य और श्रावस्ती के राजा महाराज सुहेलदेव ने अपने शौर्य और पराक्रम के साथ थारु बंजारा सहित अनेक जाति समूहों और राजाओं का समूह बनाकर कौडियाला नदी के तट पर चित्तौरा के युद्ध में 15 जून 1033 को विदेशी आक्रान्ता महमूद गजनवी के भांजे सैयद सालार मसूद गाजी का उसकी सेना सहित संहार किया। भले ही इतिहासकारों ने सुहेलदेव के पराक्रम और उनकी अन्य खूबियों की अनदेखी की हो, पर स्थानीय लोकगीतों की परंपरा में महाराज सुहेलदेव की वीरगाथा लोगों को रोमांचित करती रही है। यूपी की पावन भूमि पर लिखे जाने वाले गौरवशाली इतिहास में महाराजा सुहेलदेव के पराक्रम और शौर्य की गाथा दिग्दिगंतर तक भारतीय जनमानस को प्रेरित करती रही है। एक पराक्रमी राजा होने के साथ सुहेलदेव संतों को बेहद सम्मान देते थे। वह गोरक्षक और हिंदुत्व के भी रक्षक थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कथन : महाराजा सुहेलदेव देश के उन वीरों में रहें हैं, जिन्होंने मां भारती के सम्मान के लिए संघर्ष किया। महाराजा सुहेलदेव जैसे नायक का स्मरण समाज की हर वर्ग, हर समुदाय के सर्वांगीण विकास के हमारे संकल्प को नई शक्ति देता है।