चीनी अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका, रियल एस्टेट कंपनियों पर कर्ज का बोझ

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चीनी अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका, रियल एस्टेट कंपनियों पर कर्ज का बोझ… दुनिया की मजबूत अर्थव्यवस्था वाला ड्रैगन एक बार फिर सहमा नजर आ रहा है। रियल एस्टेट चीन की कई कंपनियां कर्ज के बोझ तले दबी हैं। कोरोना के कहर से दुनिया को जान -माल को तगड़ा झटका लगा तो चीन भी बच नहीं सका। चीन के रियल एस्टेट में भारी गिरावट के बावजूद कैसे बचेगी चीनी अर्थव्यवस्था …. यह एक बड़ा सवाल खड़ा है। विशेषज्ञों की मानें तो चीन की कई बड़ी रियल एस्टेट कंपनियों के ऊपर जो कर्ज का बोझ है, वह देश की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ने के लिए काफी है। इसके बावजूद, चीन के बैंकिंग सेक्टर सहित दूसरे क्षेत्रों पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ सकता है।

मालूम हो कि चीन की आबादी करीब 1.4 अरब की है। इस देश ने पिछले एक दशक में अपनी अर्थव्यवस्था को दोगुना कर लिया है। इसके बावजूद चीन में सितंबर महीने में काफी अधिक हड़कंप मच गया था। खबर आयी कि कि चीन के बड़े रियल एस्टेट डेवलपर्स में से एक एवरग्रांदे समूह काफी अधिक कर्ज में डूब गया है।

विशेषज्ञों की मानें तो इस समूह के ऊपर करीब 305 अरब डॉलर का कर्ज हो चुका है। साथ ही, अनुमान लगाया गया कि शायद यह समूह कर्ज न चुका पाए। हालांकि, यह आंकड़ा पानी में बहती हुई बर्फ का सिरा मात्र था। हकीकत में यह आंकड़ा काफी ज्यादा था। वित्तीय समूह नोमुरा ने अनुमान लगाया है कि एवरग्रांदे कंपनी का कुल कर्ज 50 खरब डॉलर से ज्यादा का है। क्या यह आपके लिए एक बड़ी और डरावनी संख्या है? क्या आपको इस संख्या से डरने की जरूरत है?

ब्लूमबर्ग न्यूज के अनुसार, इससे भी बुरी बात यह है कि रियल एस्टेट की 30 बड़ी कंपनियों में से 20 ने रियल एस्टेट की अटकलों पर लगाम लगाने के लिए चीन की सरकार द्वारा निर्धारित कर्ज से जुड़े तीन रेडलाइन में से कम से कम एक का उल्लंघन किया है। इसका साफ मतलब है कि इन कंपनियों की स्थिति सही नहीं है। इनमें बिक्री के हिसाब से सबसे बड़ी कंपनी कंट्री गार्डन और चाइना रेलवे कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन (सीआरसीसी) शामिल हैं। सीआरसीसी ने रियल एस्टेट के साथ-साथ देश के कई हाई-स्पीड रेल नेटवर्क और सबवे सिस्टम का निर्माण किया है। सीआरसीसी और एवरग्रांदे ने कर्ज से जुड़े तीनों रेडलाइन का उल्लंघन किया है।

नए घरों की बिक्री में एक-तिहाई की कमी : रियल एस्टेट, आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभाता है। चीन के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में रियल एस्टेट का 29 प्रतिशत योगदान है। ऐसी स्थिति में अगर इस क्षेत्र में किसी तरह की उथल-पुथल होती है, तो इसका सीधा असर चीन की पूरी अर्थव्यवस्था पर हो सकता है। एवरग्रांदे का घोटाला सामने आने के बाद से इस क्षेत्र के निवेशक काफी परेशान हो गए हैं। इस वजह से पिछले महीने नए घरों की बिक्री में 32% की गिरावट आयी है। इन सब के बावजूद, चीनी रियल एस्टेट बाजार के संचालन के तरीके की वजह से किसी भी संभावित खतरे के प्रभाव को कम किया जा सकता है।

ब्रिटेन के मैनचेस्टर विश्वविद्यालय में चीन के अर्थशास्त्र के वरिष्ठ व्याख्याता शियाओबिंग वांग की मानें तो, अमेरिका में 2008 में रियल एस्टेट के क्षेत्र में गंभीर संकट पैदा हुआ था। इस तरह की संकट चीन में पैदा न हो, इसके लिए चीनी सरकार ने कर्ज को लेकर रेडलाइन बनाने का फैसला किया। वांग का अनुमान है कि इस घटना से काफी ज्यादा लोगों की आजीविका पर संकट आ सकता है। नौकरियां जा सकती हैं। हालांकि, पूरी अर्थव्यवस्था पर इसका असर सीमित होगा।

वांग इसके पीछे की वजह बताते हैं। वह कहते हैं कि पश्चिम के देशों की तुलना में चीन में मध्यमवर्ग के अधिकांश परिवारों के पास ज्यादा बचत रहता है। गोल्डमैन सैक्स के अनुसार, चीनी उपभोक्ताओं ने 2020 में अपनी आय का औसतन 33.9 प्रतिशत हिस्सा बचाया। परंपरागत तौर पर, उन्होंने अपनी इस बचत को शेयर बाजार या रियल एस्टेट में निवेश किया।

वांग कहते हैं, आमतौर पर एक चीनी परिवार संपत्ति खरीदने के लिए सिर्फ 60% हिस्सा ही बैंक से कर्ज के तौर पर लेता है। बाकी का 40% वे डाउनपेमेंट करते हैं। इसके विपरीत अमेरिका में लोग 3 से 6%, ब्रिटेन में 5 से 15% और जर्मनी में 20% तक डाउनपेमेंट करते हैं। इसलिए, अगर संपत्ति की कीमतें 20 से 30% तक कम भी होती हैं और डिफॉल्ट होने वाले लोगों की संख्या बढ़ती है, तो भी बैंकिग सेक्टर की स्थिति सामान्य बनी रहेगी।

संपत्ति के मालिकों को होगा भारी नुकसान : मौजूदा हालात में संपत्ति खरीद चुके लाखों लोगों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। हालांकि, यह ऐसे संकट से बेहतर है जिसमें दुनियाभर की वित्तिय प्रणाली प्रभावित होती है। जैसे कि 2008 में अमेरिकी निवेश बैंक लेहमन ब्रदर्स के दिवालिया होने की वजह से हुआ था। 1990 के दशक के अंत में चीनी अर्थव्यवस्था खुलने लगी। संपत्ति की कीमतों से जुड़ी अटकलों ने करोड़ों चीनी निवेशकों को अमीर बना दिया। 2000 और 2018 के बीच संपत्ति की कीमत औसतन चार गुना बढ़ गई।

राजधानी बीजिंग में अपार्टमेंट की कीमतें औसत आय से 55 गुना तक पहुंच गई हैं। अमेरिका की तुलना में चीन का रियल एस्टेट बाजार पहले से ही दोगुना है। 2019 में इसकी कीमत करीब 52 ट्रिलियन डॉलर थी। वांग की मानें तो, एक और अंतर यह है कि चीन में संपत्ति खरीदने वाले लोग अपनी संपत्ति से ज्यादा किराया पाने की उम्मीद नहीं रखते हैं जबकि पश्चिमी देशों में संपत्ति के मालिक 10 से 20 साल के अंदर किराए से संपत्ति की कुल कीमत वापस पा लेना चाहते हैं। चीन में यह समय करीब 50 साल है। कुछ शहरों में तो 100 साल तक है।

किराए से होने वाली कम आय की वजह से डिफॉल्ट होने वाले लोगों की संख्या कम हो जाती है। अधिकांश लोग डिफॉल्ट होने की जगह नए हालात और नई कीमतों को स्वीकार कर लेते हैं। एक और बात यह है कि चीन में हर पांचवां घर (65 मिलियन) खाली है। यहां रहने वाला कोई नहीं है। वांग ने बताया, जाहिर है, बड़े पैमाने पर आपूर्ति है, लेकिन ये मकान मालिक हैं जिनके पास इनमें से कई खाली संपत्तियां हैं। ये लोग रियल एस्टेट का कारोबार करने वाले नहीं हैं।

सरकार कर सकती है हस्तक्षेप : हाल के कुछ हफ्तों में एवरग्रांदे सहित कई अन्य बड़ी कंपनियों ने अपने कर्ज को चुकाने के लिए अपनी संपत्तियां बेचने की कोशिश की है। एवरग्रांदे की वजह से देश की अर्थव्यवस्था पर ज्यादा असर न पड़े, इसलिए चीन की सरकार इस मामले को बेहतर तरीके से प्रबंधित कर सकती है। फिलहाल, इस कंपनी में 2 लाख लोग काम करते हैं। साथ ही, 30 लाख लोगों की आजीविका अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़ी हुई है।

कंपनी अब तक डिफॉल्ट होने से बची हुई है। इसने अब तक दो बार कर्ज की रकम का भुगतान किया है। भुगतान के लिए एक और समय सीमा अगले सप्ताह की है। वांग कहते हैं, जाहिर तौर पर बैंकों को कुछ नुकसान होगा, लेकिन अधिकांश कंपनियां अपना कर्ज चुका देंगी।

वांग का अनुमान है कि संपत्ति की कीमतों में 20% से ज्यादा की औसत गिरावट नहीं आएगी। कुछ शहरों में यह गिरावट और कम हो सकती है जबकि 2008 में कई अमेरिकी शहरों में कीमतें 50% तक कम हो गई थीं। वहीं, चीन की सरकार कुछ शहरों में नए संपत्ति कर को लागू करने की दिशा में प्रयास कर रही है, ताकि अलग-अलग तरह की अटकलों को विराम दिया जा सके। हालांकि, वांग को लगता है कि ऐसा सिर्फ कुछ समय के लिए किया जाएगा।

वांग कहते हैं, चीन में शहरीकरण केवल आधा ही हुआ है। गांव में रहने वाले चीनी दूसरे और तीसरे स्तर के शहरों में जाना जारी रखेंगे। जैसे-जैसे उनकी आय और जीवन स्तर में वृद्धि होगी, वे बेहतर घर चाहेंगे. आंकड़े बताते हैं कि 1978 में सिर्फ 17% चीनी लोग शहरों में रहते थे। अब यह आंकड़ा 60% को पार कर गया है। अनुमान है कि 2050 तक हर पांच में चार चीनी लोग शहर में रहेंगे।

वहीं, भारतीय परिदृश्य में देखें तो प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संपत्ति सलाहकार नाइट फ्रैंक ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट ‘एशिया-पैसिफिक रियल एस्टेट आउटलुक 2021: नैविगेटिंग दी पोस्ट-पैनडेमिक रिकवरी’ में देखा है कि 2021 के नए वर्ष में इंडिया का ऑफिस मार्केट मज़बूत रहेगा। रिपोर्ट के अनुसार, बेंगलुरु मार्केट अगले साल किराये के मूल्यों में वृद्धि अनुभव करने की उम्मीद है, जबकि मुंबई और एनसीआर किराये के मूल्यों में स्थिर रहने की उम्मीद है। इन रुझानों से संकेत मिलता है कि अप्रैल – जून 2020 के बीच एक धूमिल अवधि के बावजूद नए साल में ऑफिस स्पेस के लिए समग्र मांग मजबूत रह सकती है।

भारत के मुख्य ऑफिस मार्केट के लिए, सकारात्मक रुझान 2020 (जुलाई – सितंबर) के बाद के हिस्से में प्राप्त प्रोत्साहन का नतीजा हैं, जिसने ऑफिस स्पेस के मांग की वापसी होते हुए देखी है, हालांकि पूर्व-कोविड अवधियों में अभी भी कमी है। विशेष रूप से, बेंगलुरू को मौजूदा कम रिक्तियों का लाभ मिला है जो आगामी आपूर्ति के बहुत से अवशोषण को सक्षम करेगा। वैश्विक बाजारों और बड़े टैलेंट पूल की तुलना में शहर को अपेक्षाकृत कम किराये का फायदा है जो इस बाजार के तेजी से पुनरुद्धार में मदद करना चाहिए क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं सामान्य स्थिति की ओर बढ़ रहीं हैं। रिपोर्ट के अनुसार, एशिया-पैसिफिक प्राइम ऑफिस किराए में 2021 में -3% से 0% के बीच गिरावट की संभावना है।