लखनऊ। व्यवस्था बदलने के लिए माहौल का बदलना बहुत जरूरी है। और, माहौल बदलने के लिए आवश्यक है समस्या की तह तक जाना। प्रदेश में बाल अपचार के मामलों को लेकर सरकार ने समस्या के मूल को समझ उन उपायों पर ध्यान दिया है। जिससे “नादान” आगे चलकर “अपराधी” न कहे जाएं। इसे लेकर योगी सरकार की संवेदनशीलता को ऐसे समझा जा सकता है कि जाने-अनजाने अपराध की डगर पर बढ़ रहे बच्चों को समय रहते सुधारने के लिए प्रदेश के सभी थानों में बाल कल्याण पुलिस अधिकारी नियुक्त कर दिए गए हैं। बच्चों से जुड़े मामलों की हर जिले पर नियमित मासिक समीक्षा भी हो रही है।
किशोर न्याय अधिनियम-2015 (जेजे एक्ट) यूं तो पूरे देश में लागू है लेकिन बीते साढ़े चार सालों में उत्तर प्रदेश में इसके प्रावधानों को बेहद गंभीरता से क्रियान्वित किया गया है। पूर्व में जब किसी बच्चे पर छिटपुट अपराध के आरोप लगते थे तो उसके साथ होने वाला वर्ताव काफी हद तक अपराधियों जैसा ही होता था। आरोपी अपचारी के साथ दुर्व्यवहार, ताना मारने जैसी स्थिति से उसके आगे सुधरने की गुंजाइश कम रहती थी। पर, इस स्थिति में बदलाव के लिए शासन स्तर पर पहल की गई।
बच्चों द्वारा किए गए अपचार के मामलों में उन्हें कैसे ‘हैंडल’ किया जाए, इसके लिए प्रदेश पुलिस ने समय-समय पर वर्कशॉप से पुलिसकर्मियों को प्रशिक्षित किया है। राज्य के सभी थानों में बाल कल्याण पुलिस अधिकारी को इसी उद्देश्य से नियुक्त किया गया है कि वह बच्चों से जुड़े मामलों को अलग से और पुलिस की पुरानी इमेज से इतर होकर संभालेंगे। थानों पर बच्चों से जुड़े मामलों को कैसे संभाला गया, इसकी समीक्षा के लिए हर जिले में विशेष किशोर पुलिस इकाई भी गठित है। जिलों के अपर पुलिस अधीक्षक या एसपी क्राइम इसके नोडल अधिकारी होते हैं। यह इकाई प्रतिमाह मामलों की समीक्षा करती है।
बाल मित्र पुलिस दे रही दोस्ताना व्यवहार पर जोर : पूर्व में जहां छोटी से छोटी चोरी या मारपीट के मामलों में बच्चों-किशोरों को थाने पर बैठा लिया जाता था, वहीं अब उन्हें चाइल्ड फ्रेंडली माहौल देकर अपने अंतर्मन की बात कहने के लिए प्रेरित किया जाता है। सामाजिक कार्यकर्ता और विशेष किशोर पुलिस इकाई से जुड़े राजेश मणि बताते हैं कि सरकार के प्रयास से शिकायती बच्चों के प्रति पुलिस थानों में पूरा नजारा ही बदल गया है। बच्चों के मामलों में पुलिस की संवेदनशीलता बढ़ी है। अब उनसे दोस्ताना अंदाज में बातचीत कर यह जानने की कोशिश की जाती है कि हाल फिलहाल उनसे यह नादानी क्यों हुई। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ ही उनके पारिवारिक और सामाजिक परिवेश का भी विश्लेषण किया जाता है।
बच्चे या किशोर के खिलाफ शिकायत करने वाले को भी पुलिस यह समझाती है कि मामले को तूल देने की बजाय बच्चे को एक बार सुधरने का मौका दें। कई थान परिसरों में अलग से एक क्षेत्र “बच्चों का अपना बाल मित्र पुलिस थाना” विकसित किया गया है। महराजगंज जिले के सोनौली थाना परिसर में बना बाल मित्र पुलिस थाना तो बच्चों के लिए आनंदगृह लगता है। यहां की दर ओ दीवार ऐसी है कि बच्चों को यह महसूस ही नहीं होता कि वह पुलिसवालों के पास आए हैं। दीवारों पर कार्टून पेंटिंग्स और खेल के समान के बीच वे सादे वेश वाले पुलिसकर्मियों के कुछ ही देर में दोस्त बन जाते हैं। कुल मिलाकर सरकार ऐसे प्रयास कर रही है जिससे बालपन में छोटी-मोटी गलतियां करने वाले मानसिक रूप से अपराध की राह से दूर रहें।