आधुनिक युग में जुवेनाइल डायबिटीज छोटे-छोटे नौनिहालों को अपना शिकार बना करके बाल्यावस्था में ही जीवन को कष्ट व और दुखमय कर रही है। बच्चों की मधुमेह के संदर्भ में सुप्रसिद्ध चिकित्सक डॉक्टर रजनी पोरवाल ने बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी दी है। डॉक्टर रजनी पोरवाल देश की जानी-मानी योगाथेरापिस्ट और कंसलटेंट नेचुरोपैथ हैं और श्रीनाथ चिकित्सालय भगवत दास घाट सिविल लाइंस कानपुर में निस्वार्थ सेवाएं अर्पित कर समाज की चिकित्सा सेवा कर रही हैं।
जूविनाइल डायबिटीज क्या है ? : विभिन्न कारणों से किशोर अवस्था से कम आयु के बच्चों में जब खुद के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता यानी शरीर की रक्षा फोर्स ही अपनी ही दुश्मन बनकर पेनक्रियाज की इंसुलिन निर्माण करने वाली बीटा कोशिकाओं को तेजी से नष्ट करने लगे तो इंसुलिन के अभाव में रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है। बच्चों की इस बीमारी को जुवेनाइल डायबिटीज के नाम से जानते हैं।
जब सुरक्षा ही करें शरीर पर वार : बच्चों में डायबिटीज होने का कारण सामान्यतः बड़े लोगों की मधुमेह से अलग होता है। शरीर के अंदर पेनक्रियाज के बीटा सेल्स खून में उपलब्ध ग्लूकोज को कैलोरी में बदलने के लिए इंसुलिन का निर्माण करते हैं। शरीर की रक्षा प्रणाली शरीर के अंदर आने वाले विभिन्न हानिकारक बैक्टीरिया, वायरस, फंगस, अमीबा आदि को मार कर शरीर की विभिन्न बीमारियों से रक्षा करती है। जब यही हमारी रक्षा प्रणाली हमारे शरीर के खिलाफ ही कार्य करने लगे तो बहुत खराब स्थिति उत्पन्न हो जाती है। विभिन्न कारको और अनेकों अनेक कारणों से जब शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पैंक्रियाज की इंसुलिन बनाने वाली बीटा सेल्स पर अटैक करती है तो बीटा कोशिकाएं मरने लगती हैं और इंसुलिन का निर्माण प्रभावित होता है। इंसुलिन का निर्माण ना होने से शरीर रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित नहीं कर पाता। फल स्वरूप रक्त में शर्करा की मात्रा बहुत ज्यादा बढ़ जाती है।
लक्षणों को समझिए : इसके लक्षण बहुत कम वक्त में सामने आते हैं। हंसता खेलता स्वस्थ बच्चा अचानक बहुत ज्यादा पेशाब करने लगे.. अधिक प्यास और अधिक भूख के लक्षण दिखाई दें.. बच्चा भोजन पूरा लेने के बाद भी कमजोर होता जाए.. वजन कम हो जाए तो हमें सजग होकर मधुमेह की जांच करानी चाहिए। इसमें विलंब करना घातक होता है। कभी-कभी तो 2 से 4 महीने के अल्पकाल में ही पीड़ित बच्चे की स्थिति नाजुक हो जाती है और उसके जीवन के साथ खतरा पैदा हो जाता है।
लापरवाही है घातक : 5 वर्ष की आयु से 15 वर्ष की आयु के मध्य के बच्चों में जूविनाइल डायबिटीज देखी जाती है। किंतु कभी-कभी 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में भी मधुमेह के लक्षण प्रकट होते हैं।
बच्चों की डायबिटीज में पेनक्रियाज की बीटा कोशिकाएं पूरी तरह नष्ट हो जाती है। बीटा कोशिकाएं ही इंसुलिन का निर्माण करते हैं। इंसुलिन के निर्माण ना होने से ऐसे पीड़ित बच्चे को पूरे जीवन इंसुलिन लेना होता है। बिना इंसुलिन इनका जीवन कठिन हो जाता है। जुवेनाइल डायबिटीज से पीड़ित अधिकांश बच्चों के शरीर के विकास की उम्र होती है। ऐसे वक्त रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाने से उनका सम्पूर्ण समग्र समुचित शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है लेकिन सही वक्त पर उपचार हो जाने से बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास में होने वाली कमी को रोका जा सकता है। और यदि नियम पूर्वक उपचार सही रूप से चलता रहे तो यह बच्चे पूर्ण स्वस्थ और आरोग्यमय जीवन जी सकते हैं। उनके शरीर का सही सही रूप में पूर्ण विकास होता है।
आहार ही औषधि है : जुवेनाइल मधुमेह से पीड़ित बच्चों को ऐसा आहार दें जो बच्चों के समग्र विकास व शरीर की सभी जरूरतों को पूरी करने के लिए आवश्यक विटामिन खनिज लवण और पोषक तत्वों की पूर्ति कर सके। साथ ही साथ बच्चे को दिया जा रहा आहार मधुमेह के बेहतर मैनेजमेंट में भी मददगार हो और खून में चीनी के उच्च स्तर की मात्रा को कम करने वाली औषधि की तरह फायदा पहुंचाए और बच्चों के खून में उच्च स्तर पर पहुंचे ग्लूकोज को कम करने में महत्वपूर्ण हो।
ऐसे बच्चों के आहार पर बहुत ध्यान देने की जरूरत होती है। उन्हें श्वेत चीनी, मिठाईयां, मैदा और तली मसालेदार खाद्य पदार्थों, जंक फूड और फास्ट फूड से परहेज करना चाहिए। किंतु अन्य पौष्टिक आहार.. जिनमें मिनरल्स, बिटमिन, फाइबर, फाइटोन्यूट्रिएंट्स की भरपूर मात्रा हो उसका संतुलित मात्रा में सेवन जरूर करना चाहिए। टमाटर, जामुन, नींबू आदि का सेवन बहुत अच्छा है।
जीवन रक्षक घरेलू उपाय : अंकुरित मेथी, करेले के बीज और साबुत धनिया प्रत्येक 2 ग्राम तथा 5 ग्राम अलसी और 5 ग्राम काला तिल लेकर सभी को अंकुरित करके रोज प्रातः खाली पेट बच्चे को खूब चबा चबाकर खाने को कहें। इसके साथ गेहूं का भूसा जो गाय को खिलाते हैं 50 ग्राम भूसा एक गिलास पानी में खूब ऊवाले और छानकर जुवेनाइल डायबिटीज से पीड़ित बच्चे को प्रात:काल खाली पेट पिला दें। रक्त शर्करा को नियंत्रित कर पीड़ित बच्चे के समग्र विकास के लिए बहुत लाभप्रद है।पीड़ित छोटे बच्चों के बहुत जिद करने पर थोड़ा सा गुड़ या किशमिश या अंजीर या मुनक्का दिया जा सकता है।
रोग संबंधी जटिलताएं बहुत घातक है : बच्चों मे सामान्य वयस्क डायबिटीज के रोगी की तरह मधुमेह जनित जटिलताएं ही होती हैं। सबसे अधिक हाइपोग्लाइसीमिया की संभावना रहती है। हाइपोग्लाइसीमिया में रक्त में अचानक ग्लूकोज की मात्रा कम हो जाती है और बच्चों के हाथ पैर एठने लगते हैं। यदि तत्काल उपचार ना हो तो जीवन के साथ खतरा हो सकता है। इसलिए बच्चों को हमेशा जेब में टॉफी रखने की सलाह दें। इनके भोजन का समय निर्धारित रखे। भोजन के वक्त में कभी भी लापरवाही उचित नहीं है। माता पिता को ग्लूकोमीटर से नियमित रूप से ग्लूकोज का परीक्षण करते रहना चाहिए। ताकि इस रोग की जटिलताओं से बच्चे को सुरक्षित रखा जा सके।
योग क्रियाएं अद्वितीय हितकारी हैं : प्रतिदिन 30 मिनट तक योगिक आसन और प्राणायाम का अभ्यास जरूर कराना चाहिए। आसनो में मंडूकासन, कुर्मासन और चरण आसन, विमानन आसन, धनुरासन और सर्वांगासन का अभ्यास दो दो मिनट तक सुबह शाम करना बहुत ज्यादा हितकारी माना जाता है। अर्धमत्स्येंद्रासन, ऊर्धहस्तोत्तानासन, पंछी आसन और पदचालन की योगिक सूक्ष्मक्रिया भी ऐसे बच्चों के जीवन में खुशियां ला सकती है। हार्टफुलनेस मेडिटेशन इस दुखदाई बीमारी से पीड़ित बच्चों के लिए बुद्धि विवेक और आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए रामबाण हितकारी उपाय है।
नेचुरोपैथी भी बहुत कारगर है : साफ मिट्टी और गोमूत्र को मिलाकर पेस्ट बनाएं और इस मिट्टी के पेस्ट को एक साफ कपड़े या पॉलीथिन के ऊपर आधा इंच मोटाई पर बिछा दीजिए। अब इस मिट्टी वाली परत को पेट पर नाभि के ऊपर रखते हैं। ध्यान रखें कि पॉलिथीन या कपड़े वाली साइड ऊपर हो मिट्टी का पेस्ट नाभि और पेट को स्पर्श करता रहे। आधा घंटे तक लेटकर इसे पेट पर रखते हैं। इसके बाद हटा देते है। पेनक्रियाज की बीटा सेल्स को शक्ति देनेके लिए यह उपाय बहुत लाभप्रद है।