जरूरी है इस वैज्ञानिक सच को भी समझना

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जब व्यक्ति के शरीर से निकलने वाले खून को कुछ देर खुला छोड़ दिया जाता है तो उसमें से एक पीला पीला द्रव बाहर निकलने लगता है। जिसे प्लाज्मा कहते हैं। यह प्लाज्मा मनुष्य के शरीर में पाए जाने वाले संपूर्ण रक्त का 55% होता है और इस 55% का 92% पानी होता है। शेष 8% अमीनो एसिड वसा फाइब्रिनोजेन ग्लूकोस विशिष्ट पदार्थ चीनी नमक सहित कई पदार्थ होते हैं।

जब इस प्लाज्मा से इन पदार्थों के साथ फाइब्रिनोजेन को जो रक्त को जमाने का कार्य करता है, को निकाल दिया जाता है। तब जो द्रव शेष बचता है, उसे सीरम कहते हैं। यह सीरम ही एंटीबॉडी को स्थान देता है एंटीजन और एंटीबॉडी एक तरह के प्रोटीन है लेकिन दोनों को पाए जाने का स्थान अलग अलग है।

एंटीजन जहां लाल रक्त कणिकाओं में पाया जाता है वही एंटीबॉडी सीरम में पाया जाता है और जब भी कोई बाहरी रोगाणु मनुष्य के शरीर पर आक्रमण करता है तो शरीर की यही एंटीबॉडी शरीर में आने वाले रोगाणुओं का विरोध करती हैं। इस विरोध के कारण ही रक्त के सीरम में कुछ विशिष्ट गुण पैदा हो जाते हैं। उन विशिष्ट गुणों में उन रोगाणुओं के भी एंटीबॉडी सीरम में पाए जाने लगते हैं। जिन्होंने शरीर में प्रवेश कर लिया है।

इन्हीं एंटीबॉडी की जांच करके यह जाना जा सकता है कि शरीर में वह रोगाणु या उसके लक्षण उपस्थित हैं या नहीं। यह एंटीबॉडी टेस्ट अपेक्षाकृत सस्ता होता है.. जल्दी होता है.. जबकि पॉलीमर चैन रिएक्शन के अंतर्गत मनुष्य के शरीर में एंटीबॉडी की जांच नहीं की जाती है बल्कि उस रोगाणु के उपस्थित होने की जांच की जाती है क्योंकि शरीर में आक्रमण के बाद कोई भी रोगाणु जब तक अपनी परिपक्व अवस्था को प्राप्त नहीं कर लेता है। तब तक वह शरीर में उपस्थित तो रहता है लेकिन शरीर के रक्त में उसके एंटीबॉडी नहीं पाए जाते हैं।

ऐसी स्थिति में व्यक्ति संक्रमित होते हुए भी स्वस्थ होने का संकेत देता है लेकिन पॉलीमर चेन रिएक्शन या पीसीआर टेस्ट के द्वारा शरीर में रोगाणु की उपस्थिति की जांच की जाती है। जिसकी जांच भारत में हर जगह होती नहीं है और यह एक महंगा टेस्ट भी है जो सभी के लिए संभव भी नहीं है। इसीलिए अभी तक सरकार के पास सिर्फ पीसीआर टेस्ट की स्थिति के कारण ही सभी लोगों की टेस्टिंग करना एक संभव कार्य नहीं था लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग के कारण वर्तमान स्थिति में संक्रमित लोगों के रक्त में उनके सीरम और जो लोग इस संक्रमण से जीवित नहीं रह गए हैं। उन व्यक्तियों की सिरम के द्वारा बनाए गए एंटी सिरा से अब किसी भी व्यक्ति के शरीर में उपस्थित रक्त की जांच से यह जानना आसान हो गया है कि वह व्यक्ति संक्रमित है या नहीं है।

बार-बार उसकी कई जांच की जा सकती है। जैसे कि रक्त समूह की जांच को किसी भी साधारण लैब में किया जाता है। सभी लोग यह जानते हैं कि मनुष्य में मुख्यतः चार रक्त समूह पाए जाते हैं। जिसे ए, बी, ओ और एबी कहा जाता है। रक्त वर्ग ए में व्यक्ति के अंदर एंटीजन ए पाया जाता है और एंटीबॉडी बी पाया जाता है जबकि बी रक्त वर्ग वाले में एंटीजन बी और एंटीबॉडी ए पाया जाता है। ऐसे ही और ओ रक्त वर्ग में एंटीबॉडी एबी पाया जाता है लेकिन एंटीजन कोई नहीं पाया जाता है।

जिसके कारण ओ रक्त वाला व्यक्ति सभी को रक्त दे सकता है और उसे सर्वदाता कहते हैं लेकिन एबी रक्त वाले में एंटीजन एबी पाया जाता है पर एंटीबॉडी कोई नहीं पाया जाता है। जिसके कारण वह सभी का रक्त ले सकता है। इसीलिए उसे सार्व ग्राही रक्त समूह भी कहते हैं और o रक्त वर्ग को सर्वदाता रक्त समूह कहते हैं। जब भी किसी व्यक्ति की रक्त की जांच करनी होती है तो व्यक्ति के रक्त की दो बूंदे स्लाइड पर लेकर रख ली जाती हैं।

उनमें बारी बारी से कृत्रिम तरीके से बनाए गए ए और बी एंटी सिराको डाला जाता है। यदि एंटीसिराए वाले नमूने में सिंदूर जैसी छोटी-छोटी संरचनाएं दिखाई देने लगती हैं तो रक्त समूह ए होता है। यदि ऐसी प्रतिक्रिया बी एनटी सीरा में दिखाई देती है तो रक्त समूह बी होता है यदि दोनों नमूनों में यह प्रतिक्रिया दिखाई दे तो रक्त समूह एबी होता है और यदि दोनों में कोई भी प्रतिक्रिया ना दिखाई दे तो व्यक्ति का रक्त समूह o होता है।

ऐसी ही साधारण जांच किसी भी संक्रमित व्यक्ति के शरीर में पाए जाने वाले सीरम में उपस्थित वायरस के कारण उत्पन्न एंटीबॉडी की जांच करके जाना जा सकता है। इसलिए यह सरल प्रक्रिया अब हमारे पास ज्यादा अच्छी स्थिति में है। इसलिए लोगों की टेस्टिंग वाला काम भी ज्यादा से ज्यादा किया जा सकता है और इस तरह के प्रचार-प्रसार से विपक्ष को संतुष्ट करने का प्रयास किया गया।

आलोक चाटिया