दूरस्थ क्षेत्रों में सेटेलाइट संचार सेवा देने की कोशिश

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मोबाइल और इंटरनेट कनेक्टिविटी से अछूते दूर दराज के इलाकों को संचार सुविधाओं से लैस करने के उद्देश्य से दूर संचार विभाग ने सेटेलाइट आधारित लो-बिट-रेट सेवाएं उपलब्ध कराने का मन बनाया है। इसके लिए आवश्यक लाइसेंसिंग फ्रेमवर्क हेतु दूरसंचार विनियामक (टीआरएआई) से सुझाव और संस्तुतियां देने का अनुरोध किया गया है।

ताजा सूचनाओं के अनुसार दूर संचार विभाग (डीओटी ) सस्ती लागत पर दूरस्थ क्षेत्रों में संचार सुविधाएं उपलब्ध कराने के प्रयास में है, जो अभी तक संचार सेवाओं से अछूते हैं। सेटेलाइट आधारित लो-बिट-रेट एप्लीकेशन (एसबीएलआरए) के जरिए ऐसे इलाकों में कनेक्टिविटी उपलब्ध कराने में मौजूदा लाइसेंसिंग ढांचे की सीमाएं आड़े आ रही हैं।

एसबीएलआरए का उपयोग करने में कम बिजली खर्च होती है। छोटे आकार के टर्मिनल की लागत कम आती है। इससे न्यूनतम हानि पर सिगनल ट्रांसफर होते हैं। इस तकनीक से उपलब्ध कराई जाने वाली संचार सेवाओं से आदिवासी इलाकों, दुर्गम घाटियों आदि जोखिम जन्य क्षेत्रों में कृषि, खनन, स्वास्थ्य, सुरक्षा, लाॅजिस्टिक, परिवहन और आपदा से संबंधित सूचनाओं को पहुंचाने में बहुत आसानी हो जायेगी।

एसबीएलआरए के उपयोग के नियमन के लिए पृथक लाइसेंसिंग ढांचे की आवश्यकता महसूस की गई। क्योंकि मौजूदा लाइसेंसिंग ढांचे से इसका नियमन संभव नहीं है। एसबीएलआरए सेवा प्रदाताओं के लिए पृथक एंट्री फीस, लाइसेंस फीस, बैंक गारंटी, राॅयल्टी फीस, एनओसीसी चार्जेस और स्पेक्ट्रम यूसेज चार्जेस आदि निर्धारित करने पड़ेंगे।‌‌ डीओटी के अनुरोध पर टीआरएआई अपने सुझाव-संस्तुतियां तैयार कर रहा है। दूर संचार क्षेत्र का विनियामक टीआरएआई अपने सुझाव संभवतःअगले माह तक प्रेषित कर देगा। ‌

प्रणतेश नारायण बाजपेयी