भारतीय भुगतान निपटान उद्योग पहली बार शीर्ष स्तर पर निजी, देशी-विदेशी उद्यमियों के लिए खोला जा रहा है। करीब ग्यारह वर्षों से सक्रिय भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई लि.) के समानांतर देश में एक या अधिक ढांचा (छतरी संगठन) खड़ा करने की जमीनी तैयारी हो गई है। कर्ताधर्ता रिजर्व बैंक ने सारी शर्तें तय कर दी हैं।
आर्थिक महत्व की सूचनाओं पर टिके इस जोखिम भरे व्यवसाय (अब कहा जा सकता है) में निवेश के उम्मीदवार देशी-विदेशी उद्यमियों को अपने कम्प्लीट प्रोफाइलयुक्त प्रस्ताव को रिजर्व बैंक के केंद्रीय कार्यालय में प्रस्तुत करने की अंतिम तारीख 26 फरवरी 2021 तय की गई है। 2012 के बाद से विश्वव्यापी आर्थिक राजनीतिक उठापटक तो हो ही रही थी। टेकनाॅलाॅजी अपनी रफ्तार से परिवर्तित हो रही थी।
अधिकतर देश, बल्कि ये कहना गलत नहीं कि जमीन, समुद्र से लेकर आकाश तक में नकारात्मक ताकतों की अतिक्रियाशीलता के चलते शांति पर आशांति हावी होती जा रही थी, किसी भी तरह आतंक को आगे बढ़ाने के जुनूनी धनसंपदा हथियाने के खातिर बतौर हथियार बड़ी शिद्दत के साथ टेकनाॅलाॅजी को इस्तेमाल में ले आए थे। कांटे की अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रतद्वंद्विता में आगे बढ़ने में कठिन चुनौतियां मुंह बाए खड़ी थीं अपने मुल्क के सामने और अभी भी इनसे मुक्त नहीं है भारत।
इन हालातों से होते गुजरते देश के भुगतान-निपटान उद्योग पर भी कई जोखिमों का आभास नीति निर्धारकों को होने लगा था। इसके इतर भुगतान-निपटान प्रणाली पर कारोबार का बोझ महीना दर बढ़ता ही जा रहा था। प्रणाली में कई खामियां उजागर हुईं जो प्रबंधन की चूकों के कारण हुई थीं। प्रणाली के संचालक संगठन की मनमानी, एकाधिकारी रवैया और क्रियाकलापों की भनक तत्कालीन वित्तमंत्री के कानों तक पहुंची। भुगतान प्रणाली जैसे संवेदनशील ढांचे पर साइबर अटैक के जोखिम को ध्यान में रख राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की मंशा पर एनपीसीआई का विशेष आॅडिट किया गया। नेशनल साइबर सिक्योरिटी कोआर्डीनेटर ने 2019 में खामियों का खुलासा किया था।
इसके पहले रिजर्व बैंक की निरीक्षण रिपोर्ट (जुलाई 2017) में एनपीसीआई के इंटर्नल आॅडिटिंग प्रैक्टिस में त्रुटियां पकड़ी गईं थीं। इस पृष्ठभूमि पर पूर्व वित्त सचिव और नीति आयोग के सलाहकार रतन पी. वाटल की अध्यक्षता में अगस्त 2016 में एक समिति का गठन किया गया। समिति ने घरेलू भुगतान प्रणाली के कार्यकारक अवयव (स्टेकहोडर) के साथ विचार विमर्श के बाद दिसंबर में 12-13 प्रमुख सिफारिशों से युक्त रिपोर्ट तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली को सौंपी। कुछ सिफारशों पर अमल भी हुआ। कुछ कारणों से कई अहम सिफारिशों को पूर्णरूपेण लागू नहीं किया गया।
पूर्व वित्त सचिव के रिजर्व बैंक गवर्नर बनने के बाद उस अधूरे कार्य को पूरा किया जा रहा है। भुगतान-निपटान के लिए एक या अधिक विकल्प मुहैया कराने के एजेंडा पर रिजर्व बैंक निजी, देशी-विदेशी पूंजी के जरिये उद्यमियों के लिए यह उद्योग शर्तों के साथ खोल रहा है। जानकारी है कि फेमा अधिनियम के दायरे में नये छतरी संगठन में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति होगी। नये संगठन के पास 500 करोड़ रुपये की चुकता शेयर पूंजी (पेड अप शेयर कैपिटल) होना अनिवार्य है।
रिजर्व बैंक में आवेदन करते समय इसके प्रवर्तक या प्रवर्तक समूह के पास न्यूनतम 50 करोड़ रु. की पूंजी होने की शर्त है। प्रस्तावित छतरी संगठन के सक्रिय होने पर हर समय इसकी न्यूनतम नेटवर्थ 300 करोड़ रुपये होनी चाहिए। छतरी संगठन की अधिकतम चुकता शेयर पूंजी में 40 फीसद से ज्यादा हिस्सेदारी प्रवर्तक या प्रवर्तक समूह नहीं रख सकेंगे। यद्यपि एनपीसीएल गैरलाभ अर्जक कंपनी के तौर पर दर्ज है। नये छतरी संगठन को लाभ अर्जित करने की अनुमति समझें या स्वैच्छिक विकल्प मिलेगा। नया छतरी संगठन कंपनी अधिनियम 2013 के तहत, भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम (पीएसएस) 2007 की धारा 4 के तहत रिजर्व बैंक से अधिकृत कंपनी के तौर पर स्थापित होगी। देश के कई प्रतिष्ठित औद्योगिक घराने और विदेशी संस्थागत निवेशक भारतीय भुगतान-निपटान उद्योग में हाथ आजमाने को तैयार हैं।आने वाला समय बताएगा कि एनपीसीआई का मुकाबला होगा किससे।
प्रणतेश नारायण बाजपेयी