कर्नाटक : संकट मोचक ही बनेंगे संकट !

कर्नाटक : संकट मोचक ही बनेंगे संकट ! बिहार, महाराष्ट्र के बाद अब कर्नाटक की बारी शिवकुमार की माफी के बाद सब ठीक नहीं ये माफी कांग्रेस पार्टी पर पड़ सकती है भारी वही समीकरण, वही समय और वही माहौल

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नयी दिल्ली। कर्नाटक में इन दिनों सब कुछ सामान्य नहीं है। यहां इस बात की चर्चाएं आम हैं कि जिस प्रकार बिहार और महाराष्ट्र में नीतीश कुमार और एकनाथ शिंदे की नाराजगी के बाद सत्ता परिवर्तन हो गया, ठीक उसी तरह कर्नाटक में भी हो सकता है। कारण यह बताया जा रहा है कि कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार को पिछले दिनों बेवजह माफी मांगनी पड़ी है, इससे वे बहुत व्यथित हैं। खबर है कि वे जल्द ही कोई ऐसा कदम उठा सकते हैं जो कांग्रेस को भारी भी पड़ सकता है। चर्चाएं तो यहां तक है कि कर्नाटक सरकार भी कांग्रेस के हाथ से जा सकती है। राज्य में कहा जाता है कि शिवकुमार कांग्रेस के संकटमोचक हैं, जब भी पार्टी को जरूरत पड़ी उन्होंने संबल प्रदान किया है। ऐसे में जब संकट मोचक ही नाराज है तो मामला गंभीर हो जाता है।

डीके शिवकुमार की सरकार-संगठन पर मजबूत पकड़ है। उनकी दमदारी का ही असर है कि उनके पास डिप्टी सीएम के साथ-साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद भी है। ये उन्हें इनाम था, अपनी मुख्यमंत्री पद की दावेदारी छोड़ने का। चुनाव होने के बाद जब सिद्धाररमैया अड़ गए थे कि मुझे ही मुख्यमंत्री बनना है, तब आलाकमान के समझाने पर शिवकुमार मान गए थे। लेकिन इस माफी प्रकरण ने कर्नाटक की कांग्रेसी राजनीति को अब नए सिरे से मथना भी शुरू कर दिया है। ऐसे में असंतोष, नाराजगी और शंका के बीच पड़ गए हैं। अब देखना यह है कि ये कब पौध बनकर बाहर आते हैं। जानकारों का कहना है कि भाजपा तो ताक में बैठी ही है। वैसे भी यह राजनीति का दस्तूर है, मौका है और जरूरत भी। देखते हैं कि बिहार और अब महाराष्ट्र वाला प्रयोग कर्नाटक में कब तक होता है।

कर्नाटक राज्य के सत्ता के गलियारों में इस समय इस बात की बड़ी चर्चा है कि क्या डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार जल्द ही पाला बदल कर सीएम पद की दावेदारी करने वाले हैं। और यदि ऐसा हो गया तो फिलहाल सियासी सूखा झेल रही कांग्रेस के लिए ये एक बड़ा आघात होगा। ऐसे में उसके हाथ से एक और राज्य निकल जाने का खतरा है। जिस तरह से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रार्थना गीत विधानसभा में गाकर डीके अपनी ही पार्टी के नेताओं के निशाने पर आ गए हैं और माफी मांगनी पड़ी, वह काबिले गौर है। सूत्रों का कहना है कि माफी मांगना डीके शिवकुमार की फितरत में नहीं है। ऐसे में उनका मानना है कि माफी के साथ ही पार्टी में विभाजन की बुनियाद पड़ गई है। सूत्र बताते हैं कि जिस प्रकार से पार्टी नेता बीके हरिप्रसाद, एन राजन्ना और प्रियांक खड़गे आदि डीके पर हमलावर हुए उसे देख कर तो यही लगता है कि पार्टी में सब ठीक नहीं है। सूत्रों का कहना है कि उधर भाजपा को भी कर्नाटक की हार अभी हजम नहीं हो पाई है। यानी कर्नाटक में भी वही परिस्थितियां दिख रही हैं, जैसी सत्ता परिवर्तन के पहले बिहार और महाराष्ट्र में थीं। वही महत्वाकांक्षा, वही ढाई साल का समय और वही उपेक्षा और अपमान की अनुभूति। खास बात यह है कि डीके शिवकुमार द्वारा माफी मांगने के बाद भी पार्टी हाईकमान की ओर से डीके के पक्ष में कोई बयान नहीं आया है। हां, अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इतना भर कहा कि अब यह विवाद समाप्त हो गया है। पर सूत्रों का कहना है कि नाराजगी अभी भी है। इस मामले में दो कदम पीछे चल कर फिर आगे बढ़ने की रणनीति है। इस कारण डीके ने तुरंत माफी मांग ली। सूत्र बताते हैं कि संघ से बेहद चिढ़ रखने वाले राहुल गांधी को भी डिप्टी सीएम का ये गाना अच्छा नहीं लगा है, इस कारण गांधी परिवार का कोई रिएक्शन इस मामले में नहीं आया है और यही बात इस मामले में अधिक महत्वपूर्ण है। डीके शिवकुमार को गांधी परिवार का विश्वासपात्र माना जाता है। ऐसे में ये चुप्पी महत्वपूर्ण है। यानी कर्नाटक कांग्रेस का संकटमोचक इस समय खुद संकट में है। वैसे भी राजनीति को संभावनाओं का खेल और जरूरतों का मेल कहा जाता है। ऐसे में कल कुछ भी हो सकता है। इसके पहले राज्य के बर्खास्त मंत्री एन राजन्ना ने एसआईआर के मुद्दे पर राहुल गांधी के वोट चोरी के नैरेटिव के खिलाफ बयान देकर मंत्री पद गंवाया और अब कांग्रेस के संकटमोचक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार को माफी मांगनी पड़ी है।

पूरा मामला यह है कि संघ के प्रार्थना गीत को गाने पर वे पार्टी नेताओं के निशाने पर आ गए और उनसे माफी की मांग उठने लगी। इस पर उन्होंने यह बयान दिया कि हालांकि मैंने कोई अपराध नहीं किया है, फिर भी पर अगर किसी को मेरे इस गाने से दुख हुआ हो तो मैं इसके लिए माफी मानता हूं। ऐसे में अब डीके शिवकुमार के बारे में बहुत ही जानना जरूरी है। डीके वही हैं जो राज्य में चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे, पर सिद्धार्थरमैया के अड़ जाने और हाईकमान के समझाने पर उन्होंने डिप्टी सीएम पद पर ही संतोष कर लिया, लेकिन बोनस में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद भी हथिया लिया। अब राज्य में चर्चा है कि कांग्रेस में अब बर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई है। राजन्ना और डीके के मामले इसी ओर इशारा कर रहे हैं। अन्यथा डीके शिवकुमार को भी अच्छी तरह मालूम है कि राहुल गांधी संघ और भाजपा से कितनी नफरत करते हैं। ऐसे में डीके जैसा व्यक्ति अनजाने में भी इस तरह की बात नहीं करेगा। लगता है कि ये फिलहाल तूफान के पहले की शांति है। वैसे भी महत्वाकांक्षा हमेशा जिंदा रहती है, बस उसे अवसर की तलाश रहती है। हो सकता है कि डीके शिवकुमार भी ऐसा ही कुछ सोच रहे हों। ये भी हो सकता है कि उन्होंने संघ का प्रार्थना गीत गाकर माहौल का अंदाजा लेने की कोशिश की हो। हो सकता है कि ये उनकी तरफ से कांग्रेस आलाकमान के लिए वार्निंग भी हो कि अब मुझे मुख्यमंत्री पद सौंप दो वरना कल को कुछ भी हो सकता है। इधर भाजपा को बस कांग्रेस में फूट का इंतजार है। सूत्रों का कहना है कि जैसे ही डीके से हरी झंडी मिलेगी वह अपने पत्ते खोल देगी।

राजनीतिक घटनाक्रमों पर गौर करें तो यही हाल महाराष्ट्र में भी हुआ था, जब लगभग ढाई साल उद्धव ठाकरे की सरकार में रहने के बाद एक दिन अचानक एकनाथ शिंदे अपने समर्थक विधायकों के साथ भाजपा के खेमे में आ गए और उनकी सरकार बन गई। हो सकता है कि कर्नाटक में भी ऐसा ही कुछ हो जाए। वैसे भी कर्नाटक में भी सरकार इ 2 साल से ऊपर हो रहे हैं। और इधर डीके की माफी वाला प्रकरण भी हो गया है। ऐसे में अगर कर्नाटक में भी भाजपा कुछ खेल कर दे तो बड़ी बात नहीं होगी। क्योंकि राजनीति में कुछ भी अनायास नहीं होता। महत्वपूर्ण यह है कि जिस दिन डीके शिवकुमार के दिमाग में यह बात बैठ गई कि अगले लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस सत्ता में नहीं आने वाली है, उसी दिन कर्नाटक में कांग्रेस राज के जाने की नीव पड़ जाएगी। क्योंकि कांग्रेसी बहुत दिन तक सत्ता से अलग नहीं रह सकते। जब भी सत्ता जाने की स्थिति आती है, वे कुछ भी कर बैठते हैं। यही काम 2024 के पहले नीतीश कुमार ने बिहार में भी किया था। उन्हें लग गया था कि इंडी गठबंधन में एकता मुश्किल है और वहां इगो की लड़ाई है। इसलिए उन्होंने इंडी गठबंधन छोड़कर एनडीए का दामन थाम लिया।

डीके शिवकुमार का माफी प्रकरण : कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार को पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रार्थना गीत गाने के विवाद पर खेद व्यक्त करना पड़ा था। इस बाबत उनका तर्क था कि उनका उद्देश्य विधानसभा में संघ का प्रार्थना गीत गाकर वे भाजपा को निशाना बनाना चाहते थे। इस मामले में पार्टी के भीतर आलोचना से आहत होकर उन्होंने माफी तो मांग ली पर यह भी कहा कि उन्होंने कोई गलती नहीं की है। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस के कुछ नेता इस बात का ‘दुरुपयोग’ कर रहे हैं, और भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने गांधी परिवार के प्रति निष्ठा दोहराते हुए कहा कि यह संबंध भगवान और भक्त के समान है। डीके ने ये भी कहा कि वे कांग्रेसी हैं और एक कांग्रेसी के रूप में ही मरेंगे। इस बाबत पार्टी के निष्कासित मंत्री एन. राजन्ना ने भी सवाल किया था कि डीके शिवकुमार के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई। इसके अलावा कांग्रेस के बड़े नेता बीके हरिप्रसाद और उदित राज ने भी संघ का गीत गाने पर सवाल उठाए थे। इस पर शिवकुमार ने सफाई देते हुए कहा था कि उन्होंने विधानसभा में केवल संक्षिप्त संदर्भ दिया था, संघ की प्रशंसा नहीं की। उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य भाजपा नेता आर. अशोक का मजाक उड़ाना था। उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी द्वारा माफी मांगने के लिए भी उन पर कोई दबाव नहीं था।

कर्नाटक राज्य का सत्ता समीकरण-परिस्थितियां : कर्नाटक विधानसभा में 225 सीटें हैं। बहुमत के लिए 113 विधायक चाहिए। कांग्रेस के पास 138 विधायक हैं। इसके अलावा उसे दो निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त है। इस प्रकार सिद्दारामैया को 140 विधायकों का समर्थन है। जबकि दूसरी तरफ विपक्ष में भाजपा 66 विधायकों और जेडीएस 18 विधायकों के साथ विपक्ष में हैं। इस गठबंधन को कुल 84 विधायकों का समर्थन प्राप्त है। एक सीट रिक्त है। ऐसे में अगर कांग्रेस में विभाजन करना है तो डीके शिवकुमार को 92 विधायकों को अपने पाले में लाना होगा। अब हो सकता है कि डर-डर कर सत्ता का पूरा मज़ा नहीं ले पाने वाले डीके शिवकुमार और उनके समर्थक विधायक एक प्रयास कर ही लें। और यहां की विधायक संख्या भी लगभग वही है जो बिहार और महाराष्ट्र की है। बस अब देखना यह है कि डीके की सीएम बनने की इच्छा कब बलवती होती है।

बिहार-महाराष्ट्र में सत्ता बदलने की कहानी : बिहार और महाराष्ट्र में हुए सियासी बदलाव ने लगभग ढाई साल में सत्ता का रुख ही बदल कर रख दिया था। इस संदर्भ में बात सबसे पहले बिहार की करते हैं। जदयू नेता नीतीश कुमार ने इंडी गठबंधन के नेताओं से नाराज होकर दिल्ली में इंडिया गठबंधन की बैठक को छोड़ दिया और पटना आ गये। इसके बाद उन्होंने भाजपा से हाथ मिलाया और 2023 में 9वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। इसके पहले वे इंडी गठबंधन के साथ 2020 में सत्ता पर काबिज हुए थे थे। ये घटना 2024 के लोस चुनाव के पहले इंडी के लिए बड़ा झटका था। इसी प्रकार महाराष्ट्र में भी ठाकरे परिवार के खास कहे जाने वाले एकनाथ शिंदे ने भी विद्रोह कर पार्टी तोड़ दी थी, और 30 जून 2022 को लगभग ढाई साल बाद भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली। अब तो पूरी शिवसेना और उसका चुनाव चिह्न उन्हीं के पास है। यहां भी शिंदे की महत्वाकांक्षा ने ही उनसे विद्रोह कराया, और उन्होंने हिंदुत्व का लबादा ओढ़ कर एनडीए खेमा पकड़ लिया। और यहां भी इंडी गठबंधन सत्ता से बाहर हो गया। और अब दक्षिण के राज्य कर्नाटक में भी कुछ ऐसे ही आसार दिख रहे हैं। वैसे भी डीके शिवकुमार की महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है। कर्नाटक में भी सिद्दारामैया की सरकार ने 20 मई 2023 को शपथ ली थी। यानी यह सरकार भी ढाई साल पूरा करने जा रही है। ऐसे में संघ का गीत विधानसभा में गाने के कारण जब डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार को माफी मांगनी पड़ जाती है तो मामला गंभीर हो जाता है। डीके शिवकुमार पार्टी के संकटमोचक कहे जाते हैं। वे मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे पर हाईकमान के समझाने पर पीछे हट गए। उनकी अहमियत का आलम यह है कि पार्टी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद भी सौंप दिया। वैसे भी किसी राज्य का सीएम सुकून से सरकार चलाना चाहता है, और सुकून तो केंद्र के वरदहस्त से ही मिल सकता है। और वर्तमान में जो राजनीतिक समीकरण हैं, उनका तो इशारा यही है कि केंद्र की भाजपा सरकार जल्दी नहीं जाने वाली है।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक