बिहार विशेषकर सीमांचल के मुसलमान आरजेडी से नाराज हैं, क्योंकि उसने उसके चार विधायकों को हड़प लिया था, पर इसके बावजूद उसकी सिंपैथी कांग्रेस से है, क्योंकि वह खुद को कांग्रेस का मूल वोटर मानता है। इसके बावजूद उसके दिल में एआइएमआइएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी एक नम्बर पर बसते हैं। कुछ मुसलमान वोटर नीतीश कुमार को भी ठीक मानते हैं पर गलत संगत यानी भाजपा के कारण उनसे नाराज हैं। कुल मिलाकर सीमांचल समेत पूरे बिहार के मुस्लिम मतदाता फिलहाल कंफ्यूज हैं कि वे किसके साथ रहें। वे इस बात का भी इंतजार कर रहे हैं कि ओवैसी की पार्टी इंडी गठबंधन में शामिल होती है या नहीं, उसका अंतिम निर्णय भी इसी पर टिका हुआ है। मुस्लिम मतदाता भी चाहता है कि ओवैसी को इंडी गठबंधन में शामिल किया जाए किंतु राजद के चलते ऐसा होता दिख नहीं रहा है। पर एक बात साफ दिख रही है कि ओवैसी चाहे इंडी गठबंधन में रहें या अलग रहकर लड़ें, नुकसान विपक्ष का ही है।
क्योंकि अगर ओवैसी साथ रहते हैं तो बिहार में मुस्लिम मतों का पोलराइजेशन होगा, और फिर जवाब में हिंदू मतों का भी। और अगर अलग लड़ते हैं तो उससे मुस्लिम मतों का विभाजन होगा। दोनों स्थितियों में फायदा एनडीए को ही होता दिख रहा है। वैसे मुसलमान मतों के एक और दावेदार जन सुराज के प्रशांत किशोर भी हैं। उनका दावा है कि इस बार मुसलमान उनके साथ हैं, और वे इसी के चलते नंबर गेम में नंबर दो की पोजीशन में रहेंगे। हालांकि अब लगभग दो महीने ही बिहार के चुनाव को हैं, फिर भी पिक्चर साफ होती अभी नहीं दिख रही है, क्योंकि मुस्लिम वोटर अभी कंफ्यूज है।
बिहार में अब लाख टके का सवाल यह है कि इस बार मुस्लिम वोटर किसके साथ है। क्योंकि हर चुनाव में टैक्टिकल वोटिंग करने वाला मुस्लिम वोटर भी इस बार कुछ कन्फ्यूज है। वह ओवैसी को छोड़ना तो नहीं चाहता लेकिन वोट बर्बाद भी नहीं करना चाहता। उसकी पहली पसंद तो ओवैसी हैं, लेकिन वह ये भी कहता है कि ओवैसी अभी इतने मजबूत नहीं हो पाए हैं कि भाजपा को हरा सकें। वह इस इंतजार में है कि किसी तरह ओवैसी की पार्टी इंडी गठबंधन में शामिल हो ताकि ऊहापोह खत्म हो, और निर्णय लेने में आसानी रहे। हालांकि कुछ वोटरों को ये भी डर है कि अगर मुस्लिम वोटरों का पोलराइजेशन हुआ तो हिंदुओं में भी रिएक्शन होगा। और अगर ऐसा हो गया तो इसका लाभ एनडीए को मिल जाएगा। दूसरी ओर जन सुराज के नेता प्रशांत किशोर भी दावा करते हैं कि इस बार मुसलमान उनके साथ हैं और उनकी पार्टी दूसरे नंबर पर रहेगी। वे दावा करते हैं कि इंडी गठबंधन तीसरे स्थान पर चला जाएगा। उधर सीमांचल के कुछ मुस्लिम वोटर राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की वोटर अधिकार यात्रा को भोंपू और पोंपू की यात्रा करार देते हैं। वैसे तो मुस्लिमों में नीतीश कुमार की अच्छी छवि है, पर वक्फ संशोधन कानून का समर्थन कर उन्होंने उनकी नाराजगी मोल ली है। यानी पिक्चर अभी भी क्लीयर नहीं है।
बिहार में चुनाव का समय काफी नजदीक आ गया है। एसआईआर को लेकर उठा वोट चोरी का हंगामा भी इस महीने की आखिर तक शांत हो जाने की उम्मीद है, क्योंकि समय कम होने के कारण अब सभी चुनाव की तैयारियां करने लग जाएंगे। लेकिन अभी तक मुस्लिम वोटरों का रुझान समझ में नहीं आ रहा है। वैसे ओवैसी उसकी प्राथमिकता में हैं लेकिन सरकार न बना पाने की उनकी स्थिति के चलते मुस्लिम अपना वोट उन्हें देकर बर्बाद भी नहीं करना चाहता। उधर इंडी गठबंधन ओवैसी को अपने साथ लेने को तैयार ही नहीं है। ओवैसी की पार्टी की प्रदेश इकाई द्वारा दिया गया प्रस्ताव राजद ने खारिज कर दिया है, और यह कहा है कि ओवैसी मुस्लिम मतों का बिखराव रोकना चाहते हैं तो वे बिहार में चुनाव ही न लड़ें। जबकि पिछली बार पांच सीटें पाने से उत्साहित ओवैसी चुनाव लड़ने पर आमादा हैं। जब राहुल गांधी बिहार की मशहूर मुस्लिम खानकाह में उसके सज्जादानशीन से मुलाकात कर रहे थे, तब खानकाह के बाहर ओवैसी की पार्टी के कार्यकर्ता इस बात के लिए प्रदर्शन कर रहे थे कि उनकी पार्टी को इंडी गठबंधन में शामिल कर लिया जाए। पता नहीं उनकी आवाज राहुल गांधी के कानों तक पहुंची या नहीं पर अभी तक ओवैसी की पार्टी के लिए इस बारे में कोई अच्छी खबर नहीं आई है।
उधर बिहार की अमार सीट से एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमान की भी प्रतिष्ठा दांव पर है, पिछली बार वे इसी सीट से जीते थे। पार्टी के लिए यह सीट सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, इसीलिए भी उनकी कोशिश है कि इंडी से गठबंधन हो जाए। असल में यहां के वोटरों का कहना है कि अगर हम अख्तरुल इमान को जिता भी दें तो वे कुछ नहीं कर पाएंगे, इसलिए हमें कोई और विकल्प चुनना होगा। मुस्लिम वोटरों का एक वर्ग यह भी कहता है कि अगर एआईएमआईएम के विधायक जीतकर विपक्षी गठबंधन में ही चले जाएंगे तो फिर हम भी विपक्षी गठबंधन को ही वोट क्यों न दें। यही बात अख्तरुल इमान के खिलाफ जा रही है, ऐसे में वे परेशान हैं और गठबंधन में जाने के लिए बेचैन हैं। इलाके के कुछ मुसलमान वोटरों का यह भी कहना है कि हम बुनियादी रूप से कांग्रेस के ही वोटर हैं, वो तो समय के प्रवाह में इधर-उधर चले गए। और ऐसे में उनका यह बयान बिहार में कांग्रेस की बढ़ती ताकत के रूप में भी देखा जा रहा है। और यह फैक्टर कांग्रेस को टिकट के लिए बारगेनिंग करने में मददगार साबित हो सकता है। ऐसे में यहां एक बात महत्वपूर्ण है कि मतदाताओं के जेहन में या तो ओवैसी हैं, कांग्रेस हैं, प्रशांत किशोर हैं या फिर नीतीश कुमार। पर उनके के जेहन में तेजस्वी का नाम एक झटके में नहीं आता है। कुछ वोटर कहते हैं कि राजद ने ओवैसी के चार विधायकों को चुरा कर हमारे मेंडेट का अपमान किया है, और हम इसकी सजा चुनाव में देंगे।
वैसे बिहार के मुसलमान नीतीश से भी नाराज हैं, और वह इसलिए कि उन्होंने वक्फ संशोधन बिल का समर्थन कर कथित रूप से मुसलमानों से विश्वासघात किया है। वे खुलकर कहते हैं कि हम इस बार नीतीश कुमार को वोट नहीं देंगे, क्योंकि वे भाजपा के साथ हैं, और मुस्लिमों के लिए उनकी एकमात्र डी मेरिट भी यही है। वे कहते हैं कि नीतीश कुमार तो अच्छे आदमी हैं लेकिन भाजपा के चक्कर में उन्होंने वक्फ संशोधन कानून का समर्थन कर दिया है। इसलिए अब हम उनके साथ नहीं जाएंगे।
सूबे के ओवरऑल मुस्लिम मतदाताओं के बारे में एक अनुमान यह है कि अगर किन्ही कारणों से ओवैसी विपक्षी गठबंधन में शामिल हो जाते हैं तो यह मुस्लिम वोटरों का बड़ा ध्रुवीकरण होगा, इससे इंडी गठबंधन मजबूत भी होगा। लेकिन इसका नुकसान यह होगा कि जवाब में हिंदू मतों का ध्रुवीकरण होगा। और ऐसी स्थिति में 22 फीसद बनाम 78 फीसद का समीकरण काम करेगा। फिर एनडीए को हिंदू मतों का एक मजबूत आधार भी मिल सकता है। ऐसे में विपक्षी गठबंधन का नुकसान दोनों ही स्थितियों में है, चाहे ओवैसी विपक्ष के गठबंधन में शामिल हों या अकेले लड़ें। अगर वे अकेले लड़ेंगे तो मुस्लिम मतों में बंटवारा करेंगे और अगर मिलकर लड़ेंगे तो मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण करेंगे। और फिर इसके खिलाफ हिंदू मतों का ध्रुवीकरण होगा।
हालांकि मुस्लिम मतों के एक और दावेदार जन सुराज के प्रशांत किशोर भी हैं। कुछ मुस्लिम वोटर कहते हैं कि उनकी बातें ठीक हैं, उनका घोषणा पत्र भी ठीक है, और वे सबकी बात करते हैं। तो ऐसे में हो सकता है कि मुस्लिम वोट बैंक में कुछ डेंट वे भी कर दें। और अगर ऐसा होता है तो यह भी सत्ता पक्ष के लिए सुकून की बात होगी। प्रशांत किशोर का भी दावा है कि इस बार मुसलमान वोटर उनके साथ रहेंगे, क्योंकि मुस्लिम अब नया विकल्प चाहते हैं। पीके का दावा है कि उनकी लड़ाई एनडीए से है और नंबर गेम में दूसरे नंबर पर रहेंगे। यानी वे भी मानते हैं कि वे सरकार बनाने की स्थिति में नहीं आएंगे। ऐसे में मुस्लिम वोटर उन्हें वोट कटवा ही न मान लें।
कुल मिलाकर फील्ड का माहौल देखकर ऐसा लगता है कि बिहार के मुस्लिम वोटर निर्णय लेने की जल्दी में नहीं हैं। हालांकि कुछ मुस्लिम वाटर ओवैसी के इतने मुरीद हैं कि वे आंख मुड़कर कहते हैं कि हम तो ओवैसी को ही वोट देंगे, वे हारें या जीते। वे कहते हैं कि ओवैसी हमारे दिल में रहते हैं। यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि एसआईआर की प्रक्रिया में सीमावर्ती जिलों में सर्वाधिक वोट कटे हैं, जिसमें सबसे ज्यादा वोट किशनगंज से कटे हैं। फिर इस फैक्टर का भी असर इस चुनाव में पड़ेगा। वैसे इस इलाके के मुसलमानों से जब राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की वोटर अधिकार यात्रा के बारे में सवाल किया जाता है तो वे कहते हैं कि ये पोंपू और भोंपू की यात्रा है। इससे कोई फायदा नहीं होने वाला। वे कहते हैं कि उनकी यात्रा से हमारे निर्णय पर कोई असर नहीं होने वाला है। उनका आरोप है कि इन लोगों ने हमें काफी समय से सिर्फ वोट बैंक बना कर ही रखा है।
अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक