आयातित नेता भी भंवर से नहीं निकाल पाए भाजपा की कश्ती

* दूसरी पार्टियों से आए बागी विधायक भी नहीं दिखा पाए करिश्मा * जहां-जहां नए लोगों की भर्ती हुई वहां-वहां भाजपा प्रत्याशियों की हार हुई * भितरघातियों की पहचान कर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की उठी मांग

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लखनऊ। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में भाजपा की चुनावी दुर्गति के लिए दूसरी पार्टियों से आए लोगों को भी जिम्मेदार माना जा रहा है। पार्टी में अब उनके खिलाफ आवाज भी उठने लगी है। भाजपा के पुराने लोगों का मानना है ये लोग आकर पार्टी पर ही बोझ बन गए। इससे पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं में ये असुरक्षा भाव आ गया कि अब उनका हक मारा जाएगा। विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा से टिकट के दावेदारों में सबसे ज्यादा असुरक्षा भाव उत्पन्न हुआ। इसके चलते उनमें नाराजगी थी। यही नाराजगी भाजपा की दुर्गति का कारण बनी। उधर दूसरी पार्टियों से आए लोग भाजपा के लिए कुछ खास कर नहीं पाए। कुल मिलाकर नए और पुराने नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच सामंजस्य न होने से भी पार्टी की ये दशा हुई। खबर यह भी है कि पार्टी के कुछ लोगों ने इसी के चलते भितरघात किया।

प्रदेश में लोकसभा चुनाव के पूर्व हुए राज्यसभा चुनाव के दौरान सपा से बगावत करके भाजपा के खेमे आए विधायक सिर्फ राज्यसभा चुनाव में ही उपयोगी रहे। लोकसभा चुनाव में उनका होना फायदेमंद नहीं हुआ। बल्कि यह कह सकते हैं कि उनके आने से नेताओं और कार्यकर्ताओं में असुरक्षा बोध पैदा हुआ जिसके चलते पार्टी को नुकसान ही हुआ। उनके आने से पुराने स्थानीय कार्यकर्ता नाराज तो हो गए किंतु नये नेताओं के समर्थक और कार्यकर्ता भाजपा के काम नहीं आए। उनमें से अधिकतर अपनी मूल पार्टी के साथ ही दिखे। इसके अलावा बाद में भी जुड़े कुछ अन्य पार्टियों के नेता भी भाजपा का भला नहीं कर पाए। उनके इलाकों में भी भाजपा की करारी हार हुई। सभी आयातित नेता भाजपा के लिए अनलकी साबित हुए। इसे कुछ उदाहरणों के साथ समझा जा सकता है।

शुरुआत करते हैं अमेठी लोकसभा क्षेत्र से। इस क्षेत्र के विधायक राकेश प्रताप सिंह समाजवादी पार्टी से बगावत कर भाजपा के खेमे में आए थे किंतु उसका कोई फायदा नहीं हुआ। इस क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी चुनाव हार गईं। उन्हें कांग्रेस के कार्यकर्ता और गांधी परिवार के गरीबी किशोरी लाल शर्मा ने डेढ़ लाख से अधिक वोटों से पराजित कर दिया। जबकि स्मृति ईरानी राहुल गांधी को 50000 से अधिक होठों से हराकर वर्ष 2019 में सांसद बनी थीं। यहीं हाल रायबरेली लोकसभा सीट पर भी रहा। यहां ऊंचाहार से सपा विधायक मनोज पांडेय भी राज्यसभा चुनाव के दौरान पार्टी से बगावत कर भाजपा खेमे में आए थे।

भारतीय जनता पार्टी को उनसे बहुत उम्मीदें थीं किंतु लोकसभा चुनाव में उनका भी आना कुछ काम न आया। यहां भाजपा प्रत्याशी दिनेश प्रताप सिंह राहुल गांधी से साढ़े तीन लाख से अधिक वोटों से चुनाव हार गए। यहां यह बताना जरूरी है कि दिनेश प्रताप सिंह ने पिछले चुनाव में सोनिया गांधी को काफी कड़ा संघर्ष दिया था और उनकी जीत का अंतर 2014 के अंतर से कम कर दिया था। किंतु इस बार वे राहुल गांधी से और पीछे हो गए। बताते हैं कि इस क्षेत्र में दिनेश प्रताप सिंह और मनोज पांडेय के आपस के समीकरण अनुकूल नहीं थे। दोनों के समर्थक-कार्यकर्ता पहले एक-दूसरे के खिलाफ रह चुके हैं। इसलिए लोस चुनाव के दौरान उनका सामंजस्य नहीं बैठ पाया। जिसका दुष्परिणाम इस चुनाव में हार के रूप में दिखा।

इसी प्रकार लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बसपा सांसद राकेश पांडेय ने भी अंबेडकरनगर में पार्टी से बगावत की और भाजपा में शामिल हो गए थे। किंतु भाजपा वहां भी चुनाव हार गयी। राकेश पांडेय भी भाजपा के लिए अनलकी साबित हुए। उधर फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र के बीकापुर विधानसभा क्षेत्र से सपा विधायक अभय सिंह ने भी राज्यसभा चुनाव के दौरान पार्टी से बगावत की। उन्होंने भाजपा के प्रत्याशी को वोट दिया था। वे उसी समय से भाजपा खेमे में आ गए थे। उनका आना भी भाजपा के काम नहीं आया। नतीजा यह हुआ कि भाजपा अपनी सर्वाधिक प्रतिष्ठापूर्ण सीट फैजाबाद में चुनाव हार गई। भाजपा के लोगों और कट्टर हिंदुओं को और कहीं की हार भले ही दुखी न करती हो लेकिन फैजाबाद सीट हारना बहुत खल गया। वैसे फैजाबाद सीट से हार का कारण वहां के भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह भी रहे, जिनसे वहां की जनता संतुष्ट नहीं थी। यहां पार्टी के साथ भितरघात की भी खबरें हैं।

इसी प्रकार जालौन से सपा विधायक विनोद चतुर्वेदी ने भी बगावत की थी। वे भी भाजपा के पाले में शामिल हो गए थे। पर जालौन में भी भाजपा लोकसभा का चुनाव हार गयी। सपा की विधायक पूजा पाल ने भी अपनी पार्टी से बगावत की थी और भाजपा के खेमे में शामिल हो गई थीं। लेकिन कौशांबी लोकसभा सीट पर भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। यहां अपना दल कमेरावादी की पल्लवी पटेल के विरोध का भी सपा की जीत पर कोई असर नहीं दिखा और समाजवादी पार्टी वहां से चुनाव जीत गई। पल्लवी पटेल ने भी राज्यसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी से बगावत करके अपनी मनमर्जी से वोट दिया था। इसी तरह बलिया में भी समाजवादी पार्टी के नेता नारद राय मतदान के कुछ पहले सपा छोड़ के भाजपा में शामिल हुए थे। पर बलिया में भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। वहां समाजवादी पार्टी के सनातन पांडेय चुनाव जीत गए।

इस संदर्भ में भारतीय जनता पार्टी के नेता, पूर्व राज्यमंत्री और ब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष के सी पांडेय ने यूपी में भाजपा को कम लोससीटें मिलने के लिए भितरघातियों को जिम्मेदार ठहराया है। उनकी मांग है कि ऐसे लोगों को चिन्हित कर उन्हें पार्टी से बाहर किया जाये। उन्होंने इस बाबत भाजपा हाईकमान को 21 पेज का पत्र भी लिखा है। पत्र में कहा गया है कि जनता पीएम मोदी तथा मुख्यमंत्री योगी की विकासपरक नीतियों से प्रभावित है। फिर भी पार्टी को कम सीटें मिलना गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने अपना पत्र पीएम नरेन्द्र मोदी, गृहमन्त्री अमित शाह तथा भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को संबोधित किया है। पत्र में आगे कहा गया है कि निष्ठावान भाजपाई और वफादार कार्यकर्ता आशा के विपरीत सफलता मिलने से बेहद व्यथित हैं। अब आवश्यकता इस बात की है कि आगामी 2027 के विधानसभा चुनाव के पूर्व अहंकार में चूर सत्ताधीशों के दिमाग ठीक किए जाएं।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक