लखनऊ/नयी दिल्ली। चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दल अक्सर अपने विरोधियों की हैसियत का अन्दाजा लगाते हुए उनकी संभावित सीटें बताते हैं। यह अलग बात है कि खुद अपनी कितनी सीटें मिल रही है इसका अनुमान नहीं लगा पाते हैं। और अगर लगा भी लेते है तो किसी को बताते नहीं। इसी क्रम में आम आदमी पार्टी के संयोजन अरविंद केजरीवाल ने भी भाजपा की सीटों के बारे में जो अनुमान लगाया था वह लगभग सही बैठा है। इसके अलावा समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल का अनुमान सटीक नहीं बैठा। उधर एक निजी चैनल की एआई एंकर ने भी अपने एग्जिट पोल में यह हनुमान लगाया कि एनडीए को 305 से 315 सीट मिलेंगी। तब लोगों ने उसका मजाक उड़ाया था। आखिरकार चार जून की शाम होते-होते एनडीए 293 के आंकड़े पर पहुंच गया।
चुनाव प्रचार के दौरान और पत्रकारों को दिए इंटरव्यू में आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भाजपा के कमजोर होने का अनुमान लगाते हुए उन्हें अधिकतम 230 सीटें ही मिल पाने की बात कही थी। परिणाम आने पर उनकी बात लगभग सही साबित हुई है। अरविंद केजरीवाल ने भाजपा को अधिकतम 230 सीट मिलने का अनुमान लगाया था। अंतिम परिणाम मिलने के बाद भाजपा के सीटों की संख्या 240 पर आकर रुक गई है। ऐसे में यह माना जा सकता है कि अरविंद केजरीवाल दूसरी पार्टियों के बारे में अच्छा अनुमान लगा लेते हैं। यह अलग बात है कि उन्होंने अपनी पार्टी के बारे में अनुमान लगाया था कि वे पंजाब की सभी और दिल्ली की चार सीटें, जो गठबंधन में मिली हैं, जीत रहे हैं। इस मामले में उनका अनुमान गलत साबित हुआ। उन्हें दिल्ली में एक भी सीट नहीं मिली जबकि पंजाब में तीन सीटें ही मिल पायी हैं।
इसी प्रकार समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने गठबंधन करने के बाद दावा किया था कि भारतीय जनता पार्टी को प्रदेश में पूरी तरह हार मिलेगी और उनका गठबंधन वाराणसी छोड़कर प्रदेश की सभी सीटें जीत लेगा। चुनाव प्रचार के छठवें और सातवें चरण में तो यह भी कहना शुरू कर दिया था कि अभी तक तो भाजपा एक सीट वाराणसी पर लड़ाई में दिख रही थी परंतु अब वहां पर भी हार सुनिश्चित है। यानी कि उनके गठबंधन को 80 में 80 सीटें उत्तर प्रदेश से मिलेंगी। चुनाव परिणाम आने के बाद अखिलेश यादव के दावे में थोड़ी सच्चाई दिखी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी जीत का पिछला अंतर बरकरार नहीं रख पाए। उन्हें मात्र डेढ़ लाख वोटों से ही विजय मिली। यानी अखिलेश यादव ने वाराणसी सीट की नब्ज को पहचान लिया था। उधर समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश के संसदीय इतिहास में अपना सबसे बेहतर प्रदर्शन करते हुए 37 सीटों पर जीत हासिल की है। समाजवादी पार्टी के इतिहास में यह अब तक की सबसे बड़ी विजय है। इसका मतलब यह माना जा सकता है कि अखिलेश यादव को राजनीति की नब्ज समझने में महारत हासिल है। क्योंकि वाराणसी सीट को लेकर सारे लोग निश्चित थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछली बार से भी अधिक वोटों के अंतर से चुनाव जीतेंगे। किंतु ऐसा नहीं हुआ। प्रधानमंत्री चुनाव तो जीते परंतु जीत का अंतर घटकर मात्र डेढ़ लाख रहा। इसे यूं भी कह सकते हैं कि यह जीत प्रधानमंत्री के कद के मुताबिक नहीं। और यह कद छोटा करने में सपा और कांग्रेस के गठबंधन ने बड़ी भूमिका निभाई है।
इसी प्रकार कांग्रेस पार्टी ने भाजपा के लिए मात्र डेढ़ सौ सीटें ही बताई थीं। परंतु इसका अनुमान गलत साबित हुआ। राष्ट्रीय जनता दल के नेता और बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी कहा था कि हम बिहार में भाजपा और एनडीए का सूपड़ा साफ कर देंगे और 40 की 40 सीटें जीतेंगे। पर ऐसा नहीं हुआ। भाजपा ने अपने गठबंधन साथियों के साथ मिलकर 30 सीटों पर विजय हासिल की है। जो पिछले रिकॉर्ड से थोड़ा कम है, लेकिन संतोषजनक है। और 40 सीटों पर जीत का दावा करने वाले तेजस्वी यादव और उनके गठबंधन साथियों को कुल मिलाकर 10 सीटें ही प्राप्त हुई हैं। यानी कि उनका अनुमान यहां गलत साबित हुआ।
वैसे अनुमान तो भाजपा का भी गलत साबित हुआ। 370 सीट अकेले अपने दम पर जीतने का दावा करने वाली पार्टी 240 सीटों पर आकर सिमट गई। अब स्थिति यह हो गई है कि सरकार बनाने के लिए भी उसे तेलुगु देशम और जनता दल यूनाइटेड पर आश्रित होना पड़ा है।
इस मामले में टेलीविज़न इतिहास में नया प्रयोग करते हुए जी न्यूज़ ने सोशल मीडिया के आंकड़ों को आधार बनाकर आंकलन किया। और एआई माध्यम से जीत हार का अनुमान लगाया। उसकी एआई एंकर जीनिया ने एनडीए को 305 से लेकर 315 सीटें मिलने का अनुमान लगाया था। जीनिया का यह अनुमान लगभग सही साबित हुआ और एनडीए को 293 सीटें मिली हैं। सीटों का अनुमान लगाने के लिए टेलीविजन का यह नया प्रयोग बहुत सटीक रहा। हालांकि जब जीनिया का यह आंकलन जब टेलीविजन पर आ रहा था तो भाजपा के प्रवक्ता समेत अन्य सभी लोग इससे सहमत नहीं थे। उधर परंपरागत तरीके से एग्जिट पोल करने वाली एजेंसियां और टीवी चैनल इस बार गच्चा खा गए। किसी का भी अनुमान सच्चाई के करीब नहीं पहुंचा।
अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक