कौन हैं गौतम अडाणी के संकटमोचक राजीव जैन

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तो अडाणी के संकटमोचक राजीव जैन हैं कौन…. गौतम अडाणी की अग्रणी कंपनी अडाणी एंटरप्राइज़ेज़ लिमिटेड का बीस हजार करोड़ रुपए का फालोआन पब्लिक ऑफर (एफपीओ) निवेशकों के लिए 2023, 27 जनवरी को खुलना था और ठीक तीन दिन पहले अमेरिकी मंदड़िया निवेशक नाथन एंडरसन की फर्म हिंडनबर्ग ने अडाणी समूह के खिलाफ रिपोर्ट 24 जनवरी को प्रकाशित की। जो होना था वही हुआ, देशी-विदेशी निवेशकों में हाहाकार मच गया, अडाणी ग्रुप की कंपनियों के शेयरों की ताबड़तोड़ बिकवाली होने से इनके शेयर तो औंधे मुंह गिरे ही, अडाणी अभूतपूर्व संकट में फंस गए, दशकों में बनाई इमेज घंटों में धुल गई। जुगाड़ से एफपीओ पूरी तरह सब्सक्राइब तो हो गया लेकिन दुनिया भर में अडाणी की भद्द हो गई। इस भूचाल में ग्रुप को अपनी कंपनियों के बाजार पूंजीकरण में 48 हजार करोड़ रुपए का नुक़सान उठाना पड़ा।

अस्तित्व को मिली चुनौती को लेते हुए स्वभाव से जुझारू गौतम अडाणी ने दिन-रात एक कर दिया नाथन एंडरसन की इस रिपोर्ट से हुए नुकसान की भरपाई के खातिर। सफल हुए, और एक कद्दावर फाइनेंसर -जोखिम से खेलने वाले निवेशक मिल गया। दोनों के बीच कई बैठकें हुईं, फाइनली उस अंतरराष्ट्रीय निवेशक ने मुसीबती गौतम के सर पर हाथ रख दिया। उसने अडाणी की कंपनियों में फंड पम्प करना शुरू किया, शेयरों में फिर से जान आ गई।

कुछ प्रश्न पाठकों को कुरेदते हैं, जैसे कि अडाणी की कंपनियों में अरबों रुपए किसने लगाए, क्यों लगाए, उसे इन हालातों में अपने अरबों रुपए डूबने का डर नहीं सताता होगा, आखिर वो शख्स है कौन जो अडाणी पर इतना मेहरबान हो गया, वगैरह वगैरह। इन प्रश्नों का समाधान बताते हैं। अडाणी को संकट से उबारने वाले हैं राजीव जैन, भारत में जन्मे, इन्हें हाईस्कूल से ही शेयरों में निवेश का चस्का लग गया था। अजमेर वि.वि. से फाइनेंस में मास्टर डिग्री ली, विदेश निकल गए, नब्बे के दशक में मियामी यूनिवर्सिटी से एमबीए करते ही 1994 में स्विट्जरलैंड स्थित वोंटोबेल एसेट मैनेजमेंट से जुड़े, तब इस कंपनी का सालाना बिज़नेस बमुश्किल 40 करोड़ डॉलर था। जैन दस साल में यानी 2014 में वोंटोबेल के सीईओ बना दिए गए और 2016 में उसे छोड़ा और तब वोंटोबेल का सालाना कारोबार 5 हजार करोड़ डॉलर था, इसका श्रेय राजीव को दिया गया।

राजीव 2016 में अमेरिका के फ्लोरिडा में फोर्ट लाडरडेल आ गए और उसी वर्ष दिसंबर में टिम कार्वर के साथ फंड, एसेट मैनेजमेंट की ‘ग्लोबल क्वालिटी ग्रोथ पार्टनर्स’ फर्म की स्थापना की, यही फर्म पांच वर्षों में ‘GQG’ संक्षिप्त नाम से दुनिया भर में मशहूर हो गई। जीक्यूजी ने 2021 में 89.3 करोड़ डॉलर का आईपीओ लांच कर आस्ट्रेलियन स्टाॅक एक्सचेंज में अपनी लिस्टिंग कराई। मौजूदा में भारत सहित तमाम देशों की 850 कंपनियों की 88 हजार करोड़ डॉलर (वर्तमान विनिमय दर 1डॉलर=81.94 रु, भारतीय रुपये में 72 लाख करोड़) की परिसंपत्तियों का प्रबंधन जीक्यूजी कर रही है।

प्रत्यक्ष रूप से तो यही लगता है कि राजीव जैन ने अडाणी को संकट से उबार लिया, यह अर्धसत्य है। दरअसल शुरू से राजीव भारी जोखिम उठाकर लम्बा प्राफिट कमाने की रणनीति अपनाते रहे हैं और इसमें उन्हें जबरदस्त कामयाबी भी मिली। खोजबीन से यह पता चला कि राजनीतिक, आर्थिक और मुद्रा जोखिम से भरपूर शेयरों (प्रतिभूतियों) में निवेश करना राजीव का शगल है, इसके लिए जीक्यूजी इमर्जिंग मार्केट्स इक्विटी फंड के जरिए निवेश करते रहते हैं। और संकट से जूझ रही अडाणी ग्रुप कंपनियों में एक दिन में १५४४६ करोड़ रुपए के निवेश के पीछे भी यही रणनीति रही।

इधर हिंडनबर्ग-अडाणी का भूचाल थम नहीं रहा था, सेबी, संसद से होते यह सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा और उधर राजीव -जीक्यूजी ने 2 मार्च को अडाणी एंटरप्राइज़ेज़ लिमिटेड के 3.87 करोड़ से अधिक शेयर (औसतन 1410.86 रु की दर से), अडाणी पोर्ट्स के 8.86 करोड़ शेयर (596.20 रु की दर से), अडाणी ग्रीन एनर्जी के 5.56 करोड़ शेयर (504.60 रु की दर से) और 668.40 रु की दर से अडाणी ट्रांसमिशन के 2.84 करोड़ शेयर खरीदे थे, इन बल्क सौदों के जरिए जीक्यूजी ने इन चार कंपनियों में 15 हजार 446 करोड़ रुपए झोंक दिए और तभी बवंडर के होते हुए भी कंपनियों के शेयर अच्छा खासा चढ़ने लगे थे।

देखिए राजीव जैन की रणनीति कामयाब कैसे रही- दो मार्च को 15546 करोड़ रु में लिए गए शेयरों की कीमत 23 मई को स्टाॅक मार्केट में 25 हजार 515 करोड़ रुपए पहुंच गई, यानी सिर्फ 83 दिनों में (तीन महीने से भी कम) जीक्यूजी की रकम करीब 65 प्रतिशत बढ़ गई अर्थात दस हजार करोड़ रुपए की बढ़ोतरी। इसलिए अडाणी पर मेहरबान हुए राजीव जैन। वैसे अमेरिकी नागरिकता प्राप्त राजीव जैन फोर्ट लाडरडेल स्थित अपने आशियाना में रह रहे हैं।

प्रणतेश बाजपेयी