गंगोत्री धाम श्रद्धा, आस्था एवं विश्वास का स्थल

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गंगोत्री धाम श्रद्धा, आस्था एवं विश्वास का स्थल…………. गंगोत्री धाम : भगवती गंगा के दर्शन…….. गंगोत्री धाम को श्रद्धा, आस्था एवं विश्वास का मुख्य स्थल कहें तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी। जी हां, गंगोत्री धाम हिन्दुओं की आस्था का सर्वमान्य स्थल है। समुद्र तल से करीब 3140 मीटर ऊंचाई पर स्थित गंगोत्री धाम हिन्दुओं के चार धाम श्रंखला में से एक है। उत्तराखण्ड में गंगोत्री में स्थित गंगोत्री धाम को गंगोत्री मंदिर एवं गंगा मंदिर के नाम से भी जाना पहचाना जाता है। वस्तुत: गंगोत्री को गंगा नदी के उद्गम स्थल के तौर पर जाना पहचाना जाता है। गंगोत्री उत्तरकाशी से करीब 100 किलोमीटर दूर स्थित है। भगवती गंगा का यह मंदिर भव्यता एवं दिव्यता को रेखांकित करता है। मंदिर में मुख्य प्रतिमा भगवती गंगा की है। विशेषज्ञों की मानें तो इस दिव्य-भव्य गंगोत्री मंदिर का निर्माण गोरखा कमाण्डर अमर सिंह थापा ने कराया था। यह निर्माण 18 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में किया गया था। पौराणिक कथानक की मानें तो रघुकुल के राजा भगीरथ ने यहां प्रचण्ड शिलाखण्ड पर बैठ कर गंगा अवतरण के लिए भगवान शिव की आराधना की थी। मान्यता है कि देवी गंगा ने इसी स्थान पर धरती का स्पर्श किया है। मान्यता है कि पाण्डवों ने भी अपने पूर्वजों की आत्मिक शांति के लिए यज्ञ अनुष्ठान किया था। गंगोत्री धाम या गंगोत्री मंदिर श्वेत संगमरमर से बना एक शानदार एवं आकर्षक मंदिर है। मंदिर की दिव्यता-भव्यता एवं शुचिता को देख कर कोई भी मुग्ध हो सकता है। विशेषज्ञों की मानें तो शिवलिंग के रूप में एक नैसर्गिक श्वेत चट्टान गंगोत्री में जलमग्न है। शीतकाल के आरम्भ में गंगा का जलस्तर नीचे आने पर इस शिव चट्टान के दर्शन होते हैं। गंगोत्री मंदिर का इतिहास अति प्राचीन है। हिन्दुओं के लिए यह आध्यात्मिक प्रेरणा का रुाोत है। प्राचीनकाल में चार धाम की यात्रा पैदल हुआ करती थी। वर्ष 1980 की अवधि में गंगोत्री की यात्रा के लिए सड़क का निर्माण किया गया था। विशेषज्ञों की मानें तो प्राचीनकाल में गंगोत्री में मंदिर नहीं था। इसे भगीरथी घाटी भी कहा जाता है। गंगोत्री क्षेत्र वस्तुत: भोज वृक्षों से घिरा एक सुन्दर स्थान है। भगीरथी घाटी के अंत में गंगोत्री मंदिर स्थित है। वनस्पतियों की प्रचुरता देखते ही बनती है। वनस्पतियों की विशाल प्रजातियां गुणवत्ता एवं स्वास्थ्य के लिए संजीवनी हैं। सर्दियों में गंगोत्री मंदिर के पट बंद कर दिये जाते हैं। गंगा जी को श्रद्धालु मंदिर से धूमधाम से मुखबा गांव ले आते हैं। बसंत आने पर मुखबा गांव से वापस गंगा जी को मंदिर लाया जाता है। गंगोत्री मंदिर एवं उसके आसपास धार्मिक एवं पर्यटन स्थलों की एक लम्बी श्रंखला है। इनमें खास तौर से भैरों घाटी, हर्षिल, नंदनवन तपोवन, गंगोत्री चिरबासा, गंगोत्री भोजबासा, केदारताल आदि इत्यादि हैं। गोमुख: गोमुख वस्तुत: ग्लेशियर का मुहाना क्षेत्र है। गंगोत्री से गोमुख की दूरी करीब 19 किलोमीटर है। ग्लेशियर की ऊंचाई समुद्र तल से करीब 3892 मीटर है। धर्माचार्यों की मानें तो गोमुख में बर्फीले जल से स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं। गोमुख वस्तुत: भगीरथी अर्थात गंगा का उद्गम स्थल है। गोमुख का क्षेत्र अति विहंगम माना जाता है। करीब 25 किलोमीटर लम्बा, करीब 4 किलोमीटर चौड़ा एवं करीब 40 मीटर ऊंचाई तक गोमुख का क्षेत्र माना जाता है। गोमुख वस्तुत: ग्लेशियर की एक गुफा से आकार लेता है। भैरों घाटी : भैरों घाटी गंगोत्री से करीब 9 किलोमीटर दूर है। भैरों घाटी जध, जाह्नवी, गंगा एवं भगीरथी का संगम स्थल है। तेज बहाव के कारण भगीरथी गहरी घाटियों में बहती हैं। बहाव गर्जना जैसा प्रतीत होता है। भैरों घाटी हिमालय का सुन्दर दर्शनीय स्थल है। यहां से हिमालय का अद्भुत दृश्य दिखता है। भैरों घाटी से पर्यटक या श्रद्धालु भृगु पर्वत श्रंखला एवं चीड़वासा पर्वत श्रंखला के भी दर्शन कर सकते हैं। हर्षिल: हर्षिल गंगोत्री से करीब 20 किलोमीटर दूर एक सुन्दर एवं दर्शनीय स्थल है। यह इलाका दर्शनीय एवं प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध है। यहां का मीठा सेब देश दुनिया में अपनी एक अलग पहचान रखता है। हर्षिल में ऊंचे पर्वत, कोलाहल करती गंगा, सेब के बागान, झरनों की श्रंखला एवं सुन्दर चारागाह अति दर्शनीय होते हैं। नन्दन तपोवन: नन्दन तपोवन गंगोत्री से करीब 25 किलोमीटर दूर है। तपोवन से शिवलिंग चोटी का अद्भुत दर्शन होते हैं। यहां के सुन्दर चारागाह देखते ही बनते हैं। गंगोत्री चिरबासा: गंगोत्री चिरबासा गोमुख से करीब 3600 फुट ऊंचे स्थान पर स्थित है। यह स्थान गोमुख ग्लेशियर का आश्चर्यजनक दर्शन कराता है। गंगा उत्सव: गंगा उत्सव वस्तुत: गंगा जी का आगमन एवं विदाई का उत्सव होता है। सर्दियों के प्रारम्भ में भगवती गंगा अपने निवास स्थान गांव मुखबा चली जाती हैं। सर्दियां समाप्त होने पर भगवती गंगा पुन: वापस गंगोत्री धाम आकर विराजमान होती हैं। भगवती गंगा की यात्रा पारम्परिक रीति-रिवाज, गीत-संगीत, नृत्य एवं पूजा पाठ के साथ हर्ष एवं उल्लास से होती है। श्रद्धालु भगवती गंगा की मूर्ति को पालकी से लाते एवं ले जाते हैं। पालकी सजाया-संवारा जाता है। गंगोत्री धाम मंदिर के दर्शन एवं यात्रा के सभी आवश्यक संसाधन उपलब्ध हैं। निकटतम एयरपोर्ट जॉली ग्रांट देहरादून है। देहरादून से गंगोत्री धाम की दूरी करीब 226 किलोमीटर है। निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। ऋषिकेश रेलवे स्टेशन से गंगोत्री मंदिर की दूरी करीब 260 किलोमीटर है। यात्री सड़क मार्ग से भी गंगोत्री मंदिर की यात्रा कर सकते हैं।