पद संख्या – 1 ——- कवि कहता है, वह जो स्थूल होते हुए भी सूक्ष्म है। वह जो मौन होकर भी 250 डिसिबिल की साउंड रखती है। वह जो सीसीटीवी से भी चार हाथ आगे है, अर्थात कोई भी दृश्य या अदृश्य बिम्ब जिसकी नज़रों से परे नहीं है। वह जो एक ही समय में किचेन से लेकर आस – पड़ोस तक की गतिविधियों पर समान रूप से नजर रखने में सक्षम है। ऐसी शक्ति रूपेण भार्या की हम मुक्त कंठ से वंदना करते हैं।
पद संख्या – 2 —— एक कुंवारा एक विवाहित से पूछता है – भाऊ! शादी यदि लड्डू है तो बीवी क्या है? विवाहित अर्थात भाऊ एक सिसकी लेकर जवाब देता है, मत पूछ नादान। बीवी वह तिलिस्म है, जिसे उसके साथ सात फेरे लेने वाला भी सात जन्मों तक नहीं समझ पाता। वह कब चंद्रमुखी से ज्वालामुखी में परिवर्तित हो जाए, कोई नहीं जानता। इसलिए सुबह – शाम उसकी जय बोलने में ही सुख और शांति है।
पद संख्या – 3 —— एक दुखियारा पति दूसरे दुखियारे शौहर से कहता है – सखा! अब तो कोरोना का जनाजा निकल ही जाना चाहिए, वरना हमारा निकल जाएगा। बर्तन मांजते – मांजते, घर में झाडू – पोंछा करते – करते हम घिस गए हैं। दूसरा दुखियारा अपने आंसू पोंछकर रूमाल उसे देते हुए अपना दुखड़ा रोता है – सच कहते हो भ्राता। ऑफिस वाले वर्क फ्रॉम होम क्या करा रहे हैं, हमारी बेगम पलंग से नीचे नहीं उतरती। उनका ऑर्डर फ्रॉम पलंग चल रहा है। आह कोरोना।
पद संख्या – 4 —— अंत में कवि अर्थात पति का नशा उतरता है और वह कहता है – पत्नी लक्ष्मी स्वरूपा होती है। उसी से ईंट – पत्थर – सीमेंट – सरिया का मकान घर कहलाता है। वह अकेली घर की सफाई, रसोई, बच्चों, सास – ससुर और आप की देखभाल सहित अतिथियों का स्वागत – सत्कार समेत इतने काम कर लेती है, जो आप और आपकी एक दर्जन फोटोकॉपी भी मिलकर नहीं कर सकते। वह एक दिन के लिए भी बीमार हो जाए तो सब कुछ अस्त – व्यस्त हो जाता है। अतः उसका महत्व समझो।
कमल किशोर सक्सेना