वक्फ कानून बन गया पर संग्राम जारी

वक्फ कानून बन गया पर संग्राम जारी अब लकीर पीटने में लगा है विपक्ष राष्ट्रपति द्रोपति मुर्मू की मंजूरी मिलने के बाद बिल बना कानून संसद में लड़ाई हारने के बाद अब कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की सड़कों पर भी उतरने की घोषणा जद यू और रालोद में बिल को लेकर विरोध, कई नेताओं का इस्तीफा यूपी में वक्फ के अवैध कब्जों की पहचान करने के दिए गए निर्देश

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नयी दिल्ली/लखनऊ। वक्फ संशोधन विधायक यानी उम्मीद संसद के दोनों सदनों से पास हो गया है, और इसे राष्ट्रपति द्रोपति मुर्मू की मंजूरी भी मिल गई है। इस प्रकार इसने अब कानून का रूप ले लिया है। पर दूसरी तरफ विपक्ष है कि मानता नहीं, अब वह लकीर पीटने में लगा है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, कांग्रेस सांसद जावेद अली, आम आदमी पार्टी के दिल्ली से विधायक अमानतुल्लाह खां और एआइएमआइएम के असदुद्दीन ओवैसी ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी है। मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने तो यह भी ऐलान कर दिया है कि वह इसके खिलाफ सड़कों पर भी आंदोलन करेगी। इस पर असदुद्दीन ओवैसी ने भी कहा है कि हम ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के हर फैसले के साथ रहेंगे। उधर इस बिल का समर्थन करने वाली पार्टियों के कई मुस्लिम नेताओं ने विरोधी रुख अख्तियार करते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। इस मामले में सर्वाधिक चर्चा जद यू की हो रही है। खबर है कि उसके कई मुस्लिम नेताओं ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है, लेकिन पार्टी इससे साफ इंकार कर कर रही है। पार्टी का यह कहना है कि इस्तीफा देने वालों का हमारी पार्टी से कभी संबंध नहीं रहा है। इसके अलावा राष्ट्रीय लोकदल के भी कुछ नेताओं ने समर्थन के विरोध में इस्तीफा दिया है। उधर इस बिल के खिलाफ विपक्ष के साथ खड़ी उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने कहा है कि हमारे लिए वक्फ का चैप्टर अब क्लोज हो गया है। हमें आगे इस मामले में और कुछ नहीं करना है। हमें अब कोई याचिका भी नहीं दाखिल करनी है।

उधर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी के पहले ही सूबे के जिलाधिकारियों को निर्देशित किया है कि वे अति शीघ्र प्रदेश में वक्फ के अवैध कब्जे वाली संपत्तियों को चिन्हित करें ताकि आगे की कार्रवाई की जा सके। इस पर सपा के महासचिव रामगोपाल यादव का कहना है कि राष्ट्रपति की मंजूरी से पहले ही योगी आदित्यनाथ वक्फ की संपत्तियों की पहचान करने में लग गए हैं। इससे साबित होता है कि वक्फ संपत्तियों के प्रति उनकी मंशा कितनी खराब है। कुल मिलाकर वक्फ का विवाद जल्दी थमने के आसान नहीं हैं। कई मुस्लिम नेता दूसरा शाहीन बाग बनाने, 1947 को दोहराने जैसी धमकियां भी दे रहे हैं। वैसे छिटपुट विरोध-प्रदर्शनों को छोड़ दें तो इस फैसले के बाद पड़ने वाले जुम्मे की नमाज पर भी शांति ही रही, और कोई अप्रिय घटना नहीं होने पाई। वक्फ संशोधन बिल के मामले में संसद के दोनों सदनों में मात खाने के बाद इस अभियान की अगुवाई कर रहे ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ऐलान किया है कि वह इस बिल को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज करेगा और इसके खिलाफ पूरे देश में आंदोलन भी करेगा। उधर बिहार से कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद, आम आदमी पार्टी के दिल्ली के विधायक अमानतुल्लाह और एआइएमआइएम के सदर असदुद्दीन ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट में बिल के खिलाफ याचिका दाखिल की है। ओवैसी ने कहा है कि वक्फ संशोधन बिल का विरोध करना हमारा संवैधानिक अधिकार है। उनका आरोप है कि इसके जरिए मुसलमानों के धार्मिक अधिकार छीने जा रहे हैं, यह संशोधन असंवैधानिक है। जबकि शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे के प्रवक्ता संजय राउत ने कहा है कि हमारे लिए अब वक्फ की फाइल बंद हो चुकी है। हमें जो भी कहना था, हमने संसद में कह दिया है। हम अब इसके खिलाफ कोर्ट नहीं जाएंगे। यानी पार्टी ने आगे इस विवाद से दूर रहने का फैसला लिया है। सूत्रों का कहना है कि राज्यसभा में सत्ता पक्ष को संख्या बल से अधिक मिले समर्थन में इस पार्टी की भी बड़ी भूमिका रही है। इसके अलावा कई मुस्लिम संगठनों ने वक्फ बिल के खिलाफ राष्ट्रपति से मिलने के लिए समय मांगा है।

उधर खबर है कि जेडीयू के कुछ मुस्लिम नेताओं ने बिल पर पार्टी के रवैए के विरोध में पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। जबकि पार्टी प्रवक्ता राजीव रंजन ने कहा है कि ये लोग कभी हमारी पार्टी का हिस्सा नहीं रहे। हमारे किसी नेता ने इस्तीफा नहीं दिया है।‌ विपक्ष इस बारे में अफवाह फैला रहा है। एक नेता के बारे में कमेंट करते हुए केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने कहा है कि वो तो पतंग छाप से चुनाव लड़े थे और साढ़े चार सौ वोट पाकर हार गए थे। इन लोगों का हमारी पार्टी से कभी सम्बन्ध नहीं रहा। इस बाबत सिर्फ अफवाह फ़ैलाने का काम किया जा रहा है। यह भी खबर है कि बिल को समर्थन देने पर राष्ट्रीय लोक दल में भी विरोध शुरू हो गया है और दो मुस्लिम नेताओं ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। दूसरी ओर जदयू ने बीते शनिवार को पत्रकारों से बात करके मुस्लिम लोगों का समर्थन दिखाने की कोशिश की, किंतु खबर है कि पत्रकार वार्ता में आपस में ही मारपीट हो गई। खैर, बाद में अलग-अलग नेताओं ने बयान देकर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की। जबकि भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन ने कहा है कि मैंने वक्फ बिल का समर्थन किया था, इसलिए मुझे जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं और सोशल मीडिया पर गलत कमेंट किए जा रहे हैं।

दूसरी ओर लखनऊ से मिली खबर के अनुसार भाजपा अब आजादी दिवस के रूप में मनाएगी। इसके अलावा भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा मुस्लिम बस्तियों में जाकर लोगों को बिल की सच्चाई बताएगा और लोगों की चिंताओं का समाधान करेगा।‌ भाजपाई इन इलाकों में वक्फ की फैक्ट फाइल लेकर जाएंगे और नए-पुराने कानून के बारे में लोगों को जागरूक करेंगे। इसके अलावा उधर योगी आदित्यनाथ सरकार ने हर जिले के डीएम को निर्देश दिया है वे वक्फ की अवैध संपत्तियों को चिन्हित करें ताकि उचित कार्रवाई की जा सके। इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए समाजवादी पार्टी के सांसद रामगोपाल यादव ने कहा है कि जैसी की आशंका थी, कि सरकार की नजर वक्फ की संपत्तियों पर हैं, यह साबित होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि अभी तो संसद से पास कानून को राष्ट्रपति को मंजूरी भी नहीं मिली है, और उसके पहले ही सरकार के कारनामे देखने लगे हैं।

चर्चा में भाग न लेने पर गांधी परिवार पर सवाल : संसद में वक्फ संशोधन बिल पर गांधी परिवार द्वारा चर्चा में भाग न लेने पर भी सवाल उठ रहे हैं। लोगों का कहना है कि अपने इसाई वोटरों को मैनेज करने के लिए ही गांधी परिवार का कोई व्यक्ति संसद में इस मुद्दे पर नहीं बोला। जबकि लोकसभा में राहुल गांधी और राज्यसभा में सोनिया गांधी पूरे समय मौजूद रहे। हां प्रियंका गांधी इस दौरान सदन में मौजूद नहीं रहीं। सूत्रों का कहना है कि प्रियंका गांधी ने अपनी गैर हाजिरी की सूचना लोकसभा अध्यक्ष को दे दी थी, शायद उन्हें अपने किसी परिचित को देखने के लिए जाना था। किंतु सदन में रहने के बावजूद राहुल गांधी और सोनिया गांधी द्वारा इस मुद्दे पर चर्चा में भाग नहीं लेने को उनकी सियासत बताया जा रहा है। इस बाबत केरल के मुस्लिम संगठन ने भी संसद में चर्चा के समय गांधी परिवार के भाग न लेने पर सवाल उठाए हैं। जानकारी के अनुसार केरल के एर्नाकुलम में इसाई समुदाय की जमीन हड़पने के मामले में काफी विवाद हुआ, और पिछले कई महीनो से चर्चा का विषय बना हुआ है। गांधी फैमिली द्वारा चर्चा में नहीं बोले जाने को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस को मालूम था कि लोकसभा और राज्यसभा में बिल पास हो ही जाएंगे। ऐसे में इसीलिए कुछ भी बोलकर गांधी फैमिली केरल के ईसाइयों को नाराज नहीं करना चाहती थी। हालांकि बिल पर चर्चा के समय एक अनुपस्थिति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी थी, किंतु बताया जाता है कि उनका थाईलैंड और श्रीलंका के दौरा तय था। वैसे भी भाजपा के पास पर्याप्त नंबर थे और सारी सेटिंग पहले से हो गई थी। इसलिए मोर्चा राजनाथ सिंह, अमित शाह, जेपी नड्डा, किरेन रिजीजू और जगदंबिका पाल आदि लोगों ने संभाला और दोनों बिल सकुशल संसद से पास हो गए। राजनीति के जानकार मानते हैं कि इससे नरेंद्र मोदी का कॉन्फिडेंस उजागर हुआ है। उनका मानना है कि वे नहीं रहकर भी एक मैसेज देना चाहते थे कि हम चाहे जहां भी रहें, पर जो चाहेंगे करवा लेंगे।

लोकसभा में इस बिल के पक्ष में 288 सांसदों ने और राज्यसभा में 128 सांसदों ने मतदान किया जो बहुमत के आंकड़े से बहुत अधिक था। बताया जा रहा है कि राज्यसभा में एनडीए को कुल 123 सदस्यों का समर्थन प्राप्त था। ऐसे में 128 सांसदों का बहुमत हासिल करने का मतलब यह है कि विपक्ष की एकता में सेंधमारी हुई है और पांच वोट उसी खेमे से आए हैं। सूत्रों का कहना है कि लोकसभा में बिल का विरोध करने वाले बीजू जनता दल ने राज्यसभा के लिए कोई स्विप नहीं जारी किया था और सांसदों को उनके विवेक पर छोड़ दिया था। ऐसे में अनुमान यही है कि बीजद के भी कुछ सांसदों ने बिल के पक्ष में वोटिंग की। इसके अलावा शिवसेना उद्धव ठाकरे के प्रवक्ता संजय राउत के शनिवार के बयान से भी पिक्चर साफ होती जा रही है। संभव है कि उनके भी कुछ सांसदों ने अंदर खाने खेल कर दिया हो।

सच्चाई यह भी है कि यह बिल लोकसभा में पारित होने के बाद विपक्ष राज्यसभा में पस्त दिखा। विपक्ष की उम्मीद नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू से थी, लेकिन दोनों पार्टियों ने गठबंधन धर्म का निर्वाह किया। लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी 12 घंटे से अधिक समय तक चली मैराथन बहस के बाद इसे पारित कर दिया गया। विधेयक के समर्थन में 128 और विरोध में 95 वोट पड़े। इस विधेयक पर विपक्ष की ओर से कई संशोधन पेश किए गए, जिसे सदन ने खारिज कर दिया। विधेयक पारित करने के लिए लोकसभा की तरह राज्यसभा में भी आधी रात के बाद तक कार्यवाही चली। राज्यसभा में विधेयक को लेकर वैसे तो भारी हंगामा और विपक्ष के कड़े विरोध की उम्मीद थी, लेकिन लोस में विधेयक पारित होने और सरकार की ओर से विधेयक को मुस्लिमों के हित में होने को लेकर जिस तरह के तर्क दिए गए, उससे शायद विपक्ष के हौसले थोड़े पस्त थे। यही वजह थी कि राज्यसभा में विधेयक पेश होने के दौरान विपक्ष ने किसी तरह की टोका टाकी या शोरशराबे से परहेज किया। इतना ही नहीं, विधेयक पर चर्चा के दौरान विपक्ष की अधिकांश सीटें खाली दिखीं, जबकि सत्ता पक्ष की सीटें खचाखच भरी हुई थीं।

मोदी की गैर मौजूदगी में शाह ने संभाला मोर्चा : इस दौरान लोकसभा की तरह राज्यसभा में भी सरकार की ओर से गृह मंत्री अमित शाह मोर्चा संभाले दिखे। चर्चा के दौरान उन्होंने कई बार खड़े होकर न सिर्फ हस्तक्षेप किया, बल्कि विपक्ष को आईना भी दिखाया। ट्रिब्यूनल पर बोल रहे कांग्रेस सांसद नासिर हुसैन को उन्होंने बीच में टोका और कहा कि अब तक ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती थी, पर नए विधेयक में हम इसे लेकर आए हैं। उन्होंने चर्चा के दौरान समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव को भी आड़े हाथों लिया। भाजपा अध्यक्ष और सदन के नेता जेपी नड्डा ने कहा कि कांग्रेस ने अपने शासनकाल में मुस्लिम महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया था। मिस्त्र, सूडान, बांग्लादेश और सीरिया जैसे मुस्लिम देशों में कई साल पहले तत्काल तीन तलाक पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने एक दशक तक सत्ता में रहने के दौरान मुस्लिम महिलाओं के लिए कुछ नहीं किया।

रिजीजू का विपक्ष पर हमला : विधेयक पेश करते हुए संसदीय कार्य और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री किरेन रिजीजू ने विपक्ष के उन आरोपों को खारिज कर दिया कि इससे मुस्लिमों के अधिकार छीने जा रहे हैं। रिजीजू ने विधेयक की खूबियां गिनाईं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस कानून का उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं को सशक्त बनाना और सभी मुस्लिम समुदायों के अधिकारों की रक्षा करना है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक मुस्लिमों के खिलाफ बिल्कुल नहीं है, बल्कि उनका उत्थान करने वाला है। रिजीजू ने विपक्ष की ओर से फैलाए जा रहे दुष्प्रचार का भी जवाब दिया। उन्होंने कहा कि यह विधेयक गरीब व पिछड़े मुस्लिमों के परिवारों के विकास का रास्ता खोलने वाला है। इसलिए इसका नाम उम्मीद रखा गया है। उन्होंने उम्मीद (यूनीफाइड वक्फ मैनेजमेंट इम्पावरमेंट, इफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट) का पूरा नाम भी पढ़कर बताया। उन्होंने कहा कि जब भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश को विकसित बनाने की बात करते हैं, तो उससे मुस्लिम अलग नहीं हैं। रिजीजू ने वक्फ बोर्ड पर मनमाने व्यवहार का आरोप लगाया और कहा कि दिल्ली के भीतर मौजूद शहरी विकास मंत्रालय व दिल्ली विकास प्राधिकरण की 123 संपत्तियों पर वक्फ अपना दावा कर रहा है, जिसे कांग्रेस ने चोरी से दे दिया है। ऐसे में इसमें कोई संदेह नहीं है कि कल वक्फ संसद भवन पर भी दावा पेश कर दे। इसीलिए इस बिल की जरूरत है। उन्होंने केरल और तमिलनाडु के कुछ और उदाहरण भी गिनाए। मंत्री रिजीजू ने कहा कि यह कानून मुस्लिमों के अधिकार नहीं छीनेगा, विपक्ष वक्फ इस बिल से मुसलमानों को डरा रहा हैं। रिजीजू ने कहा कि वक्फ बोर्ड एक वैधानिक निकाय है, और इसे धर्म निरपेक्ष होना ही चाहिए। फिर भी हमने इसमें गैर-मुस्लिमों की संख्या सीमित कर दी है। वक्फ विधेयक से मुसलमानों को हम नहीं डरा रहे, बल्कि विपक्षी पार्टियां डरा रही हैं। उन्होंने पूछा कि मुसलमानों में गरीबी ज्यादा है, तो उन्हें गरीब किसने बनाया? कांग्रेस ने बनाया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो सबका साथ, सबका विकास की बात की है, वही तो संविधान की भावना है। वक्फ संशोधन असंवैधानिक नहीं है।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक