देवों के वैद्य धनवंतरी

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# शिवचरण चौहान   …. धनतेरस पर विशेष

कहते हैं धनवंतरी देवों के वैद्य हैं। अमृत के लिए जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया था तो कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वादशी को कामधेनु गाय और त्रयोदशी को भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लिए हुए निकले थे। धनवंतरी को भगवान विष्णु का अवतार भी माना गया है। चार भुजा धारी धनवंतरी एक हाथ में चक्र, एक हाथ में शंख, एक हाथ में अमृत कलश एक हाथ में औषधि लिए हुए थे।

हिंदुओं के प्राचीन ग्रंथ वेद और पुराणों में धन्वंतरि की कथा आती है। कहते हैं ब्रह्मा जी ने 100000 श्लोकों से आयुर्वेद नामक ग्रंथ की रचना की थी। बाद में ब्रह्मा जी ने आयुर्वेद का ज्ञान दक्ष प्रजापति को कराया। अश्विनी कुमार वेद कालीन वैद्य हैं। कहते हैं जब भगवान शिव ने दक्ष प्रजापति का शीश काट दिया था तब अश्विनी कुमार उन्हें चिकित्सा करके दक्ष प्रजापतिके सिर में बकरे का सिर जोड़ दिया था। आयुर्वेद का ज्ञान देवराज इंद्र को भी था।

कहते हैं मनुष्यों की भलाई के लिए और उनके रोगों का उपचार करने के लिए काशी नरेश दिवो दास के रूप में धनवंतरी ने अवतार लिया था। दिवोदास ने ऋषि भारद्वाज जी से आयुर्वेद की शिक्षा ली थी। और अष्टांग आयुर्वेद की रचना की। दिवो दास से ही ब्रह्मर्षि विश्वमित्र के पुत्र सुश्रुत ने आयुर्वेद का ज्ञान शिष्य बन कर प्राप्त किया था। ऋषी सुश्रुत ही पहले शल्य चिकित्सक थे। सुश्रुत संहिता में शल्य चिकित्सा के बारे में विस्तार से बताया गया। बाद में चरक ने चरक संहिता लिखी। प्राचीन काल में मुनि लोग ऋषि भी थे और रोगों के उपचार के लिए जड़ी बूटियों का अनुसंधान करते रहते थे। अगस्त और आत्रि भी कुशल चिकित्सक थे। अथर्ववेद में आयुर्वेद की जानकारी मिलती है।

कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी दीपावली से 2 दिन पूर्व पड़ती है। त्रयोदशी को ही भगवान धन्वंतरि अमृत कलश और औषधि लेकर समुद्र में प्रकट हुए थे इसलिए त्रयोदशी को धनवंतरी जयंती मनाई जाती है। भगवान धन्वंतरि जिस कलश में अमृत लेकर प्रकट हुए थे वह कलश पीतल का था। इसलिए धन्वंतरि जयंती पर पीतल की वस्तु को खरीदना शुभ माना जाता है। आज भी हमारे वैद्य और चिकित्सक धन्वंतरि जयंती पर भगवान धन्वंतरि की पूजा करते हैं। आमजन धनवंतरी इस लिए पूजा करते हैं ताकि वह जीवन भर निरोगी बने रहे।

प्रथम सुख निरोगी काया।
दूसर सुख घर में हो माया।।

आरोग्यता को सबसे बड़ा सुख माना गया है। इसलिए धन से पहले आरोग्य सुख मांगने की परंपरा हमारे दीप पर्व में समाहित है। हिंदुओं में जितना सम्मान आदर भगवान धन्वंतरि के प्रति है उतना आदर मुसलमानों में हकीम लुकमान के प्रति है। धनवंतरी और लुकमान को समकालीन माना जाता है। कुछ लोग तो यहां तक कहते हैं कि दोनों एक ही हैं नाम बदल गया है।

कहते हैं हकीम लुकमान मुर्दा इंसान में भी जान डाल देते थे। उनके नुक्से दवाइयां आज भी हकीम लोग आजमाते हैं और रोगियों को चंगा कर देते हैं। वैद्य धनवंतरी ने आयुर्वेद ग्रंथ की रचना कर हमें एक अमूल्य उपहार दिया है। हमारे पास दुनिया में सबसे पहले शल्य चिकित्सा थी। शल्य चिकित्सा विज्ञान में जो जो उपकरण बताए गए हैं उनके ही परिष्कृत रूप आज डाक्टरों के पास दिखाई देते हैं। धन्वंतरि जयंती पर भगवान धन्वंतरि की पूजा अवश्य करें और उन्हें दिल से स्मरण करें कि आपको जीवन भर निरोग रखें।