ऊ ला ला से शकुंतला तक

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बायोपिक बने और हस्ती की आरती न हो, मुश्किल है। यकीनन बायोपिक बनती ही उनकी है, जो शख्सियत होते हैं, अहम होते है, कुछ नहीं बहुत खास होते है। पर फिल्में उस शख्सियत की इज्जत या अपने बिजनेस में भूल जाती है, बायोपिक का हीरो या हीरोइन इंसान ही है, भगवान नहीं। शुक्र है ह्यूमन कम्प्यूटर शकुंतला देवी पर बनी फिल्म इस सोच से बच गयी।

बायोपिक का कैरेक्टराइजेशन यानी सबसे बड़ी चुनौती। भगोना भर हकीकत और एक कप कल्पना को मिक्सी के जार में बंद कर स्विच आॅन…. किस्मत रही तो तालियां नहीं तो गालियां तय। फ़िल्म को स्वर्गीय रियल स्टार का सर्टिफिकेट मिल गया। वाकई शकुंतला में कैरेक्टराइजेशन मार्वलस हैं, जो कहानी को एडवेंचरस बना देते हैं।

बचपन में गणित के पहाड़ जैस सवालों का फट से हल कर फुर्र से उड़ जाना शकुंतला की पहचान बन गयी। कर्नाटक के एक छोटे से गांव में जन्मी शकुंतला मैथेमेटिक्स टैलेंट शो कर छह साल उम्र से घर का पेट पालने लगीं। पर खुद को कभी स्कूल तक न मिला। खोये बचपन और प्रेम की तलाश ने विद्रोही बना दिया। प्यार में धोखा मिला तो प्रेमी का गोली से कान उड़ा दिया। विदेश गयी पर हुनर की इज्जत के लिए जंग लड़ी। महिला होने से लेकर भारतीय होने तक पर अंग्रेजों के जुमले झेले। पर दोनों ही मोर्चो पर जमकर जवाब दिया, और बोलती बंद की। कैलकुलेशन में कम्प्यूटर को हराया और ह्यूमन कम्प्यूटर कहलायी। पर फ़िल्म इस कामयाबी की दास्तान ही नही पर्दे के पीछे छिपे सच पेश करती है।

यूनीक कैरेक्टर….। उन्मुक्त जीवन पर साड़ी में ही हर प्रैजेन्टेशन देने की जिद। परिवार से जिंदगी भर लड़ाई और फिर याद में रुलाई। बेटी से इतना प्यार कि स्कूल ही नहीं भेजा। तलाक के बाद उसी से प्यार। गणित करते करते ज्योतिष हो गयीं और फिर राजनीति करने लगी। इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा, चित्त हो गयी पर उठ खड़ी हुई और गणित में गिनीज बुक में दर्ज हो गयीं। ‘ऊ ला ला’ के बाद शकुंतला के किरदार को भी जमकर जी लेना विद्या बालान के ही बस की बात है। जीनियस के लिए आम इन्सानस बनना कितना कठिन है, विद्या ने इस किरदार को पीकर बखूबी दिखाया।

सान्या मेहरोत्रा, इस दुबली पतली सुंदर सी लड़की के लिए लड़ना तो फिल्मी नियति बन चुकी है। ‘दंगल’ में अखाड़े में लड़ी, ‘पटाखा’ में बहन से लड़ी और अब शकुंतला देवी में मां से लड़ी। जमकर, जी भर कर। इतनी कमउम्र में जीवंत और संवेदनशील किरदार एक साथ निभाने के लिए सान्या बधाई की पात्र है।

शकुंतला के पति की भूमिका में जीषु सेन गुप्ता खासे फबे है। एक मितभाषी आईएएस जो पत्नी से तलाक के बावजूद उसके हर सही गलत इल्जाम सहन करता है पर बेटी को स्कूल भेजने के लिए जूझ जाता है। कम बोलकर कह जाना आसान नहीं होता पर व्योमकेश बख्शी, पीकू फेम स्टार ने इसे सहजता से कर दिखाया है।

गीत आम है। न विलेज लोकेशन अपील करती है और न फाॅरेन लोकेशन्स। पर एक्टिंग, क्रिस्पी स्क्रिप्ट। इंटरवल से पहले का पार्ट कुछ सुस्त है पर फिफ्टी के बाद सेंचुरी का पता ही नहीं चलता।

केन्द्रीय विद्यालय की छात्रा और लंदन फिल्म स्कूल की ग्रेजुएट अनु मेनन फिल्म की राइटर-डायरेक्टर है। उन्होंने शकुंतला देवी को दो अपोजिट चार्ज के बीच जल रहे सुपर बल्ब के तौर पर पेश कर दिखाया है। बधाई।

प्रो. अमिताभ श्रीवास्तव