सौंपा गया था जिन्हें बिजली-व्यापार, वही करने लगे अरबों की हेरा-फेरी

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सौंपा गया था जिन्हें बिजली-व्यापार,वही करने लगे अरबों की हेरा-फेरी…. कार्पोरेट क्षेत्र को हिला देने वाले इंफ्रास्ट्रक्चर लीज़िंग ऐंड फाइनेंस लिमिटेड (आईएल ऐंड एफएस), दीवान हाउसिंग फाइनेंस और इंडिया बुल (डीएचएफएल) के घोटालों की लिस्ट में दो नए नाम जल्दी ही जुड़ने वाले हैं। फर्क बस इतना है कि ये दोनों सरकार की मंशा पर सरकारी उपक्रमों द्वारा स्थापित हैं और इनमें पिता-पुत्र जैसा रिश्ता है। पितृ कंपनी देश में बिजली का व्यापार (पाॅवर ट्रेंडिंग) करने के उद्देश्य से स्थापित की गई थी और इसने ज़रूरत न होते हुए भी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं का वित्तपोषण करने के लिए आईएल ऐंडएफएस के नक्शे-कदम पर एक एनबीएफसी कंपनी को पैदा कर लिया।

कहानी यह निकल कर आई है कि इन दोनों पिता-पुत्र कंपनियों के संचालक सारे कानून -नियमों को ताख़ पर रखकर हजारों करोड़ रुपये की लोनिंग में अरबों रुपए का फ्राॅड किया है और उसे अपने पद-प्रभाव से अभी तक दबा रखा है। लोन के तौर पर खुले हाथों बांटी गई धनराशि बैंकों और वित्तीय संस्थानों से बतौर ऋण हासिल की गई। तानाशाह के सरीखे एनबीएफसी चलाने वाले मैनेजिंग डायरेक्टर -सीईओ को तो जबरन छुट्टी पर भेज दिया गया लेकिन पितृ कंपनी के मुखिया अभी डटे हुए हैं। अब ज्यादा देर नहीं है, काले कारनामों का भंडा फूटने ही वाला है।

जिनके अंदरखाने का चिट्ठा खोल रहे हैं उन कंपनियों के नाम हैं- पाॅवर ट्रेंडिंग काॅर्पोरेशन लिमिटेड (पीटीसी इंडिया लिमिटेड) और इनकी संतान पीटीसी फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड (पीएफएस)। अपनी मनमानी से इन दोनों कंपनियों को चलाने वाले दो बेखौफ गोरखधंधी हैं – डॉ पवन कुमार सिंह और डॉ राजीब कुमार मिश्रा। मास्टरमाइंड पवन सिंह पीएफएस का एमडी-सीईओ था, आरबीआई ने बीते दिन इसे पद से हटा दिया। राजीब मिश्रा पीएफएस के चेयरमैन और इसकी प्रमोटर पीटीसी इंडिया लिमिटेड के भी चेयरमैन पद पर काबिज हैं।

642 करोड़ रुपए की शेयरपूंजी की कंपनी पीटीसी फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड बिजली-ऊर्जा सहित इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को ऋण-शेयरपूंजी उपलब्ध कराती है। 2006 में राजधानी दिल्ली में स्थापित इस एनबीएफसी कंपनी को एमबीए -सीए डॉ पवन सिंह एमडी-सीईओ के तौर पर 2017 से संचालन कर रहा था। पीएफएस के अधिकतर निदेशक पवन सिंह के नियमविरुद्ध कार्यों का विरोध करते थे। सबसे पहले हठी और अपारदर्शी पवन सिंह द्वारा 2020 से कंपनी के बोर्ड नियमों, सेबी निर्धारित शेयर बाजार के नियामकीय प्रावधानों और आरबीआई के निर्देशों के स्पष्ट उल्लंघन के विरोध में कंपनी के छः निदेशकों ने बोर्ड से इस्तीफा दे दिया साथ ही मंत्रालय से भी शिकायत की। पवन सिंह को प्रमुख रूप से प्रमोटर कंपनी पीटीसी इंडिया के चेयरमैन डॉ राजीव मिश्रा का हर तरह का सपोर्ट मिलता था। ये दोनों कंपनी के वित्तीय और वैधानिक सूचनाओं को छिपाते थे‌ और अपने हितानुसार उनमें बदलाव करके स्टाॅक एक्सचेंजों, आरबीआई और कंपनी रजिस्ट्रार को गलत -भ्रामक जानकारियां प्रेषित करते थे। ताकि इनकी काली करतूतें दबी रहें।

पवनसिंह ने कुछ डाइरेक्टरों, आडिटर सीएफओ से लेकर कंपनी सेक्रेटरी सहित अधिकांश अधिकारियों -स्टाफ को अपनी ग्रिप में ले रखा था। पवन के अवैधानिक तथा कार्पोरेट गवर्नेंस के विरुद्ध क्रियाकलापों से तंग आकर एक-एक करके छ: निदेशकों ने पीएफएस से इस्तीफा दे दिया। पहले सेबी, आरओसी और फिर आरबीआई ने उल्लंघनों की जानकारी होने पर पवन और राजीब को कारण बताओ नोटिसें दी थीं पर उसका जवाब तक नहीं दिया गया। बाद में फोरेंसिक आडिट से गड़बड़ी का आंशिक खुलासा होने पर सेबी, दिल्ली-हरियाणा के क्षेत्रीय कंपनी रजिस्ट्रार (आरओसी) और आरबीआई सक्रिय हुए। इसके बावजूद पवन और राजीब ने मनमानी बंद नहीं की। अंततः आरबीआई ने पहले सीएफओ संजय रुस्तगी को और 14 जून को पवन सिंह को पद से हटा दिया तथा महेंद्र लोढ़ा को अंतरिम एमडी -सीईओ बना दिया है।

ठोस जानकारी के अनुसार नियमों का उल्लंघन करते हुए पवन सिंह ने ईस्ट कोस्ट एनर्जी, एथिना छत्तीसगढ़ पावर लिमिटेड दामे विंड पार्क, एनएसएल नागपट्नम पावर ऐंड इंफ्रा, पटेल इंजीनियरिंग,आर के एम पावर, आर एस इंडिया विंड एनर्जी, प्रयागराज पावर जनरेशन, और आधुनिक पावर ऐंड नेचुरल रिसोर्सेज सहित कई फर्मों-कंपनियों को आठ हजार करोड़ रुपए से अधिक लोन दिए। लोन देने में पवन सिंह और राजीब मिश्रा लम्बा कमीशन लेते थे। 2023 के शुरू में पवन ने परियोजनाओं की फाइनेंसिंग के लिए बैंकों और वित्तीय संस्थानों से और छः हजार करोड़ रुपए की सहायता लेनी की कोशिश में था। पीएफएस का एनपीए भी काफी बढ़ चुका है लेकिन कंपनी के खातों में 20-21 में 744 करोड़ और 21-22 में 800 करोड़ का एनपीए दर्शाया गया। विभिन्न परियोजनाओं में पीएफएस की सात हजार करोड़ रुपए से अधिक (रकम ऋण + शेयरपूंजी) धनराशि फंसी है।

पीएफएस भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, केनरा बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया सहित कई और बैंकों तथा वित्तीय संस्थानों से ऋण लेकर आगे कंपनियों को देती है। इसके अलावा दो सौ करोड़ रुपए के विदेशी मुद्रा ऋण भी लिए गए। 2022, दिसंबर के अंत में बैंकों और वित्तीय संस्थानों की आठ हजार करोड़ रुपए से अधिक धनराशि कंपनी पर बकाया हो गई थी।

इधर पीएफएस गहरे घाटे में आ गई है, आमदनी 2021-22 में 924 करोड़ से घटकर 2022-23 में 766 करोड़ पर सिमट गई। मुनाफा तो दिन में देखा सपना हो गया, 2022-23 में 232 करोड़ रुपए का घाटा देकर पवन सिंह बाहर हो गए। यह तो सामने – सामने दिखाई देता है। सेबी और कंपनी रजिस्ट्रार (आरओसी)कंपनी की छानबीन कर रहे हैं। ताजा जानकारी मिली है कि जांच में कंपनी रजिस्ट्रार ने पीएफएस और पवन सिंह को तीन अलग-अलग मामलों में दोषी पाया है। कंपनी अधिनियम के तहत कंपनी रजिस्ट्रार ने 1.70 लाख रुपए और पीएफएस पर 5.70 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। देखना है नियामक सेबी पवनसिंह और राजीब मिश्रा की जुगलबंदी में किए गए काले कारनामों को कहां तक उजागर कर पाता है।

प्रणतेश बाजपेयी