कुछ तो संदेश है भाजपा की इस लाचारगी में

* दस साल तक पाले गए सहयोगी अब अपना नफा और नुकसान देखने लगे * लोस में पहली बार पांव वापस खींचना पड़ा मोदी सरकार को * वक्फ संशोधन बिल पर रहा गठबंधन साथियों का दबाव * पहली बार सरकार को कोई बिल जेपीसी को भेजना पड़ा * अब ब्राडकास्टिंग रेगुलेशन बिल भी लेना पड़ा वापस

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नयी दिल्ली/लखनऊ। गठबंधन की मजबूरी क्या होती है, इसका एहसास पहली बार पिछले गुरुवार को लोकसभा में भाजपा को हुआ। उसे पहली बार कोई विधेयक गठबंधन के साथियों और विपक्ष के दबाव में संयुक्त संसदीय समिति को भेजना पड़ा। हालांकि जनता दल यूनाइटेड ने सरकार का मजबूती से साथ दिया। सदन में उनके नेता ललन सिंह ने इस बिल पर विपक्ष को आड़े हाथों लिया किंतु तेलुगु देशम पार्टी और लोक जनशक्ति पार्टी ने अपने वोट बैंक की राजनीति के चलते सदन में ही बिल को संयुक्त संसदीय समिति को भेजने की मंशा जाहिर कर दी। अंततः बिल को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजना पड़ा।

मोदी सरकार ने पिछले 10 साल के अपने कार्यकाल के बाद अपने तीसरे कार्यकाल में पहली बार ऐसा दबाव महसूस किया। पर सरकार मुस्लिम धर्म के अन्य फिरकों को यह मैसेज देने में सफल रही कि वह उनके हितों की रक्षा करना चाहती है। सरकार की मजबूरी का ताजा मामला अब ब्रांड कास्टिंग रेगुलेशन बिल के रूप में सामने आया है। खबर है कि सरकार ने इस बिल को भी मजबूरी में वापस लेकर फिर से लाने का फैसला लिया है।

मोदी सरकार के पास मुस्लिम धर्म के विभिन्न फिरकों के लोगों ने पिछले दस सालों में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में गड़बड़ी की शिकायतें की थीं। बीच-बीच में ऐसी भी खबरें आयीं कि पूरा का पूरा गांव वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया गया था जबकि उस गांव में बना एक मंदिर 15 सौ साल पुराना है। मोदी कैबिनेट ने इन्ही विसंगतियों को दूर करने के लिए और गरीब मुस्लिमों को उनका हक दिलाने के लिए वर्तमान वक्फ कानून में 40 संशोधनों वाला वक्फ संशोधन बिल पिछले गुरुवार को लोकसभा में पेश किया था। इसके पहले इसे कैबिनेट में पास भी किया गया था। ऐसे में बिल पर लोकसभा में हुई राजनीति समझ से परे हैं। अगर बिल पर कैबिनेट में सर्व सहमति नहीं बनी थी तो इसे सदन में लाने की जरूरत ही क्या थी।

खैर, इस बिल ने यह बता दिया मोदी सरकार के अगले 5 साल बहुत ही दिक्कत भरे रहने वाले हैं। उसे समझ में आ गया है कि जिस प्रकार निर्द्वंद्व होकर उसने पिछले 10 सालों में काम किया है, वैसी स्थिति अब शायद नहीं रह गई है। अब गठबंधन के साथियों के प्रति उसकी जवाबदेही बढ़ गई है। ऐसे में उसे अपने तमाम एजेंडे स्थगित करने भी पड सकते हैं। अब ऐसे में सवाल यह भी है कि विपक्ष से चौतरफा घिरी भारतीय जनता पार्टी अपने गठबंधन साथियों को कैसे साध पाएगी। यह काम मुश्किल है और मोदी के कौशल की परीक्षा भी है। पर विधेयक पेश कर मोदी सरकार ने मुस्लिम धर्म के अन्य फिरकों को यह मैसेज तो दे ही दिया कि उसे उनकी चिंता है। और अगर भाजपा यह संदेश ठीक से वोटरों तक पहुंचाने में सफल रही तो आने वाले चुनावों में इसका लाभ भी मिल सकता है।

दूसरी तरफ जानकारों का कहना है कि यह मोदी सरकार की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। उसे मालूम था कि इस बिल पर विवाद होगा और विपक्षी पार्टियां इसका विरोध करेंगी। पर उसे तो सिर्फ मुस्लिम घर्म के अन्य फिरकों को यह मैसेज भर देना था कि वह उनके साथ है लेकिन वर्षों से वक्फ बोर्ड में काबिज चंद्र फिरकों के भूमाफिया उनके हितों के संरक्षक नहीं हैं। इसलिए वे बदलाव के विरोधी है। भाजपा यह संदेश तो देने में सफल रही पर राजनीतिक दृष्टि से जो मैसेज गया है वह ठीक नहीं रहा। मैसेज यह गया कि मोदी सरकार दबाव में आ गयी है और उसे झुकाया भी जा सकता है। मैसेज यह भी गया कि भाजपा ने मजबूरी में रोल बैक किया है। अगर ऐसा नहीं था और उसे अपने संख्या बल पर भरोसा था तो ओवैसी के मत विभाजन की मांग को सभापति मान लेते और बिल चर्चा के लिए स्वीकृत हो जाता है। किंतु बड़ी सफाई से सभापति ओम बिरला ने ओवैसी की मांग को खारिज कर बिल को जेपीसी में भेजने का निर्देश जारी कर दिया।

सूत्रों का कहना है कि भाजपा की नज़र शिया और सुन्नी मुसलमानों से इतर इस्लाम के बाकी फिरकों पर है। माना जाता है कि शिया और सुन्नी के अलावा अन्य फिरके कम कट्टर हैं। इस्लाम धर्म में 73 फिरके बताए गए हैं। इनमें शिया, सुन्नी, मुहम्मदी, मजारी, बरेलवी, आला हजरती, अहले हदीस, अहमदिया, जन्नति और सूफी आदि हैं। भाजपा शिया, सुन्नी के अलावा इन्ही फिरकों को टारगेट करके यह विधेयक लायी थी। लोकसभा सदन में आई दिक्कत भरी स्थिति के बाद भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का यह भी कहना है कि अगर आगे भी ऐसी ही स्थिति रही तो हो सकता है कि उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव के साथ लोकसभा का मध्यावधि चुनाव भी करा लिया जाए। क्योंकि कम बहुमत में सरकार चलाना न तो नरेंद्र मोदी को आता है और न ही अमित शाह को। और गुजरात लाबी किसी भी सूरत में सत्ता की चाबी अपने पास ही रखना चाहती है।

भाजपा की मजबूरी का ताजा मामला ब्राडकास्टिंग रेगुलेशन बिल के रूप में सामने आया है। सूत्रों का कहना है कि कैबिनेट द्वारा मंजूर इस बिल को भी मोदी सरकार ने साथी दलों की कुछ आपत्तियां मिलने के बाद वापस ले लिया है। खबर मिली है कि सरकार अब नया बिल विचार विमर्श के बाद फिर से लाएगी। सरकार द्वारा आगामी 15अक्टूबर तक इस पर सुझाव मांगा गया है। अब सवाल यह उठता है कि अगर यह बिल कैबिनेट से पास हो गया था तो फिर अचानक रोल बैक का क्या मतलब है। हो सकता है कि वह सामान्य धटना हो पर वक्फ संशोधन बिल की फजीहत के बाद इस ताजा रोल बैक पर सवाल उठना लाजिमी है।

सूत्रों का मानना है कि ऐसे में संभावना यही है कि आने वाले समय में देश मध्यावधि चुनाव की तरफ बढ़ जाए। क्योंकि गठबंधन साथी भाजपा की कमजोरी का फायदा उठाकर मौके पर चौका मारने की जुगत में हैं। और यह स्थिति मोदी को मंजूर नहीं है। अभी हाल ही में पेश केंद्रीय बजट में भी दबाव के चलते ही बिहार और आंध्र प्रदेश को विशेष पैकेज देना पड़ा। जिसको लेकर विपक्षी पार्टियों ने मोदी सरकार की मजबूरी पर सवाल उठाया था। और अपने साथियों को रेवड़ी बांटने का आरोप लगाया था। ऐसे में भाजपा कोई भी कठोर निर्णय लेने से नहीं हिचकेगी। पीएम मोदी तो विशेष तौर पर अपनी मर्जी का काम करने के आदी हैं। गठबंधन की यह मजबूरी उन्हें कब तक बर्दाश्त होगी, ये देखने वाली बात होगी।
केंद्रीय संसदीय और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने पिछले गुरुवार को लोस में वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 पेश किया था। उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्ड को माफिया से मुक्त कराने और गरीब मुसलमानों को उनका हक दिलाने के लिए ही यह विधेयक लाया गया है।

विपक्ष ने बिल का विरोध करते हुए जमकर हंगामा किया। कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने कहा कि ये संविधान से मिले धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। ये बिल मुस्लिम विरोधी है। हालांकि उनकी आपत्ति को केंद्रीय मंत्री और जेडीयू नेता ललन सिंह ने सिरे से खारिज कर दिया। जेडीयू नेता कहा कि कई माननीय सदस्यों की बात सुनने से ऐसा लग रहा है कि जैसे ये बिल मुसलमान विरोधी है। उन्होंने पूछा, ये संशोधन कहां से मुस्लिम विरोधी है?उदाहरण दिया जा रहा है कि अयोध्या का मंदिर, गुरुद्वारा आदि का…। अरे भाई मंदिर और संस्था में आपको अंतर नजर नहीं आता है। कांग्रेसियों को आड़े हाथ लेते हुए जदयू नेता ने कहा कि जिसने सरेआम सिखों का नरसंहार किया है वह पार्टी मुस्लिमों के हक की बात कैसे कर सकती है। खबर है सदन के बाहर जदयू में भी इस बिल को लेकर मतभेद हैं। कुछ मुस्लिम नेताओं ने इसको लेकर नीतीश कुमार से मुलाकात भी की थी। जदयू के कुछ मुस्लिम नेताओं ने खुलकर इस बिल के विरोध में बयानबाजी की है। ऐसे में जदयू कितने समय तक भाजपा का साथ निभा पाएगा कह पाना मुश्किल है।

एनडीए की सहयोगी तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के जीएम हरीश ने कहा कि ‘टीडीपी वक्फ संशोधन विधेयक का समर्थन करती है। वक्फ बोर्ड की व्यवस्था में सुधार लाना और इसको सुव्यवस्थित करना सरकार की जिम्मेदारी है। पर अगर सदन चाहे तो हमें इसे जेपीसी को भेजने में कोई समस्या नहीं है। इसी पार्टी के बालयोगी ने कहा कि किसी भी सिस्टम में पारदर्शिता जरूरी है और हम इसके समर्थक हैं। पर इस पर व्यापक चर्चा होनी चाहिए। वहीं एनडीए की एक और सहयोगी चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के सांसद ने कहा कि हम चाहते हैं कि वक्फ बिल संयुक्त संसदीय समिति के पास जाए और सभी हितधारकों को समिति में परामर्श करने दिया जाए। बिल मुसलमानों के खिलाफ नहीं है। फिर भी बेहतर होगा कि संसद की संयुक्त समिति इस पर बारीकी से विचार करे। अंततः बिल को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजने का सरकार का प्रस्ताव अध्यक्ष ने मंजूर कर फिलहाल मोदी सरकार को राहत प्रदान कर दी है। किंतु भाजपा ने इसे गंभीरता से लिया है। और पार्टी अब नई रणनीति पर विचार कर रही है जिससे उसे आगे दबाव में राजनीति न करनी पड़े। अध्यक्ष ने इस दिल को संयुक्त संसदीय समिति में भेजने के बाद 31 सदस्यीय समिति का गठन भी कर दिया है।

हालांकि इस बिल के विरोधी असदुद्दीन ओवैसी बिल की ग्राह्यता पर मत विभाजन चाहते थे लेकिन अध्यक्ष में उनकी मांग को अधिकार से परे बता कर खारिज कर दिया। इसके पूर्व अपने संबोधन में ओवैसी ने कहा कि आप विधेयक लाकर मुसलमानों के खिलाफ काम कर रहे हैं, और देश बांटने की साजिश कर रहे हैं। हमें यह मंजूर नहीं है। परंतु अध्यक्ष ने असदुद्दीन ओवैसी की मांग खारिज करके सत्ता पक्ष की इज्जत बचा ली। अन्यथा अगर कहीं मत विभाजन हो जाता तो परिस्थितियां सरकार के विपरीत भी हो सकती थीं। और तब सरकार संकट में आ जाती।

सदन में सपा सांसद मोहिबुल्लाह नदवी ने कहा कि यह हमारे धार्मिक मामले में दूसरे धर्म के लोगों का दखल है। ऐसा नहीं होना चाहिए। समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव ने इसे मुसलमानों के साथ अन्याय बताया। उनका कहना था कि यह भाजपा के चंद कट्टरपंथियों की संतुष्टीकरण के लिए लाया गया है। मुस्लिम स्कालर तहसीन रहमानी ने कहा कि मैं भी मानता हूं कि वक्फ कानून में संशोधन की जरूरत है। पर इस पर चर्चा होनी चाहिए। मैं पूरे विपक्ष और भाजपा के समर्थक दलों का इस बात के लिए शुक्रगुजार हूं कि उनके दबाव में बिल को जेपीसी में भेज दिया गया ताकि व्यापक चर्चा हो सके। राजद के नेता मनोज कुमार झा ने इशारे-इशारे में बता दिया की इस बिल के बारे में लोगों की राय से जाहिर है कि मेंडेड किस ओर इशारा कर रहा है। कुल मिलाकर यह बिल भाजपा के लिए खतरे की घंटी के रूप में था जिसे पार्टी के जिम्मेदार लोगों को समय रहते समझ लेना चाहिए।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक