खतरे में है नंदा देवी की पवित्रता और सुंदरता !

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# शिवचरण चौहान
क्या नंदा देवी की पवित्रता और सुंदरता नष्ट होने से बच पाएगी? हिमालय की दूसरे नंबर की सबसे बड़ी चोटी और सुंदरतम चोटियों में से एक नंदा देवी क्या अब सुरक्षित है? यह सवाल हर जागरूक नागरिक के मन में उमड़ रहा है। उत्तराखंड के वासी तो नंदा देवी को पवित्र और पूज्य मानते हैं। नंदा देवी कोई और नहीं उनकी पार्वती देवी मां हैं। दुनिया भर के पर्यटक नंदा देवी की सुंदरता निहारने के लिए भारत आते हैं। किंतु आज नंदा देवी अपनी पवित्रता और सुंदरता बचाने के लिए गुहार लगा रही है।

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि प्रकृति से छेड़छाड़ नहीं रुकी तो गंभीर परिणाम होंगे! भारी जनहानि, धन हानि की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। नंदा देवी के खिसकते, पिघलते, और टूट कर गिरते ग्लेशियर अभी भी हमें चेतावनी दे रहे हैं कि पहाड़ों से प्रकृति से छेड़छाड़ मत करिए। वरना मनुष्य जीवन के लिए संकट आ जाएगा। किंतु ना तो हम और ना हमारी सरकारें कुछ सुनने को तैयार है। जब भीषण आपदा जाती है तो बचाव और सहायता कार्य शुरू करा दिए जाते हैं और हालात सामान्य होते ही फिर सब कुछ भूल जाते हैं।

वैसे तो सन 1970 से ही वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि नंदा देवी की पवित्रता और सुंदरता से छेड़छाड़ न की जाए। नंदा देवी को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाए। पर्यटक जो खूबसूरती निहारना चाहते हैं वे हवाई जहाज अथवा हेलीकॉप्टर से आसमान से सुंदरता देख लें। पहाड़ पर चढ़ना, पिकनिक मनाना, ऋषि गंगा, गंगा, अलकनंदा आदि में बांध बनाना बिजली परियोजनाएं शुरू करना बहुत खतरनाक है। किंतु ना तो सरकार और ना ही पर्यटक और ना समाज ध्यान देता है। इसी के कारण ग्लेशियर खिसक रहे हैं पिघल रहे हैं और टूट कर गिर रहे हैं। पहाड़ों पर सैलानियों ने इतनी पॉलिथीन और कचरा फैला दिया है कि हर साल सफाई अभियान ना चलाया जाए तो पहाड़ों से गंदी जगह कोई नहीं हो सकती।

वैज्ञानिकों का कहना है प्राकृतिक आपदा की सूचना पहाड़ पर रहने वाले लंगूर, हिरण, कस्तूरी हिरण, हिम तेंदुआ और पंछी दे देते हैं। आपदा आने से दो-तीन दिन पहले लंगूरों के व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है। लंगूर शोर मचाते हुए डालियों से नीचे भागने लगते हैं अथवा ऊपर चले जाते हैं। चिड़ियां अजीब सी आवाजें करने लगती हैं। पहाड़ों में रहने वाले चूहे अचानक बिलो से निकलकर बाहर आ जाते हैं। यह सब बातें पहाड़ पर रहने वाले स्थानीय निवासी अच्छी तरह जानते हैं किंतु पर्यटक इन खतरों से अनजान होते हैं।

नंदा देवी हादसे से हमारी केंद्र और उत्तराखंड सरकार कुछ सीखेगी और आवश्यक उपाय करेगी ताकि भविष्य में आपदाएं रोकी जा सकें। नंदा देवी में करीब 650 वर्ग किलोमीटर की सुंदर घाटी है। नंदा देवी हिमालय का दूसरा बड़ा शिखर है जो बहुत सुंदर है। बसंत में फूल खिल जाते हैं पंछी चहकने लगते हैं। कस्तूरी मृग और हिम तेंदुए भी बाहर निकल आते हैं। फरवरी से जून तक मौसम बहुत सुहाना रहता है और नंदा देवी की खूबसूरती देखते ही बनती है।
हजारों साल से नंदा देवी की खूबसूरती अप्रतिम रही है। सन 1970 से नंदा देवी में पर्यटकों का आना-जाना शुरू हुआ और तभी से आपदाएं आनी शुरू हो गई हैं। पिछले हजारों साल से नंदा देवी की खूबसूरती बरकरार रही है किंतु पिछले 50 साल से आए दिन आपदाएं आने लगी हैं।

सरकार ने नदियों में बांध बनाए हैं। पर्यटन क्षेत्र बनाकर लाभ कमाया है और पर्यावरण को जी भर कर क्षति पहुंचाई है। उसी का दुष्परिणाम आज हम महसूस कर रहे हैं। सन 1935 में एरिक शिपटन और बिल टिलमैन ऐसे दो विदेशी पर्यटक थे जो नंदा देवी शिखर तक चढ़ने में कामयाब हुए थे और सारी दुनिया को नंदा देवी की सुंदरता के बारे में बताया था। नंदा देवी में 20000 फुट में उपर करीब 24 पर्वत शिखर है। जिनमें बर्फ जमी रहती है। बसंत में घाटियों में फूल खिलते हैं। और चांदनी रात सूर्य की रोशनी में यह पर्वत शिखर दिव्य आभा लिए दिखाई देते हैं। एक समय था जब यहां पर बाघ, तेंदुए, हिम तेंदुए, कस्तूरी मृग, हरी-भरी घाटियां और रंग बिरंगे पंछी किलोल किया करते थे। दूब घाटी की दूब ऐसी लगती थी जैसे किसी ने हरा गलीचा बिछाया हुआ है।

जब से पहाड़ों पर बांध बने हैं बिजली परियोजनाएं लगी हैं आदमी ने विकास के नाम पर अपने विनाश का आमंत्रण दे दिया है। नंदा देवी के प्राकृतिक सौंदर्य पर देसी विदेशी फिल्मकारों ने न जाने कितनी फिल्में बनाई है। सैलानियों ने भारी मात्रा में कचरा छोड़ा है। पहाड़ की नदियां गंदी की हैं। और दिव्य सुंदरता को खंडित किया है। उत्तराखंड के लोग नंदा देवी को पवित्र मानते हैं और पूजा करते हैं। नंदा देवी और कोई नहीं हमारी पार्वती देवी मां हैं। भगवान शिव की भार्या।
नंदा देवी शिखर को पार्वती का निवास माना जाता है। हमारे पुराणों और लोक गाथाओं में कथा आती है कि भगवान शिव नंदा देवी से विवाह करके उन्हें कैलाश पर्वत ले गए थे। पार्वती का एक नाम नंदा भी है।

कथा आती है कि जब राक्षस महिषासुर देवताओं से वरदान प्राप्त करें अजेय हो गया तो हिमालय में तप करने वाले ऋषि-मुनियों और देवताओं के लिए संकट बन गया। महिषासुर के आतंक और अत्याचार से त्राहि-त्राहि करते हुए ऋषि मुनि और देवता भगवान शिव विष्णु और ब्रह्मा की शरण में पहुंचे। महिषासुर से डरे ब्रह्मा विष्णु महेश ने जगदंबा को उत्पन्न किया। जगदंबा ने टिहरी के राजा के यहां जन्म लिया जिनका नाम रखा गया राजेश्वरी नंदा देवी। राजेश्वरी नंदा के बारे में जब महिषासुर को पता चला तो वह उनसे युद्ध करने पहुंचा। नंदा देवी और महिषासुर में भयंकर युद्ध हुआ। जब महिषासुर नंदा देवी पर भारी पड़ने लगा तो नंदा देवी भागने लगी। भागते हुए नंदा देवी ने आलू के पौधों और हल्दी के पौधों से उन्हें छिपा लेने के लिए कहा। महिषासुर के डर के कारण आलू और हल्दी ने नंदा देवी को छिपा लेने से मना कर दिया। इस पर नंदा देवी ने श्राप दिया की आलू और हल्दी तुम छुप कर जमीन के नीचे रहोगी। तब से आलू और हल्दी जमीन के नीचे ही फल देती हैं। बाद में हल्दी के बहुत प्रार्थना करने पर नंदा देवी ने उसे देवताओं की पूजा में शामिल होने की अनुमति दे दी। ऐसी कथा हमारे पुराणों में आती है।

भागती हुई नंदा देवी को भोज वृक्षों ने छिपने के लिए जगह दी थी इसलिए भोज वृक्षों के जंगल देवताओं के कृपा से पर्वतों पर अजर अमर है। बाद में नंदा देवी ने काली देवी को प्रकट किया जिसने महिषासुर रक्तबीज का रक्त खप्पर में भर कर पीना शुरू किया जिससे महिषासुर के राक्षसों के वंश वृद्धि रुक गई। कहते हैं आज की काली गंगा और पिंडर के मैदान में नंदा देवी और महिषासुर का निर्णायक युद्ध हुआ जिसमें महिषासुर मारा गया और आतंक का अंत हुआ। आज भी यहां के पत्थर और मिट्टी लाल रंग की निकलती है। महिषासुर का वध करने के बाद नंदा देवी ने कुछ समय विश्राम किया और फिर भगवान शिव से विवाह करके कैलाश पर्वत चली गईं। नंद खूंटी के सामने ही त्रिशूल पर्वत है। कहते हैं भगवान शिव ने अपना त्रिशूल यहीं पर गाड़ा था।

इन पौराणिक कथाओं के आधार पर गढ़वाल के लोग हर साल नंदा देवी उत्सव मनाते हैं। गढ़वाल कुमायूं और उत्तराखंड के लोग पर्वतों में छेड़छाड़ नहीं करते। ऋषि-मुनियों और देवताओं देवियों का निवास होने के कारण हिमालय को देव पर्वत, देवताओं का निवास कहा जाता है। नंदा देवी के छोटे बड़े हजारों मंदिर कुमायूं और गढ़वाल क्षेत्र में पाए जाते हैं। गांव गांव नंदा देवी और भगवान शिव के मंदिर मिलते हैं जहां स्थानीय लोग पूजा अर्चना करते हैं। पहले तो इन मंदिरों में भैंसे की बलि चढ़ाई जाती थी।

पर्यटकों के लुभाने के लिए नंदा देवी सेंचुरी बनी हुई है। दूब घाटी की सुंदरता देखते ही बनती है। सरसों पाताल नंदा देवी सेंचुरी का खूबसूरत स्थान है। यहां से नंदा देवी की चोटियों की सुंदरता देखते ही बनती है। साफ नीला आसमान। सुबह सोने सी चमकती बर्फ और शाम को चांदी सी चमकती चोटियां लुभावना दृश्य प्रस्तुत करती हैं। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि प्रकृति बहुत संवेदनशील होती है। विकास के लिए प्रकृति से बिल्कुल ही छेड़छाड़ ना की जाए वरना बहुत भयानक परिणाम आएंगे। अभी तो यह चेतावनी है। अगर नहीं संभले और सुधार नहीं किया तो हिमालय तो कच्चा पहाड़ है अभी विकसित हो रहा है। हिमस्खलन ग्लेशियर फटना टूटना खिसकना और आए दिन भूकंप आना खतरे की घंटी है। प्रकृति की सुंदरता उसके मूल रूप में ही है। प्रकृति की सुंदरता सिर्फ देखने निहारने के लिए है। उसे छेड़ने से विनाश हो सकता है।

# लेखक वरिष्ठ पत्रकार, विचारक और टिप्पणीकार हैं।