जम्मू-कश्मीर की सियासी गणित पेचीदा है बहुत

जम्मू-कश्मीर की सियासी गणित पेचीदा है बहुत....... हाल के विधानसभा चुनावों में उग्रवादी और कट्टरपंथी विचारधारा को बढ़ावा देने वाले उम्मीदवारों को भी कश्मीरी मतदाताओं ने नकार दिया है। ऐसे में भारतीय सेना, राज्यपाल कार्यालय और गृह मंत्रालय को भी आतंकियों के हर नए पैंतरे का सोच-समझकर जवाब देना होगा। वरना पिछले 10 वर्षों में की गई सारी मेहनत पर पानी फिर सकता है। जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 की बहाली के मुद्दे पर चुनाव जीतकर सरकार बनाने वाली नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला ने विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर एक तीर से कई शिकार कर दिए हैं।

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जम्मू-कश्मीर की सियासी गणित पेचीदा है बहुत……. हाल के विधानसभा चुनावों में उग्रवादी और कट्टरपंथी विचारधारा को बढ़ावा देने वाले उम्मीदवारों को भी कश्मीरी मतदाताओं ने नकार दिया है। ऐसे में भारतीय सेना, राज्यपाल कार्यालय और गृह मंत्रालय को भी आतंकियों के हर नए पैंतरे का सोच-समझकर जवाब देना होगा। वरना पिछले 10 वर्षों में की गई सारी मेहनत पर पानी फिर सकता है। जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 की बहाली के मुद्दे पर चुनाव जीतकर सरकार बनाने वाली नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला ने विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर एक तीर से कई शिकार कर दिए हैं।

पहले शिकार में उन्होंने अपने वोटरों को यह बता दिया है कि वह अपने चुनावी घोषणा पत्र के प्रति काफी गंभीर हैं। और उन्होंने विधानसभा में राज्य को विशेष दर्जे की मांग वाला प्रस्ताव पास कर केंद्र को भेज दिया है। गौर करने वाली बात यह है कि उसमें कहीं भी अनुच्छेद 370 की बहाली का जिक्र नहीं है। दूसरा, उन्होंने पीडीपी की राजनीति की ऐसी तैसी कर दी है। हालांकि लकीर पीटते हुए पीडीपी ने दूसरे दिन नया प्रस्ताव सदन में पेश किया जिसको लेकर भाजपा विधायक उग्र हो गए और बवाल हो गया। कई भाजपा विधायकों को चोटें आई जिसका दोष पीडीपी पर मढ़ा गया।

इस पूरे घटनाक्रम के दौरान मुख्यमंत्री सदन में बैठकर तमाशा देखते रहे। इस प्रकार उन्होंने पीडीपी का भी समर्थन कर दिया। और तीसरा यह कि प्रस्ताव में अनुच्छेद 370 का जिक्र न करके उमर ने केंद्र सरकार से बातचीत की गुंजाइश छोड़ दी है। इस पूरे मामले में खास बात यह है कि इसी बहाने उमर ने कांग्रेस को भी एक्सपोज कर दिया है। क्योंकि कांग्रेस ने 370 के मामले पर एकदम चुप्पी साध रखी है। न तो इसके नेता इसके पक्ष में बोल रहे हैं और न विरोध में। कांग्रेस इसमें फंस गई है। अगर वह इसके पक्ष में बोलती है तो जम्मू कश्मीर के बाहर उसके वोट बैंक का असर पड़ेगा और अगर वह नहीं बोलती है तो जम्मू कश्मीर में उसके वोटरों पर असर पड़ेगा।

इस प्रकार उमर अब्दुल्ला में कांग्रेस को बैकफुट पर रहने के लिए मजबूर कर दिया है। उमर अब्दुल्ला जानते हैं कि अनुच्छेद 370 की बहाली का कोई भी प्रस्ताव मोदी सरकार मानने वाली नहीं है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने भी मोदी सरकार के फैसले का मोहर लगा दी है। लेकिन नेशनल कांफ्रेंस में अपना चुनावी एजेंडा सेट कर लिया है। उसने जनता से जो वादा किया था उसको तकनीकी रूप से पूरा भी कर दिया है। उसके पास यह कहने को है कि हमने अपना काम कर दिया है। और जब केंद्र में हमारे अनुकूल सरकार होगी तो हम इसकी बहाली के लिए प्रयास करेंगे। कुल मिलकर जम्मू कश्मीर की गणित बहुत उलझी हुई है। यहां सिवाय भाजपा के सूबे की और कोई पार्टी 370 के मामले पर कोई क्लियर स्टैंड रख पाने में फिलहाल असमर्थ है।

गौरव शुक्ल
वरिष्ठ पत्रकार