खबरों पर यकीन कम होना मीडिया के लिए चिंताजनक

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कोलकाता। राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने हिंदी पत्रकारिता पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि मीडिया के सामने आज विश्वसनीयता का संकट बना हुआ है। पहले विचारों का दौर था, जबकि आज सोशल मीडिया से चुनौती है। उन्होंने कहा कि उम्र लंबी नहीं, बल्कि सार्थक होनी चाहिए, जैसी हिंदी के पहले अखबार ‘उदन्त मार्तण्ड’ की थी। मौजूदा समय में खबरों पर यकीन कम होना मीडिया के लिए चिंता का विषय है।

हरिवंश ने कहा कि कोलकाता से ही हिंदी का पहला समाचार पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ 30 मई 1826 को प्रकाशित हुआ था। कोलकाता हमेशा से चेतना, चिंतन और पुर्नजागरण का केंद्र रहा है। भाषाई पत्रकारिता के बारे में उन्होंने कहा कि इसने देश को एक नई दिशा प्रदान कर समाज को नई दिशा दी। वह विचारों का दौर था जबकि आज टेक्नोलॉजी का युग है। आज विचार नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी हमारे विचार तय कर रही है।

राज्यसभा के उपसभापति के अनुसार सोशल मीडिया से आज पत्रकारिता के सामने साख का संकट खड़ा हो गया है। फेसबुक, ट्विटर आदि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर रोजाना लाखों फेक न्यूज परोसी जा रही है। हम सभी को मिलकर इसका सामना करना होगा। हरिवंश ने इस अवसर पर पाठकों के रवैये पर भी गंभीर टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि जो लोग अखबार मुफ्त में चाहते हैं, वे यह भी उम्मीद करते हैं कि उनका अखबार ईमानदार भी रहे।

फेक न्यूज के लिए मीडिया दोषी नहीं: इस अवसर पर भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि जीवन के हर क्षेत्र में आज अवमूल्यन हुआ है, जिसका असर मीडिया पर भी पड़ा है। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर प्रसारित भ्रामक खबरों के लिए मीडिया को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। द्विवेदी ने कहा कि वे अपने संस्थान में छात्रों को हमेशा जल्दबाजी में किए गए लाइक, कमेंट और शेयर से बचने की सलाह देते हैं।

प्रो. द्विवेदी के अनुसार सूचना और समाचार में अंतर होता है। सूचना गलत हो सकती है, लेकिन समाचार गलत नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि पत्रकार का धर्म आधा सच बताना नहीं है, बल्कि एक भारत और श्रेष्ठ भारत के लिए ईमानदारी से काम करना है।

जोड़ने का काम करती है भाषा: राज्यसभा सांसद नदीमुल हक ने कहा कि भाषा केवल एक माध्यम है। यह लोगों को जोड़ने का काम करती है, लेकिन कुछ लोग भाषा का दुरुपयोग कर लोगों का बांटने का काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक पत्रकार को इस बारे में सलीके से सोचने की जरूरत है। इस बात को भी ध्यान रखना होगा कि कागज के दाम बढ़ रहे हैं, जबकि विज्ञापन दर और पाठकों की संख्या कम हो रही है। इस चुनौती का सामना अखबार किस प्रकार करे यह विचारणीय सवाल है।

वैज्ञानिक दृष्टि से काम करें पत्रकार: भारतीय भाषा परिषद के निदेशक प्रो. शंभुनाथ ने कहा कि आधुनिक युग में कलम की जगह माउस और कागज की जगह कंप्यूटर स्क्रीन ने ले ली है। समय की जरूरत है कि पत्रकार वैज्ञानिक दृष्टि से काम करें और अंधविश्वास फैलाने से बचें। उन्होंने कहा कि पाठकों को सही और सटीक खबर जानने का अधिकार है और जब तक पाठकों के अधिकार की पूर्ति नहीं होगी, तब तब उनकी मांग जारी रहेगी।

अखबारों को पाठक नहीं ग्राहक चाहिए: भारतीय प्रेस परिषद की सदस्य और लखनऊ से प्रकाशित होने वाले अखबार ‘जनमोर्चा’ की संपादक डॉ. सुमन सिंह ने कहा कि पत्रकारिता के लिए बंगाल प्रयोग की धरती रही है। वर्तमान में यह दुखद है कि अखबारों से संपादक नामक पद धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। वक्त के साथ पत्रकारिता बदली है। अब अखबारों को पाठक नहीं ग्राहक चाहिए।

कारोबार, तकनीक और मिशन के मिश्रण की जरूरत: वरिष्ठ पत्रकार विनोद अग्निहोत्री ने कहा कि हम इस सच्चाई से इंकार नहीं कर सकते कि हर दौर और हर क्षेत्र में समय-समय पर अच्छे-बुरे दिन आते हैं। उन्होंने कहा कि मेरी नजर में समाज और अखबार का ठीक वैसा ही रिश्ता है, जैसा पानी और मछली का। अग्निहोत्री ने कहा कि बदलते परिवेश में कारोबार, तकनीक और मिशन के सटीक मिश्रण की जरूरत है, जिससे इस उद्योग की साख बच सके।