लोस में भी दिखेगी यूपी के दो लड़कों की जुगलबंदी

* अखिलेश यादव ने करहल की विधायकी छोड़कर कन्नौज की लोकसभा सीट पर ही बने रहने का फैसला किया है * कांग्रेस ने भी राहुल गांधी को लोस में नेता विपक्ष बनाने का प्रस्ताव पास किया है, देर-सवेर वे इस पर सहमति दे ही देंगे * दोनों पार्टियों को मिलाकर लोकसभा में 136 सीटें हैं जो मोदी की गठबंधन सरकार को परेशान करने के लिए पर्याप्त है

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लखनऊ। इसे समय का फेर ही कहेंगे कि कभी कांग्रेसवाद के खिलाफ बनी और जनता पार्टी के एक घटक के रूप में अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाली समाजवादी पार्टी के नेता आज कांग्रेस नेताओं के साथ गलबहियां करते हुए दिख रहे हैं। यूपी में साथ चुनाव लड़कर शानदार विजय पाने के बाद यूपी के दोनों लड़के अखिलेश यादव और राहुल गांधी लोकसभा में भी एक साथ मिलकर गलबहियां करते हुए दिखेंगे। राहुल गांधी जहां लोकसभा में नेता विपक्ष के रूप में नजर आ सकते हैं वहीं अखिलेश यादव सपा संसदीय दल के नेता के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे।

कहते हैं कि राजनीति में न तो कोई स्थाई शत्रु होता है और न ही मित्र होता है। यह शुद्ध रूप से संभावनाओं और आवश्यकताओं का खेल है। इसी सिद्धांत के तहत यूपी के चुनाव में एक बार फेल हो चुकी राहुल और अखिलेश की जोड़ी ने फिर रिस्क लिया और इस बार लोकसभा में शानदार प्रदर्शन किया। यूपी लोकसभा की 80 सीटों में से समाजवादी पार्टी ने 37 और कांग्रेस ने 6 सीटों पर जीत दर्ज कर पुनर्वापसी की है। काफी दिनों से राजनीतिक सूखा महसूस कर रहे दोनों दलों को 2024 के लोकसभा चुनाव में संजीवनी मिली है। परिस्थितियां चाहे जो भी रही हों, जीत के जो भी कारण रहे हों किंतु आज की सच्चाई यही है कि समाजवादी पार्टी बीजेपी को पछाडते हुए यूपी में सर्वाधिक 37 सीटें जीतने में कामयाब हुई। और उसने यूपी के संसदीय इतिहास में अपना सर्वोच्च प्रदर्शन किया है। कांग्रेस को भी पिछले चुनाव की तुलना में काफी सुकून भरा परिणाम मिला है। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 80 में से सिर्फ एक सीट रायबरेली जीत पाई थी। किंतु इस बार समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में उसे 6 सीटें प्राप्त हुई हैं। और उसके लिए यह काफी संतोषजनक है। उसके लिए संतोषजनक यह भी है कि पार्टी को अमेठी की अपनी हारी हुई सीट भी वापस मिल गई है। वहां पर उसके प्रत्याशी किशोरी लाल शर्मा ने केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को हराकर राहुल गांधी की 2019 में हुई हार का बदला ले लिया है। रायबरेली और अमेठी में कांग्रेस की जीत के लिए समाजवादी पार्टी का सहयोग तो महत्वपूर्ण था ही किंतु कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी की जोरदार मेहनत भी इस जीत का कारण बनी।

अब उत्तर प्रदेश लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद अखिलेश यादव ने कन्नौज की अपनी संसदीय सीट पर बने रहने का फैसला किया है। उन्होंने करहल विधानसभा सीट से इस्तीफा देने का फैसला किया है। पार्टी सूत्रों के अनुसार इस सीट पर होने वाले उपचुनाव में परिवार के तेज प्रताप यादव को प्रत्याशी बनाए जाने की संभावना है। उधर पार्टी ने भी अखिलेश यादव को अपने संसदीय दल का नेता चुन लिया है। इस प्रकार यह लगभग तय हो गया है कि अखिलेश यादव अब केंद्र की राजनीति करेंगे, तब जब तक उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव नहीं आते हैं। पार्टी सूत्रों ने यही संकेत दिया है कि यूपी विधानसभा चुनाव होने तक अखिलेश यादव केंद्र की राजनीति में सक्रिय रहेंगे। और तब तक यूपी का मोर्चा चाचा शिवपाल यादव संभाल सकते हैं।

उधर कांग्रेस की सर्वोच्च संस्था कांग्रेस कार्य समिति यानी सीडब्ल्यूसी ने भी सर्वसम्मत फैसला करके राहुल गांधी को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाने के लिए प्रस्ताव पास किया है। जिस पर राहुल गांधी ने विचार करने के लिए कुछ समय मांगा है। हालांकि सूत्रों का कहना है कि देर-सबेर वे इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेंगे। लेकिन इसके पहले वे यह तय करेंगे कि वो कौन सी सीट छोड़ेंगे और कौन सी सीट रखेंगे। वैसे अधिक संभावना उनके रायबरेली सीट पर ही बने रहने की है।

इस प्रकार यूपी के ये दोनों लड़के लोकसभा में भी जुगलबंदी करते दिखाई देंगे और केंद्रीय सरकार को तमाम मसलों पर लगातार घेरने की कोशिश करेंगे। दोनों पार्टियों के साझा एजेंडे में ओबीसी आरक्षण, संविधान की रक्षा, अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा, बेरोजगारी, अग्निवीर योजना और किसान हित के मुद्दे उठाना प्रमुख कार्य में होगा। इसके अलावा यूसीसी और एक देश एक चुनाव के मुद्दे पर भी सरकार की नाक में दम करना उनकी राजनीतिक जरूरतों में शामिल रहेगा। दोनों पार्टियों को मिलाकर सदन में संख्या 136, है जो किसी भी गठबंधन की सरकार को परेशान करने के लिए पर्याप्त है।

अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या ये दोनों जन आगे भी एक साथ बने रहेंगे या अलग हो जाएंगे। जैसा कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच अभी हाल ही में हुआ है। दोनों ही पार्टियों ने दिल्ली लोकसभा का चुनाव मिलकर लड़ा लेकिन परिणाम शून्य आया। उसके तुरंत बाद दिल्ली सरकार में मंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता गोपाल राय ने दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस और आप के गठबंधन से इनकार किया। उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी दिल्ली में अकेले चुनाव लडेगी। कांग्रेस से हमारा समझौता सिर्फ लोकसभा चुनाव तक के लिए था। सूत्रों ने बताया कि आम आदमी पार्टी ने यह भी फैसला किया है कि वह हरियाणा का विधानसभा चुनाव भी अकेले ही लडेगी। यानी वहां भी उसका कांग्रेस पार्टी से गठबंधन नहीं होगा। पार्टी पंजाब में पहले से ही अकेले लड़ती है। और उसने वहां अकेले दम पर पंजाब में सरकार बनाई है। ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा की क्या यूपी के दो लड़कों की जोड़ी 2027 के विधानसभा चुनाव में भी एक साथ रहेगी या अलग हो जाएगी। क्योंकि विधानसभा चुनाव में यह जोड़ी सफल नहीं हो पाई थी।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक