राज्यों पर कर्ज का शिकंजा, केंद्र पर भी 155 लाख करोड़ का कर्ज

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कर्ज का शिकंजा और कसा राज्यों पर, केंद्र भी 155 लाख करोड़ का कर्जदार….. राज्यों पर कर्ज का शिकंजा और कस रहा है। अट्ठाईस में से चौदह प्रमुख और बड़े राज्यों पर कर्जदारी बढ़ कर इस साल मार्च के समाप्त होने तक 60 लाख करोड़ रुपए के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गई। अट्ठाईस राज्यों में उत्तर प्रदेश दूसरा सबसे बड़ा कर्जदार है। वैसे सभी राज्यों के ऊपर कर्ज का बोझ बढ़ा है, अपवाद में केवल बीजू पटनायक शासित उड़ीसा है जिसने पिछले एक वर्ष में अपने ऊपर कर्ज को कम करने में सफलता पाई है।

बीजू पटनायक एक साल में उड़ीसा के कर्ज में 15500 करोड़ रुपए की कमी करने में कामयाब रहे। उड़ीसा पर 2022, मार्च में 1.29 लाख करोड़ रुपए का कर्ज था, मार्च 2023 में घटकर 1.13 लाख करोड़ रुपए रह गया। सबसे बड़े कर्जदार के तौर पर स्टालिन की सत्ता में चलने वाला तमिलनाडु है। तमिलनाडु का कर्ज 2021-22 में 6.56 लाख करोड़ से 14.80 प्रतिशत बढ़कर 2022-23 में 7.53 लाख करोड़ रुपए हो गया। योगी आदित्यनाथ की कमान में सबसे अधिक जनसंख्या वाला उत्तर प्रदेश देनदारियों के मामले में दूसरे नंबर पर है। इस वर्ष मार्च के खत्म होने तक उत्तर प्रदेश पर कुल 7.10 लाख करोड़ रुपए का कर्ज लदा हुआ था। चौदह प्रतिशत से कुछ अधिक वृद्धि के साथ महाराष्ट्र पर एक साल के भीतर कर्ज 83668 करोड़ बढ़कर 6.80 लाख करोड़ हो गया, जो मार्च 2022 में 5.96 लाख करोड़ रुपए था। दीदी के पश्चिम बंगाल की कर्जदारी इस दरम्यान 10.46 प्रतिशत बढ़कर 6.08 लाख करोड़ रुपए से ऊपर निकल गई, कोई 57605 करोड़ रुपए का इज़ाफा हुआ।

आपस की राजनीतिक उठापटक से ग्रस्त राजस्थान के ऊपर सबसे ज्यादा 17.22 प्रतिशत की वृद्धि दर से कर्ज 4.58 करोड़ से 78924 करोड़ रुपए बढ़कर 5.37 लाख करोड़ रुपए के स्तर पर पहुंच गया। कर्नाटक पर ऋण का बोझ एक साल में 13.03 प्रतिशत यानी 61719 करोड़ रुपए वृद्धि के साथ 5.35 लाख करोड़ रुपए हो गया। भारीभरकम कर्जदारों में तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और कर्नाटक, सहित छः राज्यों के ऊपर सिर्फ एक साल में इनका समग्र कर्ज 4.69 लाख करोड़ रुपए उछल कर 38.24 लाख करोड़ रुपए होना चिंताजनक इसलिए है कि इसकी अदायगी कैसे संभव होगी और इस पर खरबों रुपए के ब्याज का भुगतान राज्य सरकारें कैसे और कहां से करेंगी? हालांकि वित्तीय अनुशासन में राज्य के संसाधनों का प्रबंधन करने के लिए केंद्र की तर्ज पर राज्य सरकारों ने भी फिस्कल रिस्पांसिबिलिटी ऐंड बजट मैनेजमेंट ऐक्ट (एफआरबीएम) बना भी लिए हैं। इसके बावजूद कहीं कोई सुधार होता नहीं दिख रहा है। वित्त मंत्रालय और भारतीय रिज़र्व बैंक के आंकड़ों से साफ होता है कि अप्रैल 2020 से मार्च 2023 के बीच तीन वर्षों में अट्ठाईस राज्यों की समग्र कर्जदारी में 43 प्रतिशत का अप्रत्याशित का इज़ाफा हुआ।

भारत सरकार के ऋणबोझ की स्थिति यह है कि 2014, अप्रैल से मार्च 2023 के बीच नौ वर्षों में इसमें 100 लाख करोड़ रुपए की बढ़ोतरी दर्ज की गई। यह 2014, मार्च में 55 लाख करोड़ रुपए था जोकि मार्च 2023 में 155 लाख करोड़ रुपए के रिकार्ड स्तर पर आ पहुंचा।

प्रणतेश बाजपेयी